नई दिल्ली। कोलकाता की रहने वाली श्यामा दासी बीते कई वर्षों से बुजुर्ग, विधवा व बेसहारा महिलाओं की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रही हैं। वृंदावन में वर्ष 2019 में संचालित उनकी 'हे राधे करुणामयी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट' संस्था में आज देश भर से आईं 80 से ज्यादा बुजुर्ग महिलाएं हैं। उनके अनुसार मेरा जन्म कोलकाता में हुआ और वहीं पर पली-बढ़ी। शुरू से ही मेरा मन पूजा-पाठ में अधिक लगता था। मेरी छह मौसियां हैं और मामा एक भी नहीं। जब नाना-नानी नहीं रहे, तो नानी के घर जाना भी बंद हो गया। छुट्टियों में जब सारे बच्चे अपने मामा के घर जाते, तो मैं भी मां से मामा के घर जाने की जिद करती थी। एक बार मां ने कहा कि तुम्हारे मामा श्रीकृष्ण हैं और वह वृंदावन में रहते हैं। तब से मैं भी यही मानने लगी थी। वर्ष 2000 की बात है, मैं 11 साल की थी, दादी और चाचा दर्शन के लिए वृंदावन आ रहे थे। मैंने भी साथ चलने की जिद पकड़ ली, अंत में उन्हें मुझे लेकर आना पड़ा। जब मैं यहां पहुंची, तो बांके बिहारी के दर्शन करने के बाद पता चला कि मेरे मामा कोई आम आदमी नहीं, भगवान हैं। फिर मैंने यहीं आश्रम में रहने की जिद पकड़ ली। थक-हारकर दादी और चाचा वापस लौट गए। कुछ समय बाद मुझे मनाने के लिए पिता जी बुआ को साथ लेकर आए, क्योंकि मैं बुआ की लाडली थी। जब मैंने बुआ को वृंदावन घुमाया, तो वह भी मेरे साथ यहीं रुक गईं।      

ऐसे मिली प्रेरणा
मैं प्रतिदिन मंदिर में दर्शन करती थी। इस दौरान कुछ बुजुर्ग और विधवा माताओं से मेरा लगाव हो गया। एक दिन एक बुजुर्ग माई दुर्घटना में घायल हो गईं। मैं उन्हें लेकर अस्पताल गई, पर इलाज के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। काफी प्रयास के बाद एक संस्था और कुछ लोगों की मदद से मैंने उनके इलाज और रहने की व्यवस्था की। इसके बाद मेरा ध्यान पूजा-पाठ से ज्यादा बेसहारा व बुजुर्ग महिलाओं पर जाने लगा। 

शुरू की संस्था
इसी बीच मैं उसी संस्था से जुड़कर 30 बीमार व असहाय माताओं की सेवा करने लगी। कुछ समय बाद मैं अपने माता-पिता के साथ दिल्ली में रहने लगी। इस दौरान वृंदावन से बुजुर्ग माताओं का काफी फोन आता। वर्ष 2015 में जब मैं वृंदावन लौटी, तो वे बुजुर्ग मांएं मुझे ढूंढती हुई आ गईं और मेरे साथ रहने की जिद करने लगीं। फिर किराये पर एक मकान लेकर हम साथ में रहने लगे। वर्ष 2019 में मैंने 'हे राधे करुणामयी पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट' नाम से संस्था शुरू की और बुजुर्ग माताओं की सेवा करने लगी। 

बेसहारों की सेवा
आज मेरी इस संस्था में देश भर से आईं 80 से अधिक बुजुर्ग माताएं हैं, जिनकी उम्र 50 से 103 वर्ष के बीच है। अब इन बुजुर्ग व बेसहारा माताओं की सेवा ही मेरे जीवन का उद्देश्य है। यह संस्था लोगों की मदद से चलती है।