इंटर-स्टेट रूट में बस चलानी वाली सीमा ठाकुर हिमाचल प्रदेश की पहली महिला बस ड्राइवर हैं। आइए उनकी जर्नी के बारे में विस्तार से जानें। आज हमारे देश की महिलाएं क्या नहीं कर रही हैं? हर क्षेत्र में महिलाओं का दबदबा कायम है। ऐसे में एक महिला सीमा ठाकुर भी हैं, जो अपनी एक ऐसे क्षेत्र में अपना नाम बना चुकी हैं, जहां सिर्फ पहले पुरुषों का दबदबा था। सीमा हिमाचल राज्य परिवहन निगम की पहली महिला बस ड्राइवर हैं। वह इंटर-स्टेट रूट पर बस चलाती हैं।

अमूमन पहाड़ों पर आपने पुरुषों को ही बस चलाते हुए देखा होगा, लेकिन पहली बार इसे बदला है हिमाचल की सीमा ठाकुर ने, जिनपर न सिर्फ हिमाचल प्रदेश को बल्कि हम सभी को गर्व है। सोलन के अर्की की सीमा ने अपने शौक को जुनून में बदल दिया और आज इसी कारण उन्हें लोग जानते हैं। इससे पहले तक सीमा ठाकुर शिमला सोलन के बीच चलने वाली इलेक्ट्रिकल बस चलाती रही हैं। उनका सफर उन्हीं की तरह शानदार रहा है, आइए आज आप और हम उनके बारे में विस्तार से जानें।

अंग्रेजी में किया है एमए 

सीमा ठाकुर ने शिमला के कोटशेरा कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से अंग्रेजी में मास्टर किया है। पिता के बाद, सीमा ने पेशे के रूप में ड्राइविंग करना शुरू किया। पिता के साथ बस में सफर के दौरान ही सीमा को बस चलाने का शौक पैदा हुआ था। पिता से ही उन्होंने तालीम ली और वह शिमला में मैक्सी कैब और छोटी बस चला चुकी हैं।

उन्होंने बेटर इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में बताया था, 'लोगों को लगता है कि मैं अंग्रेजी में एमए होने की वजह से कोई दूसरा करियर भी चुन सकती थी। आगे टीचर बन सकती थी या किसी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा देकर अधिकारी बन सकती थी या फिर कुछ और भी कर सकती थी। मेरे आगे भविष्य की कई राहें खुली थीं, लेकिन मैंने इनमें से किसी को भी चुनने की जगह अपने मन की सुनी। मेरा मन बस ड्राइवरी में ही रमता था और मैंने वही किया।'

पिता को देख  बस चलाने का चढ़ा था शौक

सीमा के पिता बलिराम ठाकुर भी एचआरटीसी में बस ड्राइवर थे। वह अक्सर लंबे रूट पर जाया करते थे और कई बार सीमा को साथ ले जाते थे। उन्होंने इसी इंटरव्यू में बताया था, 'लाडली होने के नाते वह पूरे टाइम मुझे अपने साथ बिठाए रखते थे और मैं भी कभी-कभार उनकी गोद में बैठकर स्टेयरिंग थाम लिया करती थी।

उन्होंने आगे बताया, 'पहाड़ की उन घुमावदार सड़कों पर बस चलाते वक्त वह अक्सर गुनगुनाते थे। मैं भी सोचती थी कि उनकी तरह बस ड्राइवर की सीट पर बैठकर इन सड़कों पर रफ्तार भरूं। मेरे पिता का यही लक्ष्य रहता था कि उनकी सवारियां सुरक्षित उनकी मंजिल तक पहुंचे। इस बात ने मुझे भी प्रभावित किया और मैंने उनके इसी लक्ष्य को अपना इरादा बना लिया। बस ड्राइवर बनना मेरी प्राथमिकता और सपना दोनों बन गया और मैं खुशनसीब हूं कि मैं अपना यह सपना पूरा कर पाई।'

चालकों के लिए आवेदन करने वाली एकमात्र महिला थीं 

सीमा ने बस ड्राइवर बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए सबसे पहले हैवी व्हीकल लाइसेंस बनवाया। इसके बाद, एचआरटीसी में चालकों की भर्ती निकली, तो उन्होंने भी आवेदन कर दिया। सीमा ने बताया कि 121 पदों पर भर्ती थी, लेकिन आवेदन करने वाली वह अकेली महिला थीं। ड्राइविंग टेस्ट पास करने के बाद, साल 2016 में उन्हें एचआरटीसी में नियुक्ति मिल गई थी। शिमला में उन्हें निगम की टैक्सी चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इसके बाद, उन्होंने शिमला-सोलन के बीच चलने वाली 42 सीटर इलेक्ट्रिक बस भी चलाई।

करना पड़ा था चुनौतियों का सामना

एक बस ड्राइवर होने के नाते सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है, सवारियों को उनकी मंजिल पर सही से उतारना। फिर लोगों को लगता है कि महिलाएं अच्छी ड्राइवर नहीं होतीं। ऐसे में सीमा का यह काम करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण जरूर था। उन्हें भी वो ही सारे सवालों में घेरा गया था। कौन क्या सोच रहा और कह रहा है, उन्हें इन बातों को नजरअंदाज करके आगे बढ़ना था। इसके साथ आपको सभी नियमों का सही ढंग से पालन करना होता है। आप ओवरस्पीड नहीं कर सकते और साथ ही एक्सीलेटर और ब्रेक पर सही काबू होना भी जरूरी होता है। सीमा ने इन चीजों पर ध्यान दिया और आज वह एक सफल बस ड्राइवर हैं

हो चुकी हैं सम्मानित

आपको बता दें कि अपनी उपलब्धियों के लिए सीमा को कई सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। उन्हें हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी सम्मानित किया था और पूर्व राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय भी उन्हें प्रशंसा पत्र भेजकर उनकी सराहना कर चुके हैं।