नई दिल्ली। सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर इस साल बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसशिप से अंतरिक्ष में गए थे। उन्हें अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन पर आठ दिन ही रहना था लेकिन यान में हीलियम लीक होने से उनकी धरती पर वापसी बार-बार टल रही है। अब सुनीता और विलमोर को अंतरिक्ष में कम से कम छह महीने से ज्यादा गुजारने होंगे। उनकी वापसी की फरवरी, 2025 तक ही संभव है। हालांकि, सुनीता और विलमोर के धरती पर लौटने अभी और लंबा खिंच सकता है। 
अब सवाल उठ रहे है कि क्या सुनीता विलियम्स और उनके सहयोगी की जान को खतरा है? इतने दिन अंतरिक्ष में रहना उनके शरीर में क्या बदलाव हो सकते हैं? अमेरिकी सरकार अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर इतनी भारी रकम खर्च करती है, जो कई छोटे देशों की विकास दर यानी जीडीपी के बराबर है। फिर भी सुनीता और विलमोर को धरती पर लाने में फेल क्यों हो रही है?
हाल ही में नासा ने कहा कि सुनीता और विलमोर जिस बोइंग स्टारलाइनर अंतरिक्ष विमान से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर गए थे वह अब बिना दोनों को लाए खाली ही धरती पर लौटेगा। पिछले दो महीने से अंतरिक्ष में फंसे दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को अगले साल फरवरी में स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट से धरती पर वापस लाया जाएगा। इस अतिरिक्त समय में स्पेसएक्स को अपने अगले यान को लॉन्च करने का समय मिल जाएगा, जिसकी उड़ान सितंबर के अंत में तय है। पहले इसमें चार अंतरिक्ष यात्री जाने वाले थे, लेकिन अब अंतरिक्ष स्टेशन तक इससे केवल दो यात्री ही जाएंगे। इससे सुनीता और विलमोर के लिए जगह बनेगी। 
इसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि ओटावा यूनिवर्सिटी की स्टडी में कहा गया कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान एस्ट्रोनॉट्स के शरीर की 50 फीसदी लाल रक्त कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं और मिशन के चलने तक ऐसा होता रहता है। शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसे स्पेस एनीमिया कहा जाता है। ये लाल कोशिकाएं पूरे शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाती हैं। इसी वजह से चांद, मंगल या उससे दूर की अंतरिक्ष यात्राएं करना एक चुनौती है। ऐसा किस वजह से होता है, ये अब तक एक राज ही बना हुआ है। 
वैज्ञानिकों के मुताबिक अंतरिक्ष में रहने के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में हर एक सेकेंड में 30 लाख लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। वहीं, जमीन पर यह रफ्तार प्रति सेकेंड दो लाख ही है। किसी भी सूरत में शरीर इस नुकसान की भरपाई कर लेता है, क्योंकि लाल कोशिकाएं उतनी ही तेजी से बनती रहती हैं। अमेरिका के एक अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली 340 दिन अंतरिक्ष में रहे थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि आईएसएस पर बहुत काम होता है। हमें हर दिन सुबह छह बजे उठना होता है। वहां तीन तरह के काम होते हैं-जैसे कोई प्रयोग करना, स्पेस स्टेशन के खराब हार्डवेयर की रिपेयरिंग करना या फिर स्पेस स्टेशन के जेनरल मेंटेनेंस पर ध्यान देना होता है ताकि स्टेशन सही तरीके से काम कर सके।
स्टैटिस्टा की एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए सबसे ज्यादा पैसे अमेरिका खर्च कर रहा है। अमेरिका से काफी पीछे दूसरे नंबर पर चीन है, जो 1.2 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रहा है। भारत 14 हजार करोड़ रुपए ही खर्च कर रहा है। फिर भी अमेरिका यात्रियों को लौटाने में नाकाम साबित हो रहा है। नवंबर, 2023 तक अंतरिक्ष में 676 यात्री गए थे। उस सफर के दौरान 19 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। अमेरिका में अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्युदर 2.8 फीसदी है। बीते 50 साल में अमेरिका और रूस के 30 से ज्यादा अंतरिक्षयात्रियों को जान गंवानी पड़ी है।