ओलंपिक पदक पक्का करने का अपना सपना पूरा करने से महीनो पहले विनेश फोगाट व्यवस्था से नाराज थी। लेकिन धमकी, पुलिस हिरासत, प्रदर्शन की अगुवाई करने को लेकर हुई आलोचना भी उनका हौसला डिगा नहीं सकी। कुश्ती को लड़कों का खेल मानने वाले गांव के लोगों के विरोध का सामना करने से लेकर नौ वर्ष की उम्र में अपने पिता को खोने, रसूखदार खेल प्रशासकों से लोहा लेने तक विनेश ने कई चुनौतियों का सामना किया । हरियाणा की इस धाकड़ का पेरिस तक का सफर आसान नहीं रहा और बहुत कुछ दांव पर था। उसने हालात के आगे घुटने टेकने की बजाय लड़ने का रास्ता चुना और इतिहास रच डाला। मैट के ऊपर और उससे बाहर उन्होंने जिस तरह से चुनौतियों का सामना किया, वह एक नजीर बनकर उभरी हैं।
     जो कुछ हुआ, उसे लेकर अवसाद में जाने की बजाय उन्होंने डटकर सामना किया और जीवट और जुझारूपन की नयी कहानी लिखते हुए ओलंपिक फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई। उस पूरे दौर में विनेश को अटल विश्वास था कि उनकी लड़ाई सही है । इसके बाद उन्होंने पेरिस ओलंपिक का टिकट कटाने पर फोकस किया जो एक नया चुनौती थी। उन्हें 53 किलो की बजाय 50 किलो में उतरना पड़ा। ओलंपिक क्वालीफायर से पहले कई ट्रायल मुकाबले हुए और इस बीच उन्हें घुटने की सर्जरी भी करानी पड़ी। रियो ओलंपिक में एसीएल चोट के कारण उनका कैरियर एक बार लगभग खत्म ही माना जा रहा था ।
    भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर प्रदर्शन की अगुवाई करने पर उनकी काफी आलोचना हुई । मामला पुलिस तक , अदालत तक पहुंचा। विनेश ने अपने साथी पहलवानों के साथ जंतर मंतर पर प्रोटेस्ट किया। इससे उनकी आलोचना हुई। आलोचकों ने विनेश का बोरिया बिस्तर बांध ही दिया था कि कुछ दिन बाद 30 साल की होने जा रही विनेश पीछे हटने वालों में से नहीं थी। चुनौतियों की शुरूआत ट्रायल से ही हो गई जब उन्हें अधिकारियों को राजी करना पड़ा कि उन्हें दो भारवर्गों में उतरने दिया जाये और फिर 50 किलो में उनका चयन हुआ। इस बीच यह अफवाह भी फैली कि उन्होंने डोप टेस्ट से बचने की कोशिश की । पेरिस में पहले दौर का मुकाबला मौजूदा चैम्पियन से था लेकिन युइ सुसाकी के रसूख से डरे बिना विनेश ने उन्हें उनके कैरियर की पहली हार की ओर धकेला। इसके बाद यूक्रेन की ओकसाना लिवाच को हराया।सेमीफाइनल में जीत दर्ज करके उन्होंने फाइनल में जगह बनाई ।