नई दिल्ली। मजरूह सुल्तानपुरी का एक मशहूर शेर है कि ‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।’ इसे चरितार्थ किया है तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर के रहने वाले मणिकंदन आर ने। वह बीते बीस वर्षों से सूखे पड़े कुएं, बावड़ी, नदियों व झीलों को पुन: जीवित करने के काम में लगे हुए हैं। इस मशहूर शायर के लाजवाब शेर की तरह ही आज सैकड़ों लोग तमिलनाडु के इस नवयुवक के साथ जुड़ते जा रहे हैं। 

एक कारण जो बन गया जिंदगी का मिशन
मणिकंदन की मानें तो कुछ साल पहले इलाके के सारे कुएं धीरे-धीरे सूखने लगे। जिस कारण पानी की काफी दिक्कत होने लगी। मणिकंदन की मानें तो उन दिनों गांव के अधिकतर लोग कुओं पर निर्भर रहा करते थे। जब कुएं सूखने लगे तो मैंने देखा कि लोग कितने परेशान रहने लगे। दूर-दराज से पानी लाना, गर्मी के मौसम में तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना ग्रामीणों के लिए एक चुनौती बनता जा रहा था। इस बात को लेकर सभी परेशान थे लेकिन इसकी वजह किसी को पता नहीं थी। 

17 साल की उम्र में शुरू की मुहिम
इस घटना के समय मणिकंदन की उम्र यही कोई 17 वर्ष रही होगी। उन्होंने ऐसा होने का कारण जानना चाहा और इसकी खोज शुरू कर दी। काफी जांच-पड़ताल करने के बाद जानकारी हुई कि पास की एक नहर सूख गई है और उसके दो से चार किमी की दूरी पर बने दो डैम टूट चुके थे, जिसके कारण बरसात का पानी इकट्ठा नहीं हो पा रहा था। इस पूरी जानकारी को उन्होंने सरकारी अधिकारियों के साथ साझा किया। साल 2000 में हुई इस घटना का हल तो निकाल लिया गया लेकिन मणिकंदन आर ने ऐसे ही अन्य जलस्त्रोंतों को बचाने का काम शुरू कर दिया।

महज आठवीं पास है ये शख्स
समाज के लिए जीने वाला और प्रकृति के प्रति इतनी सजगता रखने वाले मणिकंदन आर ने महज आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। ऐसा नहीं कि पढ़ाई में उनकी रुचि नहीं थी बल्कि घर की माली हालत अच्छी न होने के कारण उन्हें जल्द ही स्कूल और पढ़ाई को अलविदा कहना पड़ गया था। बावजूद इसके यह शख्स अपनी सोच और सजगता के बल पर समाज की भलाई करने को आतुर है।

अकेले ही चले थे, उनके मिशन से जुड़ने लगे लोग
पढ़ाई के बाद मणिकंदन ने कुछ दिनों तक एक वर्कशॉप में बतौर एक ट्रेनी के रूप में भी काम किया। उन दिनों गांव की समस्या का निराकरण करने के बाद उनके मन में इस काम को आगे बढ़ाने का विचार आया। धीरे-धीरे अधिकारियों का सहयोग मिलने लगा। लोगों की समस्या का समाधान होता जा रहा था। सामाजिक कामों में रुचि बढ़ी तो मणिकंदन ने वृक्षारोपण, नए जल स्त्रोतों का निर्माण, पुराने स्त्रोतों की मरम्मत कराने का शौक उनका मिशन बन गया था। इसके लिए उन्होंने एक संस्था का गठन किया। शुरुआत में वह अकेले ही थे लेकिन समय के साथ लोग उनके मिशन से जुड़ने लगे। 

जल योद्धा का मिला सम्मान
अब इनका समूह वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों की मदद करने का काम करता है। इसके अलावा अन्य गतिविधियों में भी समूह सक्रियता के साथ काम कर रहा है। जिसमें सांस्कृतिक एक्टिविटी, जनसंख्या गणना, रक्तदान शिविर, मतदाता सूची जैसी कई अन्य काम शामिल हैं। आज, एनजीओ में छात्रों और पेशेवरों सहित लगभग 100 नियमित सक्रिय सदस्य हैं, जो झीलों, तालाबों, नहरों, चेक डैम आदि की सफाई में शामिल हैं। मणिकंदन को इस काम के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। इसी साल मणिकंदन को जल शक्ति मंत्रालय ने ‘जल योद्धा पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।