लता मंगेशकर - (28 सितंबर 1929 - 6 फरवरी 2022)
नई दिल्ली। 92 साल की उम्र में सुरों की मलिका स्वर कोकिला पंचतत्व में विलीन हो गईं। उनके मौत की खबर सुनते ही हर किसी की आंखें नम हो गईं। देश-दुनिया में शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा, जो लता दीदी की सुरीली आवाज का दीवाना न हो। तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी सुनोगे गीत मेरे संग-संग गुनगुनाओ, नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे, रहें ना रहें हम महका करेंगे बन के कली, बन के समां बागे वफा में जैसे गीत चाहने वाले दिन भर सुनते रहे। लता दीदी ने एक साक्षात्कार में नाम गुम जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है गीत को अपने दिल के काफी करीब बताया था। लता मंगेशकर का जन्म इंदौर में हुआ था। पिता दीनानाथ मंगेशकर एक कुशल रंगमंचीय गायक थे। दीनानाथ ने लता को पांच साल की उम्र से ही संगीत सिखाना शुरू कर दिया था। लता का मूल नाम हेमा था लेकिन उनके पिता ने अपने नाटक भावबंधन की किरदार लतिका के नाम पर उनका नाम लता रखा। सिर्फ 9 साल की उम्र में उन्होंने पहला सार्वजनिक गायन 1938 में शोलापुर के नूतन थिएटर में किया। इसमें उन्होंने राग खंभावति और दो मराठी गाने गाए। वह पांच साल की थीं, जब अपने पिता के नाटक में अभिनय किया था। इसके बाद 1945 में मास्टर विनायक की पहली हिंदी फिल्म बड़ी मां में किरदार भी निभाया था।

पहला फिल्मी गाना पिता ने हटवा दिया था...
लता ने पहली बार 1942 में मराठी फिल्म किटी हसाल के लिए गाना गाया था लेकिन पिता दीनानाथ को बेटी का फिल्मों के लिए गाना पसंद नहीं आया और उन्होंने फिल्म से गीत हटवा दिया। पिता की मौत के समय लता 13 वर्ष की थीं। नवयुग चित्रपट फिल्‍म कंपनी के मालिक और इनके पिता के दोस्‍त मास्‍टर विनायक ने इनके परिवार को संभाला और लता मंगेशकर को गायक बनाने में मदद की।

साइकिल खरीदना चाहती थीं...
लता कभी एक साइकिल खरीदने के सपने देखा करती थीं। बचपन में सहेलियों की साइकिल चलाना सीखा भी, लेकिन उस वक्त माली हालत इतनी कमजोर थी कि वह साइकिल नहीं खरीद सकती थीं। जब वह फिल्मों में गायन करने लगीं और आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई, तब तक साइकिल चलाने की उम्र बीत गई थी।

जब ये सुरीली आवाज भी हो गई खारिज...
संगीत की दुनिया में आठ दशक तक राज करने वाली लता मंगेशकर के गाने को एक बार खारिज कर दिया गया था। फिल्म 'शहीद' के निर्माता शशधर मुखर्जी ने यह कहते हुए लता को खारिज किया था कि उनकी आवाज बहुत पतली है।

पहला गाना, जिससे जानने लगे लोग...
1949 में 'आएगा आने वाला' के बाद उनके प्रशंसकों की संख्या बढ़ने लगी। इस बीच उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ लता ने काम किया। अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एसडी बर्मन, आरडी बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र इत्यादि सभी संगीतकारों ने उनकी प्रतिभा का लोहा मान लिया।

किशोर कुमार से पहली दिलचस्प मुलाकात
40 के दशक में लता ने फिल्मों में गाना शुरू ही किया था, तब वह अपने घर से लोकल ट्रेन से मलाड जाती थीं। वहां से उतरकर स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज जाती थीं। रास्ते में एक लड़का उन्हें घूरता और पीछा करता था। एक बार लता खेमचंद प्रकाश की फिल्म में गाना गा रही थीं। तभी वह लड़का भी स्टूडियो पहुंच गया। उसे वहां देख लता ने खेमचंद से कहा कि चाचा, ये लड़का मेरा पीछा करता रहता है। तब खेमचंद ने कहा, अरे! ये तो अपने अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर है। उसके बाद दोनों ने उसी फिल्म में पहली बार साथ में गाना गाया।

रॉयल्टी को लेकर मोहम्मद रफी से साढ़े तीन साल तक चला झगड़ा
60 के दशक में लता दी अपनी फिल्मों में गाना गाने के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर चुकी थीं, लेकिन उन्हें लगता था कि सभी गायकों को रॉयल्टी मिले तो अच्छा होगा। लता, मुकेश और तलत महमूद ने एक एसोसिएशन बनाई थी। उन सबने रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी और प्रोड्यूसर्स से मांग रखी कि गायकों को रॉयल्टी मिलनी चाहिए, लेकिन उनकी मांग पर कोई सुनवाई नहीं हुई। फिर सबने एचएमवी के लिए रिकॉर्ड करना ही बंद कर दिया। तब कुछ निर्माताओं और रिकॉर्डिंग कंपनी ने मोहम्मद रफी को समझाया कि ये गायक क्यों झगड़े पर उतारू हैं। गाने के लिए जब पैसा मिलता है तो रॉयल्टी क्यों मांगी जा रही है। उन्होंने रॉयल्टी लेने से मना कर दिया। मुकेश ने लता से कहा, ‘लता दीदी रफी साहब को बुलाकर मामला सुलझा लिया जाए।’ फिर सबने रफी से मुलाकात की। सबने रफी साहब को समझाया तो वह गुस्से में आ गए। वह लता की तरफ देखकर बोले, ‘मुझे क्या समझा रहे हो। ये जो महारानी बैठी है, इसी से बात करो।’ तो इस पर लता ने भी गुस्से में कह दिया, ‘आपने मुझे सही समझा, मैं महारानी ही हूं।’ इस पर रफी ने कहा, ‘मैं तुम्हारे साथ गाने ही नहीं गाऊंगा।’ लता ने भी पलट कर कह दिया, ‘आप ये तकलीफ मत करिए, मैं ही नहीं गाऊंगी आपके साथ।’ इस तरह से लता और रफी के बीच करीब साढ़े तीन साल तक झगड़ा चला। 

तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार - 1973 में लता मंगेशकर को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायन के लिए पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला ‘बीती ना बिताई रैना..’ गाने के लिए। फिल्म ‘कोरा कागज़’ के ‘रूठे रूठे पिया मनाऊं कैसे...’ गाने के लिए दूसरा और तीसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म ‘लेकिन’ के गाने ‘यारा सीली सीली...’ के लिए मिला।