नई दिल्ली। लक्षिका डागर सिर्फ 21 साल की हैं, जिस उम्र में लोग 'ज़िंदगी में क्या करना है' सोचना शुरू करते हैं, लक्षिका ने काफी आगे निकल गई हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले की चिंतामन-जवासिया ग्राम पंचायत के चुनाव में उन्हें सरपंच चुना गया है। हालांकि लक्षिका मानती हैं कि उनके लिए यह डगर इतनी आसान नहीं होगी। वह चाहती हैं कि उन्होंने अपने लोगों से जो वादे किए हैं, उन्हें पूरा कर सकें, अपने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतर सकें।लक्षिका ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उम्र में कम होने की वजह से उन्हें पद संभालने को लेकर थोड़ी झिझक ज़रूर है लेकिन वो कोशिश करेंगी कि सभी के सहयोग से वो अपने लक्ष्य पूरे कर सकें।

रेडियो जॉकी भी रही हैं लक्षिका
उज्जैन शहर से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर स्थित चिंतामन जवासिया ग्राम पंचायत की कुल आबादी 3265 है। सरपंच के चुनावों में लक्षिका को 487 वोटों से जीत मिली है। लक्षिका के दादा भी इसी गांव में सरपंच रह चुके हैं।    उनके चाचा सामाजिक कार्यकर्ता हैं। लक्षिका अपनी जीत का श्रेय अपनी इस पृष्ठभूमि को भी देती हैं। उज्जैन के स्थानीय चैनल में एंकर और रेडियो जॉकी के तौर पर काम कर चुकीं लक्षिका ने बताया, जब उनके गांव की सीट अनुसूचित जाति महिला के लिए आरक्षित हुई तब परिवार ने सोचा कि इस चुनाव में घर की महिलाओं को आगे आना चाहिए, ताकि गांव की समस्याओं का सही तरह से हल निकाला जा सके।
इसके बाद ही लक्षिका को चुनाव लड़ाने का फैसला परिवार ने किया। 

सात महिलाएं थीं चुनाव में
गांव में कुल सात महिलाएं चुनाव मैदान में थीं और उनमें सबसे कम उम्र की लक्षिका थीं। खास बात यह है कि लक्षिका की जीत पर लगभग पूरा गांव खुश है। गांववालों का मानना है कि गांव की पढ़ी-लिखी युवा लड़की गांव की समस्या को आसानी से हल कर सकने में सक्षम है। लक्षिका इस समय उज्जैन के भारतीय इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज से मास कम्युनिकेशन कर रही हैं। यह उनका अंतिम वर्ष है। माता-पिता के अलावा परिवार में लक्षिका के अलावा एक भाई और बहन हैं. वो परिवार में सबसे छोटी हैं। उनके पिता दिलीप डागर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में अधिकारी हैं। 

कैसे तय किया जीत का रास्ता
लक्षिका ने चुनाव जीतने से पहले गांव के हर शख्स से मुलाकात की। उन्होंने कुछ मुद्दों पर चर्चा की, जिसे उन्होंने प्राथमिकता में रखने की बात की। गांव की सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी की है। नाली की समस्या भी विकराल है, जिसकी वजह से सड़कों पर गंदा पानी फैला रहता है। गरीब लोगों तक आवास योजना के फायदे नहीं पहुंच रहे हैं। इसके साथ ही पेंशन योजना और दूसरी योजनाओं का लाभ भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है।
लक्षिका गांव में ई-गवर्नेंस सिस्टम लाने की बात करती हैं, जिसमें हर योजना की मॉनिटरिंग वो खुद करेंगी ताकि लोगों के काम एक निश्चत समय में पूरे हो सकें। लक्षिका ने बताया कि हम कोशिश करेंगे कि लोग जो आवेदन करते हैं उसमें हम नजर रखें कि उन्होंने कब आवेदन किया है और कब तक उनका काम हो जाएगा ताकि उन्हें बार-बार पंचायत के चक्कर न लगाने पड़े। उनका मानना है कि इस तरह काम करके निश्चित तौर पर बदलाव आएगा।