नई दिल्ली। भरत पारेख दशकों से जीवन बीमा निगम की पॉलिसी बेच रहे हैं। इसके लिए वह हर दिन श्मशान जाते हैं ताकि लोगों के डेथ क्लेम का सेटलमेंट करा सकें। इस काम को वह मुफ्त में करते हैं। आज वह देश के उन चुनिंदा एजेंटों में शामिल हैं, जिन्होंने कई हजार पॉलिसी करके रिकॉर्ड बनाया है। वह हर रोज जीवन बीमा की पॉलिसी बेचने के लिए नागपुर के अखबारों में छपने वाली मौत की सूचनाओं और श्मशान घाटों को खंगालते हैं। पारेख कहते हैं, भारत में आपको अंतिम संस्कार में जाने के लिए किसी न्योते की जरूरत नहीं है। आप अर्थी ले जा रहे लोगों को देखकर ही शोक में डूबे परिवार को पहचान लेंगे। आप मृतक के रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलते हैं और अपने बारे में बताते हैं। आप उनसे कहिए कि मरने वाले के जीवन बीमा की रकम जल्द से जल्द पाने में आप उनकी मदद करेंगे और आप अपना विज़िटिंग कार्ड उनके पास छोड़ जाइए। तेरहवीं हो जाने के बाद कुछ परिवार उन्हें फोन करते हैं लेकिन अधिकांश लोगों से वो घर-घर जाकर मिलते हैं। पारेख ये सुनिश्चित करते हैं कि डेथ क्लेम समय पर सेटल हो जाए। पारेख लोगों से पूछते हैं कि किसी की मौत से उनके परिवार पर क्या वित्तीय असर हुए, क्या उनके ऊपर कोई उधार हैं, क्या उन्होंने पर्याप्त राशि का जीवन बीमा लिया हुआ है और क्या उनके पास बचत या कोई निवेश है? वो कहते हैं, मैं किसी की मौत से परिवार पर होने वाले असर को समझता हूं। मैंने अपने पिता को तब खोया था, जब मैं बहुत छोटा था। 55 साल के पारेख देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के 13.6 लाख एजेंटों में से एक हैं। हाल ही में शेयर बाज़ार में दस्तक देने वाली एलआईसी ने 28.6 करोड़ पॉलिसी बेची हैं और इसमें एक लाख से ज़्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। 66 साल पुरानी कंपनी एलआईसी को देश का लगभग हर घर जानता है। इसकी 90 फीसदी से अधिक पॉलिसी पारेख जैसे एजेंटों ने ही बेची हैं। 

पत्नी भी हैं इश्योरेंस एजेंट
भरत पारेख एलआईसी के स्टार एजेंटों में से भी एक हैं। वो किसी उत्साही सेल्समैन जैसे ही हैं जो लोगों को किफायती पॉलिसियों के बारे में बताते हैं। अब तक उन्होंने 32.4 करोड़ डॉलर का बीमा बेचा है, जिनमें से अधिकांश संतरों के लिए मशहूर नागपुर शहर और उसके आसपास के इलाकों से ही हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने अभी तक करीब 40000 पॉलिसियां बेची हैं और उन्हें इनमें से एक तिहाई पर कमिशन मिलता है। इसके अतिरिक्त वो प्रीमियम जमा करने और क्लेम सेटल करवाने जैसी सेवाएं मुफ्त में देते हैं। ऐसा प्रोफेशन जिसमें कोई सिलेब्रिटी नहीं, उसमें पारेख किसी सितारे जैसे ही हैं। मीडिया रिपोर्टों में कहा जाता है कि उनकी आमदनी एलआईसी के चेयरमैन से भी अधिक है। करीब तीन दशकों से, पारेख मिलियन डॉलर राउंड टेबल के सदस्य हैं। ये दुनिया भर के बड़े लाइफ इंश्योरेंस और फाइनेंशियल सर्विसेज में काम करने वाले लोगों का एक समूह है। पारेख को उनके प्रेरक भाषणों के लिए बुलाया जाता है। पारेख ने एक बार अपने इस भाषण का ऑडियो कैसेट बनाकर भी बेचा और इसका टाइटल था, मीट द नंबर 1, बी द नंबर 1। पारेख के व्यस्त दफ्तर में 35 लोग उनके लिए काम करते हैं। यहां वह अपने ग्राहकों को अलग-अलग वित्तीय सेवाएं देते हैं, हालांकि, उनके बिज़नेस का एक बड़ा हिस्सा बीमा ही है। पारेख एक बड़े अपार्टमेंट में अपनी पत्नी बबीता के साथ रहते हैं। बबीता भी इंश्योरेंस एजेंट हैं। बबीता की मानें तो हाल ही में एक दिन शाम के वक्त पारेख अपनी नई चमकती हुई इलेक्ट्रिक एसयूवी से लेने आए। उन्होंने मुझसे बच्चों की तरह उत्साहित होकर कहा, देखो ये कितनी तेज चलती है।

परेशानियों से भरा रहा बचपन
उन्होंने बहुत जल्दी तरक्की की। पारेख ने एक किताब लिखी है, जिसके एक हिस्से में बचत को लेकर सलाह दी गई है और दूसरे हिस्से में उन्होंने अपने जीवन के बारे में बताया है। इसमें उन्होंने वॉल्ट डिज्नी को कोट किया है, अगर आप सपना देख सकते हैं, तो आप वो असल में कर सकते हैं। उनकी तरक्की के पीछे स्पष्ट तौर पर यही सोच रही। एक कपड़ा मिल वर्कर और गृहिणी मां के बेटे भारत पारेख के पास वास्तव में सपनों के लिए कोई जगह नहीं थी।
वो एक 200 वर्ग फुट के घर में अपने माता-पिता के साथ रहते थे, जहां पड़ोस में ही उनके आठ अन्य रिश्तेदार भी थे। जिंदगी मुश्किल थी। सारे भाई-बहन मिलकर अगरबत्ती को डिब्बे में पैक करने का काम करते थे ताकि घर की जरूरतें पूरी हो सकें। जब भरत पारेख 18 साल के हुए, तब उन्होंने सुबह कॉलेज क्लास लेने के बाद इंश्योरेंस बेचना शुरू किया। वो साइकल से संभावित क्लाइंट को ढूंढते थे और उनकी बहन कागजी काम संभालती थी।
पॉलिसी बेचने के लिए वो क्लाइंट के सामने ऐसी बातें करते थे, जैसी हर घर में सुनने को मिलती हैं। जीवन बीमा उस अतिरिक्त टायर की तरह है, जिसकी ज़रूरत गाड़ी पंक्चर होने या ब्रेकडाउन होने पर पड़ती है। पारेख ने यही लाइनें अपने पहले ग्राहक को कही थीं। ग्राहक ने पॉलिसी खरीदी और पारेख को इसके लिए 100 रुपए कमीशन के तौर पर मिले।

शुरूआत में बीमा बेचना मुश्किल था
पहले छह महीनों में पारेख ने छह पॉलिसी बेचीं। काम के पहले साल में उन्होंने कमीशन के तौर पर करीब 15000 रुपए कमाए जो वो घर पर देते थे। पारेख बीते दिनों को याद करते हुए कहते हैं, जीवन बीमा बेचना मुश्किल था। कई बार मैं घर जाकर रोया करता था। बीमा एजेंटों की छवि अक्सर खराब रहती है और उन्हें एक ऐसे शिकारी के तौर पर देखा जाता है जो ग्राहकों की मुश्किलों का फायदा उठाता हो। हालांकि, पारेख इन सब से कभी नहीं डरे। साल दर साल वो पहले से ज़्यादा अच्छा काम करने लगे। उन्होंने पाया कि मृत लोगों को ट्रैक करना ठंडी प्रतिक्रिया देने वाले ज़िंदा लोगों से संपर्क करने से बेहतर है। अब सड़क पर ठेली लगाने वाले से लेकर कारोबारी तक, सब उनके ग्राहक हैं।

तकनीक से जुड़कर हासिल की कामयाबी
पारेख के एक क्लाइंट हैं बसंत मोहता। मोहता टेक्सटाइल मिल के मालिक हैं और नागपुर से 90 किलोमीटर दूर रहते हैं। वो कहते हैं कि उनके संयुक्त परिवार के 16 लोगों ने पारेख से जीवन बीमा कराया है। परिवार में उनकी 88 वर्षीय मां और उनका एक साल का पोता भी शामिल हैं। मोहता और पारेख एक फ्लाइट में एक-दूसरे से मिले थे। मोहता कहते हैं, मुझे लगता है जीवन बीमा ज़रूरी है और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है, एक ऐसे एजेंट का होना, जिस पर आप पूरी तरह भरोसा कर सकें। पारेख का मानना है कि उनकी सफलता में उनका तकनीकी से जुड़ना भी है। उन्होंने सन् 1995 में ही सिंगापुर से तोशिबा का लैपटॉप मंगवाकर अपने रिकॉर्ड को कम्यूटराइज़्ड करना शुरू कर दिया था।
वो अपनी कमाई विदेशों में जाकर फ़ाइनेंस ट्रेनिंग लेने पर खर्च करते थे। भारत में सबसे पहले मोबाइल फ़ोन खरीदने वालों में पारेख भी शामिल थे। उन्होंने अपने कर्मचारियों को पेजर दिए थे। उन्होंने दफ्तर, क्लाउड आधारित तकनीकी पर निवेश किया और अब उनका अपना एक एप भी है। वो रोजाना स्थानीय अखबारों में विज्ञापन देते हैं।  
साभार - बीबीसी