नई दिल्ली। बेबी रानी मौर्य भाजपा की राष्ट्रीय‌ उपाध्यक्ष हैं। वो उत्तराखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं और पार्टी के प्रमुख दलित चेहरों में गिनी जाती हैं। 1990 के दशक में वो आगरा की मेयर भी रह चुकी हैं। पार्टी ने उन्हें 'दलितों की राजधानी' कहे जाने वाले आगरा जिले की ग्रामीण (सुरक्षित) सीट से विधानसभा उम्मीदवार बनाया है। उन्हें मायावती की टक्कर का माना जाता है। आजकल उनकी हर तरफ चर्चा है। 

मायावती के मुकाबले में नहीं हैं 
बेबी की मानें तो उनका बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती से कोई मुकाबला नहीं है। वह और मायावती एक ही समाज से आते हैं लेकिन वो उनका 'चेहरा नहीं लेना चाहती'। मैं भारतीय जनता पार्टी की कार्यकर्ता हूं। मैं बेबी रानी मौर्य हूं और वहीं बने रहना चाहती हूं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे पार्टी के बड़े नेता चुनाव प्रचार के दौरान दावा कर रहे हैं कि अगर बेबी रानी मौर्य चुनाव जीतती हैं और प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है तो उन्हें 'बड़ी ज़िम्मेदारी' दी जाएगी। इसके साथ जहां ये सीट हाई प्रोफाइल मानी जाने लगी है वहीं, बेबी रानी मौर्य की बहुजन समाज पार्टी प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के साथ तुलना होने लगी है। कई राजनीतिक विश्लेषक दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में 'मजबूत वोट बैंक' माने जाने वाले दलित समुदाय के बीच भाजपा उन्हें मायावती के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश में है। चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती उत्तर प्रदेश में दलितों की सबसे बड़ी नेता मानी जाती हैं। साल 2014 के आम चुनाव से बीएसपी के प्रदर्शन में काफी गिरावट आई है, लेकिन फिर भी पार्टी का वोट प्रतिशत बीस फीसदी के करीब रहा है। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि 
भाजपा बेबी रानी मौर्य को आगे करके मायावती और 'बीएसपी के वोट बैंक में सेंध' लगाना चाहती है। कई दूसरे दल और नेता भी इस कोशिश में हैं। 

मैंने बहुत कार्य किए हैं 
हालांकि, बेबी रानी मौर्य कहती हैं कि वो मायावती से किसी तरह के मुकाबले की कोशिश में नहीं हैं। वह भी मायावती की तरह ही जाटव समुदाय से आती हैं और समाज के साथ उनका हमेशा सीधा जुड़ाव रहा है। उनके अनुसार आगरा में मेयर रहते हुए समाज के लिए बहुत कार्य किया है। मैंने राज्यपाल होते हुए भी उनके लिए बहुत कार्य किए हैं लोग मुझसे मेरे काम की वजह से जुड़ रहे हैं। मेरे समाज के लोग मुझसे बहुत जुड़ रहे हैं और आप इस चुनाव के बाद देखेंगे कि जाटव समाज भी बेबी रानी से जुड़ रहा है। बेबी रानी मौर्य की कोशिश मायावती के विकल्प के रूप में उभरने की है, इस दावे की एक और वजह है। हाल में कई बार भाजपा ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके नाम के साथ 'जाटव' जोड़कर उनकी जातिगत पहचान उभारने की कोशिश की है।

नाराजगी के बाद पार्टी ने बदला उम्मीदवार
बेबी रानी मौर्य को आगरा की जिस सीट से उम्मीदवार बनाया गया है, उस पर साल 2017 में भाजपा की ही हेमलता दिवाकर ने जीत हासिल की थी। पार्टी ने इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया है। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में इसकी वजह क्षेत्रीय लोगों की नाराजगी बताई जाती है। ये दावा किया जाता है कि बड़े अंतर से जीत हासिल करने के बाद वो लंबे समय तक अपने क्षेत्र से दूर रहीं। कई इलाकों में लोगों ने उन्हें 'लापता बताते हुए पोस्टर' भी लगा दिए।