नई दिल्ली। कहते हैं कि सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो। कुछ इसी तरह का प्यार किया था, अटल बिहारी वाजपेयी ने भी। राजनीतिक गलियारे में हर कोई उनके इस प्यार के बारे में जानता था, लेकिन आम लोग उनके इस पहलू से अनजान ही रहे। वाजपेयी ताउम्र अविवाहित रहे। उनके दिल में अपनी महिला मित्र के लिए खास जगह थी लेकिन राजनीतिक कैरियर के कारण वह उन्हें कभी अपना नहीं सके। पहले लड़की के घरवालों ने अटल को शादी के लिए लायक नहीं समझा और उसकी शादी कहीं और कर दी और जब बाद में दोनों एक होना चाहते थे तो राजनीतिक कॅरियर आड़े आ गया। इस तरह अटल बिहारी बाजपेयी और राजकुमारी कौल कभी एक-दूसरे के हो न सके। हालांकि दोनों का यह नापाक प्यार ताउम्र बना रहा और दोनों एक दूसरे की बहुत इज्जत करते थे। अटल हमेशा उनकी बात सर्वोपरि रखते थे।

लेखिका सागरिका घोष ने लिखी है जीवनी
इस बात का खुलासा मशहूर लेखिका एवं पत्रकार सागरिका घोष ने हाल ही में वाजपेयी की जीवनी पर प्रकाशित अपनी पुस्तक में किया है। बतौर सागरिका उनकी जिंदगी में राजकुमारी कौल के लिए एक खास जगह थी। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) में पढ़ाई के दौरान वाजपेयी की मुलाकात राजकुमारी हक्सर से हुई थी, जिनकी तरफ वो खिंचे चले गए थे। सागरिका घोष बताती हैं, "उस जमाने में दोनों का व्यक्तित्व प्रभावित करने वाला हुआ करता था। राजकुमारी हक्सर बहुत सुंदर थीं, खाससतौर से उनकी आंखें। उन दिनों बहुत कम लड़कियां कॉलेज में पढ़ा करती थीं। वाजपेयी उनकी तरफ आकर्षित हो गए थे, राजकुमारी भी उन्हें पसंद करने लगीं थीं।
पहले उनकी दोस्ती राजकुमारी के भाई चांद हक्सर से हुई, लेकिन जब शादी की बात आई तो राजकुमारी के परिवार ने शिंदे की छावनी में रहने वाले और आरएसएस की शाखा में रोज जाने वाले वाजपेयी को अपनी बेटी के लायक नहीं समझा। राजकुमारी हक्सर की शादी दिल्ली के रामजस कॉलेज में दर्शन शास्त्र पढ़ाने वाले ब्रज नारायण कौल से कर दी गई।

राजकुमारी कौल ने वाजपेयी के साथ अपने संबंधों को स्वीकारा
अटल बिहारी वाजपेयी के एक और जीवनीकार किंगशुक नाग अपनी क़िताब 'अटल बिहारी वाजपेयी द मैन फॉर ऑल सीजन्स' में लिखते हैं। युवा अटल ने राजकुमारी के लिए लाइब्रेरी की एक किताब में एक प्रेम पत्र रख दिया था, लेकिन उन्हें उसका जवाब नहीं मिला। दरअसल राजकुमारी ने उस पत्र का जवाब दिया था लेकिन वो पत्र वाजपेयी तक नहीं पहुंच सका। 

दिल्ली आए तो शुरू हुआ मिलने का सिलसिला
जब वाजपेयी सांसद के रूप में दिल्ली आ गए तो राजकुमारी से मिलने का उनका सिलसिला फिर से शुरू हो गया। भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी और इस समय नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य हरदीप पुरी की अटल बिहारी वाजपेयी से पहली मुलाकात प्रोफेसर ब्रज नारायण कौल के घर पर हुई थी, जो उनके गुरू हुआ करते थे। अस्सी के दशक में एक पत्रिका सैवी को दिए गए इंटरव्यू में राजकुमारी कौल ने स्वीकार किया था कि उनके और वाजपेयी के बीच परिपक्व संबंध थे, जिसे बहुत कम लोग समझ पाएंगे।  इस इंटरव्यू के अनुसार उन्होंने कहा था, वाजपेयी और मुझे अपने पति को इस रिश्ते के बारे में कभी सफाई नहीं देनी पड़ी। मेरे पति का और मेरा, वाजपेयी के साथ रिश्ता बहुत मजबूत था। 

राजकुमारी कौल पति सहित वाजपेयी के घर शिफ्ट हुईं
जब वाजपेयी को दिल्ली में बड़ा सरकारी घर मिला तो राजकुमारी कौल, उनके पति ब्रज नारायण कौल और उनकी बेटियां वाजपेयी के घर में शिफ्ट हो गए। सागरिका घोष बताती हैं, वाजपेयी के काफी नजदीक रहे बलबीर पुंज ने उन्हें बताया था कि जब वो पहली बार वाजपेयी के घर गए तो उन्हें कौल दंपत्ति को वहां रहते देख थोड़ा अजीब-सा लगा, लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनके लिए ये सामान्य सी बात है तो उन्होंने भी इस बारे में सोचना छोड़ दिया।
जब वाजपेयी के सबसे नजदीकी दोस्त अप्पा घटाटे वाजपेयी को अपने यहां खाने पर बुलाते थे तो वाजपेयी, राजकुमारी कौल और ब्रज नारायण कौल तीनों साथ-साथ उनके यहां जाते थे। पुंज कहते हैं कि वाजपेयी एक अध्यापक के रूप में बीएन कौल का बहुत आदर करते थे। ब्रज नारायण कौल ने न सिर्फ राजकुमारी और वाजपेयी के बीच दोस्ती को स्वीकार कर लिया था बल्कि वो वाजपेयी को बहुत पसंद करने लगे थे। वो अक्सर पूछते थे, अटल ने खाना खाया या नहीं? उनका भाषण कैसा था? उनके भाषण में जोश था या नहीं


मिसेज कौल की सिफारिश से करण थापर को मिला वाजपेयी का इंटरव्यू
मशहूर पत्रकार करण थापर एक बार वाजपेयी के इंटरव्यू के लिए उनसे संपर्क करना चाह रहे थे लेकिन बात बन नहीं पा रही थी। करण थापर अपनी आत्मकथा 'डेविल्स एडवोकेट' में लिखते हैं, मैंने थक हारकर वाजपेयी के रायसीना रोड वाले घर पर फोन मिलाया। काफी मशक्कत के बाद मिसेज कौल लाइन पर आईं, जब मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने कहा - मुझे उनसे बात करने दीजिए। इंटरव्यू हो जाना चाहिए। अगले दिन वाजपेयी इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गए। उनके पहले शब्द थे, आपने तो हाई कमांड से बात कर ली। अब मैं आपको कैसे मना कर सकता हूं। 

'कुंवारा हूं ब्रह्मचारी नहीं'
यह कहानी भी मशहूर है कि साठ के दशक में मिसेज कौल अपने पति को तलाक देकर वाजपेयी से शादी करना चाहती थीं, लेकिन उनकी पार्टी और आरएसएस का मानना था कि अगर वाजपेयी ऐसा करते हैं तो इसका उनके राजनीतिक करियर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। वाजपेयी ने ताउम्र शादी नहीं की लेकिन मिसेज़ कौल उनकी निजी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनीं रहीं। एक कार्यक्रम के दौरान वाजपेयी ने स्वीकार किया था, मैं कुंवारा हूं ब्रह्मचारी नहीं। वाजपेयी की जीवनी 'हार नहीं मानूंगा' में विजय त्रिवेदी लिखते हैं, "दोहरे मानदंडों वाली राजनीति में ये अलिखित प्रेम कहानी तकरीबन पचास साल चली और जो छिपाई नहीं गई, लेकिन उसे कोई नाम भी नहीं मिला। हिंदुस्तान की राजनीति में शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा कि प्रधानमंत्री के सरकारी आवास में ऐसी शख्सियत रह रही हो, जिसे प्रोटोकॉल में कोई जगह न दी गई हो, लेकिन जिसकी उपस्थिति सबको मंजूर हो। आरएसएस ने एक विवाहित महिला के साथ वाजपेयी के संबंधों पर कभी मुहर नहीं लगाई, लेकिन वो उनका कुछ बिगाड़ भी नहीं पाए, क्योंकि चुनावी राजनीति में वो उनके सबसे बड़े पोस्टर ब्वॉय थे, जिनमें भीड़ जमा करने की क्षमता थी। वाजपेयी और मिसेज कौल के संबंधों पर गुलजार का लिखा खामोशी फिल्म का वो गाना बिल्कुल सटीक बैठता है, हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू, हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्जाम न दो, सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो। 

मिसेज कौल के निधन पर सोनिया गांधी ने जताया था शोक
वर्ष 2014 में जब राजकुमारी कौल का 86 वर्ष की आयु में निधन हुआ था, तो उसके बाद जारी प्रेस रिलीज में कहा गया कि मिसेज कौल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के परिवार की सदस्य थीं। इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें वाजपेयी का सबसे 'अनजान अदर हाफ' बताया। हालांकि उस समय चुनाव प्रचार अपने चरम पर था, लेकिन सोनिया गांधी ने चुपचाप वाजपेयी के निवास पर जाकर उनके निधन पर अपनी संवेदना प्रकट की थी, उनके अंतिम संस्कार में न सिर्फ चोटी के भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, अमित शाह, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली मौजूद थे, बल्कि आरएसएस ने भी अपने दो वरिष्ठ प्रतिनिधियों सुरेश सोनी और राम लाल को वहां भेजा था। 2009 के बाद गंभीर रूप से बीमार हुए अटल बिहारी वाजपेयी राज कुमारी के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए थे। बाद में किंगशुक नाग ने लिखा, "राजकुमारी कौल के देहावसान के साथ भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी प्रेम कहानी हमेशा के लिए समाप्त हो गई। कई दशकों तक ये प्रेम कहानी पनपी लेकिन बहुत से लोग इससे अनजान ही रहे।