रंजीता सिंह
गाजियाबाद। दिल्ली-एनसीआर में सबसे बड़ी समस्या कूड़े के निस्तारण की है। निस्तारण की कोई सटीक योजना न होने से आए दिन शहरों के बीच इस मुद्दे को लेकर विवाद होता रहता है। कभी दिल्ली का कूड़ा गाजियाबाद में डालने को लेकर विवाद होता है तो कभी गाजियाबाद का कूड़ा दिल्ली में डालने को लेकर विवाद। कभी फरीदाबाद का कूड़ा गुरुग्राम में डालने का विवाद होता है तो कभी गुरुग्राम का कूड़ा मेवात में डालने को लेकर विवाद होता है। दिल्ली के गाजीपुर डंपिंग यार्ड कूड़े का पहाड़ सहित गुरुग्राम के बंधवाड़ी कचरा प्लांट से लेकर कई जगह के मामले एनजीटी कोर्ट में चल रहे हैं लेकिन अफसोस हल कोई नहीं  निकल रहा है। केवल इस सड़क का कूड़ा उस सड़क पर तो उस सड़क का अन्य सड़क पर डाल दिया जाता है। इससे लोगों को बेहद परेशानी उठानी पड़ती है। उन्हें इससे न तो कूड़ा फेंकने की जगह मिलती है और दूसरी ओर बदबू से भी परेशान होना पड़ता है। हाल ही जब गाजियाबाद में लोगों को तीन साल के यूजर चार्ज का बिल भेजा गया तो बवाल मच गया। कई लोग इसके भुगतान के पक्ष में नहीं है तो कइयों ने अदालत जाने का मन बना लिया है। 
हर जिले में कूड़ा निस्तारण की योजना बनाने की ​​जिम्मेदारी नगर निगम की है। हाल ही में नगर निगम ने हर व्य​क्ति के घर तीन साल का यूजर चार्ज भेज दिया है। जिससे लोग परेशान हैं, उनका कहना है कि निगम ने कूड़ा तो उठाया नहीं और अब बिना सूचना के चार्ज भेज दिया। हर घर तीन हजार रुपये और इंड​स्टि्यल एरिया में तीन साल का 20 हजार रुपये का बिल भेजा है।

हाईकोर्ट लेकर जाएंगे मुद्दा 
इस बारे में साहिबाबाद इंडस्ट्री एसोसिएशन के वाइस प्रेसीडेंट अजीत तोमर का कहना है कि निगम, कूड़े का निस्तारण तो भली भांति करता नहीं है और यूजर चार्ज लगा दिया। इस सड़क से कूड़ा उस सड़क पर और उस सड़क से उठाकर दूसरी सड़क तक फेंक दिया जाता है। आज तक कोई कारगर योजना नहीं बनी। कभी कहते हैं इंदिरापुरम में बिजली बनेगी, कभी साइट चार प्लांट पर कूड़ा डंप किया जाता है लेकिन आज तक हुआ कुछ नहीं। बहुत पहले एक नगर आयुक्त आए थे उन्होंने कूड़ा के विलोपित केंद्र हटा दिए थे, उसके बाद किसी ने कोई पहल नहीं की। अब तीन साल का 20 हजार का यूजर चार्ज भेज दिया है। पैसे देने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन कूड़े का सही निस्तारण तो हो। जब कूड़ा सड़क पर ही फेंका जा रहा है तो यूजर चार्ज क्यों दें। हम इस मुद्दे को हाईकोर्ट में लेकर जाएंगे। ​​फिलहाल गाजियाबाद निगम के कर्मचारी घर-घर से यूजर चार्ज वसूल रहे हैं लेकिन लोग इसका विरोध कर रहे हैं। लोगों और सोसाइटी के आरडब्ल्यूए का कहना है कि पहले कूड़े का निस्तारण करो, तब चार्ज लो। ​

दिल्ली-गाजियाबाद में अक्सर होता है विवाद
पिछले दिनों दिल्ली का कूड़ा गाजियाबाद में डालने को लेकर बड़ा विवाद हुआ था। इस मुद्दे को लेकर एनडीएमसी और नगर निगम अ​धिकारियों की बैठक हुई थी। गाजियाबाद की मेयर सुनीता दयाल की मानें तो दिल्ली वाले हमारे यहां कूड़ा डालकर जा रहे हैं। इस संबंध में हुई बैठक में अब सीमा निर्धारित कर दी गई है। 

गुरुगाम और फरीदाबाद में भी कूड़ा डालने को लेकर होता है विवाद
हाल ही में गुरुग्राम के बंधवाड़ी प्लांट का मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है। वहां बढ़े कूड़े के कारण अब कोर्ट ने वहां कूड़ा फेंकने पर रोक लगा दी है। वहां गुरुग्राम और फरीदाबाद का कूड़ा डाला जाता था। अब गुरुग्राम ने फरीदाबाद को अपने कूड़े का निस्तारण खुद करने को कहा है और गुरुग्राम अब मेवात जिले में डंपिंग यार्ड बनाने की योजना बना रहा है, लेकिन वहां के लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं। डंपिंग यार्ड बनाने में सबसे अ​धिक समस्या लोगों के विरोध की आती है। सही योजना न होने के कारण लोग इसका विरोध करते हैं क्योंकि एक तो उन्हें इसकी वजह से बदबू से गुजरना पड़ता है और इससे उनकी जमीन और मकान के दाम भी घट जाते हैं। 

अदालत कई बार लगा चुका फटकार 
दिल्ली में गाजीपुर, भलस्वा और ओखला लैंडफिल साइट हैं। जिसमें क्षमता से अ​धिक कूड़े का ढेर है। सबसे अ​धिक बड़ा कूड़े का पहाड़ गाजीपुर का है। जिसके संबंध में कई बार अदालत इसके निस्तारण और इस पहाड़ को कम करने के लिए फटकार लगा ​चुका है लेकिन आज तक कोई सटीक समाधान नहीं निकला। जितने कूड़े का निस्तारण किया जाता है, उतना ही अगले दिन फिर निकल जाता है। भलस्वा की क्षमता 80 लाख मीटि्क टन और ओखला की 60 लाख मीटि्क टन है।

कचरे के मामले में कोर्ट की नई नहीं है फटकार 
8 मई 2024 : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में लोगों को शुद्ध दूध मिल सके ये सुनिश्चित न कर पाने पर दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई।      हाईकोर्ट ने कहा कि मवेशी लैंडफिल यानी कचरा भराव क्षेत्र में खतरनाक कचरा खा रहे हैं और उनका दूध बच्चों को पिलाया जा रहा है। उसी से मिठाई और चॉकलेट तैयार होती है। 
12 जुलाई 2018 : दिल्ली में कूड़े की ढेर पर सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने पूछा कि साफ बताइए कि कितने दिन में 3 लैंडफिल साइट से कूड़ा हटेगा। हमें इससे मतलब नहीं कि आप बैठकों में चाय-कॉफी पीते हुए क्या कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लैंडफिल साइट की तुलना कुतुबमीनार से करते हुए कहा कि दोनों की ऊंचाइयों में मात्र आठ मीटर का अंतर रह गया है। 

कूड़े का पहाड़ खत्म करने की डेडलाइन बढ़ाई
दिल्ली में तीनों कूड़े के पहाड़, गाजीपुर, ओखला और भलस्वा को खत्म करने की डेडलाइन पहले 2024 थी। अब नगर निगम ये समय सीमा बढ़ाकर 2026-2027 बता रहा है।

नई नहीं है राजनीति
कूड़े पर राजनीति नई नहीं है। एमसीडी ने साल 2010 से प्लानिंग की, फिर एमसीडी ही तीन हिस्सों में बंट गई। एमसीडी के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं कि उनका सपना था कि वो अपने रिटायरमेंट तक इस लैंडफिल साइट से कचरा खत्म कर सकें लेकिन वो मानते हैं कि जब तक सभी संबधित विभाग इसको अपना-अपना मिशन नहीं मानेंगे, एक दूसरे पर टालते रहेंगे तब तक ये संभव नहीं दिखता। साल 2016 में ईस्ट दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के बीच एक एमओयू साइन हुआ था, जिसके मुताबिक मेरठ एक्सप्रेसवे बनने में गाजीपुर का सारा कचरा कन्जयूम कर लिया जाएगा। सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी इस प्रोसेस पर हामी भरी थी लेकिन यह नहीं हो सका। एमसीडी ने साल 2019 में लैंडफिल साइट से कचरा हटाने का काम शुरू किया था। 

कूड़ा हटाने की प्रक्रिया
1-पहले कचरा सुखाया जाता है फिर मशीनों से प्लास्टिक, पत्थर, लोहा, मिट्टी, कूड़े के अलग-अलग हिस्से किए जाते हैं।
2-प्लास्टिक पर्यावरण के लिए सबसे नुकसानदेह है. इसे वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में डाला जाता है या इंडस्ट्रीज़ इसका इस्तेमाल करती हैं।
3- पत्थरों को कंस्ट्रक्शन एंड डिमोलिशन वेस्ट प्लांट में फुटपाथ वाली ब्लॉक टाइल वगैरह बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
4-मिट्टी को नेशनल हाइवे, पार्कों और जगह-जगह पर भराव और निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का आंकड़ा
दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी की 2022-23 की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में घरों से रोजाना 11,352 टन कचरा निकलता है, जिसमें से 7,352 टन कूड़ा या तो रीसाइकल होता है या बिजली बनाने के काम आता है लेकिन बचा हुआ 4 हजार टन कूड़ा लैंडफिल साइट में ही जाता है यानी हर दिन दिल्ली के कुल कचरे का 35 प्रतिशत लैंडफिल साइट में डाल दिया जाता है।

बाकी शहरों में क्या है व्यवस्था 
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट और नीति आयोग ने साल 2021 में वेस्ट वाइज सिटीज नाम की एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में 28 शहरों का अध्ययन किया गया ताकि कचरा मैनेजमेंट की बेस्ट तकनीक को समझा जा सके। इंदौर, अंबिकापुर समेत तमाम ऐसे शहर हैं, जिन्होंने कूड़े के निस्तारण का हल खोजा हुआ है। इसे डीसेंट्रलाइज्ड मैनेजमेंट कहते हैं। कूड़े से  पैसा भी कमाया जा रहा है। गीले कचरे को अच्छे से कंपोज करके खाद या गैस बनाई जा रही है और सूखे कचरे ग्लास, मेटल और प्लास्टिक को रीसाइकल किया जा रहा है। इसके लिए सबसे पहले लोगों को अपने घर से शुरुआत करनी होगी और घर में ही गीले और सूखे कचरे को दो हिस्सों में बांटना होगा। गीला कचरा घर के आस-पास ही कहीं थोड़ी व्यवस्था करके डीकंपोज हो सकता है और सूखा कचरा रीसाइकल हो जाएगा।

विदेशों में क्या व्यवस्था है
स्वीडन एक ऐसा देश है, जहां 99 फीसदी से ज्यादा कूड़ा किसी भी तरह दोबारा इस्तेमाल यानी रीसाइकल कर लिया जाता है जबकि साल 1975 तक वहां महज 38 फीसदी घरेलू कचरा रीसाइकल होता था। वहां नियम कहता है कि कचरा रीसाइक्लिंग स्टेशन किसी भी रिहाइशी इलाके से 300 मीटर से अधिक दूर नहीं हो सकते, इसीलिए आज वहां मात्र एक प्रतिशत कचरा ही लैंडफिल साइट पर जाता है। सिंगापुर में भी वेस्ट मैनेजमेंट चुनौती है। द लॉजिकल इंडियन की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 1970 में रोजाना यहां लगभग 1260 टन कचरा निकलता था। साल 2016 में एक दिन में रिकॉर्ड 8,559 टन कचरा इकट्टा किया गया था। वहीं 2019 में 7.2 मिलियन टन से अधिक ठोस कचरा पैदा हुआ। इसमें से 2.95 मिलियन टन को रिसाइकल नहीं किया गया। जानकार कहते हैं कि कूड़े के मैदान तो विदेश में भी हैं। अमेरिका के लास वेगास में एपेक्स लैंडफिल दुनिया का सबसे बड़ा कूड़े का मैदान है। 2,200 एकड़ में फैले इस मैदान में अब तक 50 मिलियन टन कूड़ा जमा हो चुका है, इसलिए हमें अपने देश की व्यवस्था खुद देखनी होगी। 

कचरे पर ​भिड़े थे फिलीपींस और कनाडा
कचरे पर कनाडा और फिलीपींस इस कदर ​भिड़े थे कि फिलीपींस ने इस मुद़्दे पर युद्ध तक की चेतावनी दे डाली थी। दरअसल 2013 से 2014 के बीच कनाडा ने फिलीपींस को हजारों टन कचरे का ढेर भेजा था। कनाडा के अनुसार यह कचरा इस्तेमाल लायक था, जिसे रीसाइकल किया जा सकता था, जबकि फिलीपींस के अनुसार कनाडा ने जो कचरा भेजा है वो वेस्ट गार्बेज है। उसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता। साथ ही यह भी कहा है कि ये कचरा जहरीला है। फिलीपींस ने कनाडा से यह कचरा वापस लेने को कहा, जिससे दोनों देशों में तनाव बढ़ गया। बाद में कनाडा को अपने 69 कंटेनर वापस मंगाने पड़े थे। जानकारों की मानें तो अक्सर अमीर देश अपने कूड़े को गरीब देश में डंप करना चाहते हैं ​क्योंकि कूड़ा निस्तारण से दूसरे देश में कूड़ा डंप करना सस्ता पड़ता है।