नई दिल्ली। श्रीकांत बोल्ला आज किसी पहचान के मोहताज नहीं, उनके जीवन पर जल्द ही बॉलीवुड फिल्म बनने वाली है। इस नौजवान नेत्रहीन सीईओ ने 4.8 करोड़ पाउंड यानी करीब 483 करोड़ रुपये की एक कंपनी खड़ी कर दी। उनका यह सफर आसान नहीं था।  श्रीकांत की मानें तो नेत्रहीन होने के कारण वे हाईस्कूल में गणित और विज्ञान नहीं पढ़ सकते। इसके बाद श्रीकांत यह मामला कोर्ट तक ले गए और फैसला उनके हक में आया। ग्रामीण भारत में रहने वाले श्रीकांत जब छह साल के थे, तब लगातार दो साल तक हर दिन वह कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचते थे। अपने सहपाठियों और भाई की मदद से श्रीकांत रोज यह सफर तय करते थे। वह कहते हैं, मुझसे कोई बात नहीं करता था क्योंकि मैं देख नहीं सकता था। गरीब, अशिक्षित परिवार में जन्मे श्रीकांत का उनके समुदाय ने भी बहिष्कार कर दिया था। वे कहते हैं, मेरे माता-पिता को बताया गया था कि मैं अपने घर तक कि रखवाली करने में अक्षम हूं क्योंकि अगर एक कुत्ता भी मेरे घर में घुस जाए तो मैं वह भी नहीं देख सकता। 

माता-पिता को दिया जाता था हत्या करने का सुझाव
31 वर्षीय श्रीकांत अपने बुरे अनुभवों को याद करते हुए बताते हैं, बहुत से लोग मेरे माता-पिता के पास आते और उन्हें तकिए से दबाकर मेरी हत्या करने तक का सुझाव देते थे। लोगों की बातों को अनदेखा करते हुए, श्रीकांत के  माता-पिता ने हमेशा अपने बच्चे का साथ दिया। जब वह आठ साल के हुए, तो श्रीकांत के पिता ने कहा कि उनके पास एक अच्छी खबर है। श्रीकांत को नेत्रहीनों के बोर्डिंग स्कूल में दाखिला मिल गया था और इसके लिए उन्हें अपने घर से करीब 400 किलोमीटर दूर हैदराबाद शहर जाना था। उस समय, यह शहर आंध्र प्रदेश में आता था। माता-पिता से दूर रहने के बावजूद श्रीकांत जल्दी ही नई व्यवस्था में ढल गए थे। उन्होंने यहां तैराकी सीखी, शतरंज खेला और क्रिकेट में भी हाथ आजमाया। यह क्रिकेट ऐसी बॉल से खेली जाती थी, जिसकी गेंद में अलग तरह की आवाज होती, जिससे नेत्रहीन भी गेंद की दिशा पता लगा सकें. उन्होंने कहा, सारा काम हाथ और कान का था। 

नेत्रहीन होने की वजह से विज्ञान और गणित पढ़ने पर थी रोक
श्रीकांत यहां अपने शौक पूरे कर रहे थे लेकिन साथ ही वह अपने भविष्य के बारे में भी सतर्क थे। उनका हमेशा से सपना रहा कि वह इंजीनियर बने और वह जानते थे कि इसके लिए विज्ञान और गणित पढ़ना जरूरी है।
जब समय आया, तो श्रीकांत ने ये मुश्किल विषय चुने लेकिन स्कूल ने इसे अवैध बताकर मना कर दिया। श्रीकांत का स्कूल आंध्र प्रदेश राज्य शिक्षा बोर्ड के तहत आता था और वहां एक नेत्रहीन को विज्ञान और गणित की पढ़ाई करने की इजाजत नहीं थी। यह नियम इसलिए था क्योंकि ग्राफ और डायग्राम जैसी चीजों की वजह से इन्हें नेत्रहीनों के लिए चुनौतीपूर्ण समझा जाता था। इसके बजाय ऐसे छात्र कला, भाषा, साहित्य और सोशल साइंस की पढ़ाई आसानी से कर सकते थे।

नियमों से तंग आकर श्रीकांत पहुंच गए थे हाईकोर्ट
श्रीकांत इस नियम से तंग आ चुके थे। श्रीकांत के एक शिक्षक भी इस नियम से नाखुश थे और उन्होंने अपने छात्र को प्रोत्साहित किया कि वह इसके खिलाफ कोई कदम उठाएं। दोनों अपने मामले की पैरवी करने के लिए आंध्र प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पास गए, लेकिन उन्हें बताया गया कि इसमें कुछ भी नहीं किया जा सकता है। बिना डरे आगे बढ़ रहे शिक्षक और छात्र की इस जोड़ी को एक वकील मिला। इसके बाद स्कूल प्रबंधन टीम के समर्थन से दोनों ने आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में मामला दायर किया, जिसमें नेत्रहीन छात्रों को गणित और विज्ञान की पढ़ाई करने की मंजूरी देने के लिए शिक्षा कानून में बदलाव करने की अपील की गई थी। श्रीकांत कहते हैं, हमारी ओर से कोर्ट में वकील ने लड़ाई लड़ी। छात्र को खुद अदालत में पेश होने की जरूरत नहीं थी। केस आगे बढ़ ही रहा था कि श्रीकांत ने एक खबर सुनी कि हैदराबाद के एक मेनस्ट्रीम स्कूल- चिन्मय विद्यालय ने नेत्रहीन छात्रों को विज्ञान और गणित पढ़ाने की   पेशकश की थी। यह स्कूल श्रीकांत के लिए एक मौके से कम नहीं था। श्रीकांत ने खुशी-खुशी स्कूल में दाखिला ले लिया था। अपनी कक्षा में श्रीकांत एकमात्र नेत्रहीन छात्र थे लेकिन वह कहते हैं, उन्होंने तहेदिल से मेरा स्कूल में स्वागत किया। मेरी क्लास टीचर बहुत स्नेहशील थीं। उन्होंने मेरी मदद के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने स्पर्श रेखाचित्र (टैक्टाइल डायग्राम) बनाना भी सीखा। टैक्टाइल डायग्राम रबड़ की मैट पर पतली सी फिल्म का इस्तेमाल करके बनाए जाते हैं। जब इस पर पेंसिल से चित्र बनाते हैं, तो वह एक उभरी सी रेखा बनती है, जिसे हाथों से छूकर महसूस कर सकते हैं। इसके छह महीने बाद कोर्ट से खबर आई- श्रीकांत अपना केस जीत चुके हैं।

श्रीकांत का संघर्ष लाया रंग
अदालत ने फैसला सुनाया था कि नेत्रहीन छात्र आंध्र प्रदेश राज्य बोर्ड के सभी स्कूलों में विज्ञान और गणित की पढ़ाई कर सकते हैं। श्रीकांत ने कहा, मैं बेहद खुश था। मुझे दुनिया के सामने यह साबित करने का पहला मौका मिला था कि मैं यह कर सकता हूं और आने वाली पीढ़ी को अब मुकदमे दायर करने और अदालत में लड़ने की चिंता करने की जरूरत नहीं है। अदालत के फैसले के कुछ ही समय बाद श्रीकांत राज्य सरकार के स्कूल में लौटे और वहां उन्होंने अपने प्रिय विज्ञान और गणित जैसे विषयों की पढ़ाई की। श्रीकांत को परीक्षा में 98 प्रतिशत अंक मिले। श्रीकांत की योजना भारत के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) में आवेदन करने की थी लेकिन कोई भी कोचिंग स्कूल श्रीकांत को दाखिला नहीं देता था। उनसे शीर्ष कोचिंग संस्थानों ने कहा कि वो कोर्स का भार नहीं संभाल सकेंगे। तब उन्होंने श्रीकांत ने अमेरिकी यूनिवर्सिटियों में आवेदन किया और उन्हें पांच प्रस्ताव भी मिले। श्रीकांत ने मैसाचुसेट्स के कैंब्रिज के एमआईटी को चुना, जहां वह पहले नेत्रहीन अंतरराष्ट्रीय छात्र थे। श्रीकांत साल 2009 में वहां पहुंचे और अपने शुरुआती अनुभव को उन्होंने 'मिला-जुला' करार दिया।

भीषण ठंड थी झटका
श्रीकांत बताते हैं, यहां की भीषण ठंड मेरे लिए पहला झटका था क्योंकि मुझे इतने सर्द मौसम में रहने की आदत नहीं थी। इसके अलावा खाने का स्वाद और सुगंध भी कुछ अलग था। मैंने शुरुआती एक महीने तक केवल फ्रेंच फ्राइज और फ्राइड चिकन फिंगर्स खाकर गुजारा किया, लेकिन श्रीकांत जल्द ही यहां के रहन-सहन में ढलने लगे थे। वह कहते हैं, एमआईटी में बिताया समय मेरे जीवन के सबसे प्यारे पलों में से है। पढ़ाई के स्तर पर यह काफी कठिन था, लेकिन यूनिवर्सिटी ने मुझे वहां रहने और मेरे हुनर को निखारने में मदद की। पढ़ाई करते हुए ही श्रीकांत ने हैदराबाद में युवा विकलांगों को प्रशिक्षित और शिक्षित करने के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन की शुरुआत की, जिसका नाम समन्वय सेंटर फॉर चिल्ड्रन विद मल्टिपल डिसेबिलिटी था। उन्होंने अपने जुटाए पैसों से हैदराबाद में एक ब्रेल लाइब्रेरी भी खोली। श्रीकांत का जीवन अच्छा चल रहा था। एमआईटी से मैनेजमेंट साइंस की पढ़ाई करने के बाद उन्हें कई नौकरियों के प्रस्ताव मिले लेकिन उन्होंने अमेरिका में न रहने का फैसला किया। श्रीकांत के स्कूल के अनुभवों के निशान उनके मन से मिटे नहीं थे। उन्हें हमेशा लगता रहा कि अपने देश में उनके काम अधूरे पड़े हैं।

विकलांगों को नौकरी देने के लिए बना दी कंपनी
श्रीकांत कहते हैं, मुझे जीवन में हर चीज के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा। यह स्थिति तब थी, जब मेरी तरह हर कोई नहीं लड़ सकता या यूं कहें कि मेरे जैसे गुरु सबके पास नहीं हो सकते।  वह कहते हैं कि उन्हें एहसास हुआ कि निष्पक्ष शिक्षा व्यवस्था के लिए लड़ने का तब तक कोई औचित्य नहीं, जब तक विकलांगों के लिए पढ़ाई के बाद नौकरी के भी सामान्य विकल्प न हों। इसलिए श्रीकांत ने सोचा, "मैं अपनी कंपनी ही क्यों न शुरू करूं, जहां मैं ऐसे लोगों को नौकरी दूं जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं। श्रीकांत साल 2012 में हैदराबाद लौटे और उन्होंने "बोलेंट इंडस्ट्रीज" की शुरुआत की। यह ऐसी पैकेजिंग कंपनी है, जो इको-फ्रेंडली उत्पाद का निर्माण करती है। इस वक्त ये 483 करोड़ की कंपनी है। इस कंपनी में अधिक से अधिक विकलांग लोगों के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं वाले लोगों को रोजगार दिया जाता है। कोरोना महामारी से पहले तक कंपनी के 500 कर्मचारियों में से करीब 36 प्रतिशत ऐसे ही लोग थे। 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की यंग ग्लोबल लीडर्स 2021 की सूची में शामिल
बीते साल, 30 साल की उम्र में श्रीकांत को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की यंग ग्लोबल लीडर्स 2021 की सूची में शामिल किया गया था। श्रीकांत को उम्मीद थी कि तीन सालों के अंदर उनकी कंपनी बोलेंट इंडस्ट्रीज़ ग्लोबल आईपीओ बन जाएगी, जहां इसके शेयर एक साथ कई अंतरराष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होंगे। श्रीकांत पर बॉलीवुड फिल्म भी बनने वाली है। जाने-माने अभिनेता राजकुमार राव इस फिल्म में श्रीकांत का किरदार निभाएंगे और इसकी शूटिंग जुलाई में शुरू होगी। श्रीकांत को उम्मीद है कि अब जब वह पहली बार किसी से मिलेंगे, तो लोग उन्हें पहले की तरह कम करके आंकना बंद कर देंगे। श्रीकांत कहते हैं, जब मैं किसी से मिलता हूं तो लोग सोचते हैं...अरे यह अंधा है..कितना दुःखद है लेकिन जैसे ही मैं उन्हें यह बताता हूं कि मैं कौन हूं और क्या करता हूं, सब कुछ बदल जाता है। हर जगह आपकी शख्सियत मायके रखती है।