नई दिल्ली। कहते हैं, ‘मुश्किलें दिलों के इरादों को आजमाएंगी, आंखों के पर्दों को निगाहों से हटाएंगी, सौ बार गिरकर भी तुमको संभालना ही होगा, ये ठोकरें ही हमको चलना सिखाएंगी।’ कोरोना काल में लगी ठोकर के बाद भी अपने आत्मविश्वास की बदौलत पति-पत्नी की इस जोड़ी ने हार नहीं मानी और अपने नए काम की शुरुआत की। उनके इस प्रयास से न केवल उनकी रोजी-रोटी चलने लगी है बल्कि सैकड़ों लोगों को कम रेट में पेटभर भोजन मिल रहा है।

कार में ही बना रखा है आशियाना और अपनी दुकान
देश की राजधानी दिल्ली में गुजर-बसर करना किसी आम इंसान के लिए इतना आसान नहीं है। हालांकि राहत की बात यह है कि यहां कई जगहों पर सस्ते दामों में अच्छा और स्वादिष्ट भोजन मिल जाता है। ऐसी ही एक जगह है दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम के पास वाला वह जक्शन जहां हर दोपहर लगभग 12.30 बजे एक सफेद रंग की ऑल्टो कार आकार रुकती है और उससे निकलने वाले दंपति गरमागरम भोजन परोसना शुरू कर देते हैं। इनका नाम है करन और अमृता। उनके हाथ से बने खाने की खुशबू इस कदर फैल जाती है कि देखते ही देखते सैकड़ों लोग वहां इकट्ठा हो जाते हैं।

इस काम से पहले करन करते थे प्राइवेट ड्राइवर की नौकरी
अमृता और करन के हाथों से बने खाने की तारीफ हर कोई करता है। आज उनकी कार के आने का इंतजार हर शख्स को रहता है। इस काम के पहले अमृता के पति एक सांसद की गाड़ी चलाने का काम करते थे। बतौर चालक का काम करते हुए उन्हें हर महीने 14 हजार रुपए मिल रहे रहे थे। इससे उनका और उनकी पत्नी का गुजरा हो जाता था, लेकिन कोरोना महामारी में रातोंरात करन को नौकरी से निकाल दिया गया। तब उनकी पत्नी ने उनका साथ देते हुए इस काम की शुरुआत की।

रातोंरात छिन गई थी सिर से छत
करन जहां काम करते थे उनका परिवार उन्हीं सांसद के घर के बाहर बने एक कमरे में रहता था। लॉकडाउन लगने के बाद जब उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया तो उनसे घर खाली करने की बात भी कह दी गई। करन बताते हैं कि वहां हमें फौरन घर खाली करने के लिए कहा गया। एक-आध दिन का ही समय था। हम बेघर हो गए थे। हमारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं थी। इसके अलावा साल 2016 से मुझसे परिवार वालों ने व्यक्तिगत और संपत्ति के विवाद के कारण रिश्ते तोड़ लिए थे, जिससे मैं उनसे भी मदद नहीं मांग सकता था।

सामान बेचकर खरीदे थे बिजनेस के लिए बर्तन
अमृता को बचपन से ही कुकिंग का काफी शौक था। इस घटना के पहले भी वह अपने खाली समय का इस्तेमाल खाना बनाने में और उसे लोगों तक पहुंचाने में करना चाहती थीं लेकिन एक राजनेता के घर काम करने की अपनी सीमाएं थीं। अचानक नौकरी चली जाने के बाद अमृता ने ही छोले, राजमा-चावल, कढ़ी, पकौड़े बेचने का सुझाव दिया। करन इस बिजनेस के लिए मान गए और पूंजी जुटाने के लिए दोनों ने अपनी अलमारी सहित अन्य सामान बेच दिया। कुछ दोस्तों और अमृता के पिता ने भी छोटी सी राशि का योगदान दिया, जिससे उन्होंने कुछ किराने का सामान और खाना पकाने के बर्तन खरीदे।

सोशल मीडिया ब्लॉगर्स से मिली काफी मदद
दोनों ने एक सीमित मेन्यू के साथ एक दिन में लगभग 1,600 रुपये का निवेश किया। उनके पास अपने बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए मार्केटिंग बजट नहीं था। हालांकि, इस दौरान उन्हें सोशल मीडिया से भरपूर समर्थन मिला। बिना किसी मार्केटिंग बजट के बिजनेस को बढ़ाने का यह एक अच्छा तरीका था। ब्लॉगर्स ने उनकीकाफी हद तक मदद की। करन कहते हैं कि धीरे-धीरे हमने 320 रुपये का मुनाफा कमाना शुरु किया, जो बढ़कर प्रतिदिन 450 रुपये और फिर 800 रुपये हो गया। इस तरह उनका बिजनेस चल निकला।