नई दिल्ली । राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बेहतर और तीव्र कनेक्टिविटी आज भी एक ऐसी आस है, जिसके पूरा होने का सालों से इंतजार है। इस दिशा में रैपिड ट्रेन की परिकल्पना तो बीती सदी में ही तैयार हो गई थी, लेकिन इसके ट्रैक पर दौड़ने का सपना अब भी आंखों में ही है। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) भी बन चुकी है, मगर मंजूरी नहीं मिल पा रही। बस एक दिल्ली मेरठ कॉरिडोर पर ही प्रगति हो रही है, अगले वर्ष तक यह कॉरिडोर पूरी तरह ऑपरेशनल भी हो जाएगा। जबकि दिल्ली अलवर और दिल्ली पानीपत कॉरिडोर की डीपीआर को 2019 से केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की मंजूरी मिलने का इंतजार है। रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) की जरूरत सर्वप्रथम 1998 में जब महसूस की गई थी, जब भारतीय रेलवे ने इसे दिल्ली- एनसीआर में भविष्य के एक यातायात विकल्प रूप में पहचाना था। दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद सहित एनसीआर के अन्य जिले पहले से ही देश के सबसे बड़े शहरी समूह हैं। प्रारंभिक योजना मौजूदा रेलवे कॉरिडोर के साथ ही आरआरटीएस बनाने की थी। बताया जाता है कि उस समय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने यहां के सर्वे के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक सैलून कोच में यात्रा भी की थी। लेकिन तब आरआरटीएस की योजना परवान नहीं चढ़ सकी। 2009 में यह योजना पुनर्जीवित हुई। तब एनसीआर 2032 के परिवहन पर कार्यात्मक योजना में दिल्ली से मेरठ, रेवाड़ी, पानीपत, पलवल, रोहतक और बड़ौत को तेजी से कनेक्टिवटी प्रदान करने के लिए 520 किमी की लंबाई के साथ कुल आठ आरआरटीएस कॉरिडोर विकसित करने का प्रस्ताव तैयार हुआ। दो अन्य कॉरिडोर गाजियाबाद से खुर्जा और हापुड़ तक प्रस्तावित थे। पहले चरण में प्राथमिकता वाले तीन आरआरटीएस कॉरिडोर- दिल्ली मेरठ (82 किमी), दिल्ली-गुरुग्राम-एसएनबी-अलवर (198 किमी) एवं दिल्ली-सोनीपत-पानीपत (103 किमी) विकसित करने का प्रस्ताव तैयार हुआ। 2011 में यूपीए सरकार ने इन योजनाओं को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। 2013 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन विकास निगम (एनसीआरटीसी) को  आरआरटीएस बनाने के लिए एक कंपनी के रूप में शामिल किया गया। दिल्ली- अलवर कॉरिडोर को इसे लेकर अंतिम फैसला बेशक नहीं हुआ है, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) ने इसके नए रूट के जियोटेक्निकल सर्वे का टेंडर निकाल दिया है। अब इस रूट को पहले चरण में शाहजहांपुर -नीमराना- बहरोड़ (एसएनबी) की जगह धारूहेड़ा तक ले जाया जा सकता है। इससे यह ट्रैक 107 किमी की बजाए 36 किमी घटकर 71 ही किमी रह जाएगा। वहीं इसके स्टेशन 17 से कम होकर 13 रह जाएंगे। डिपार्टमेंट फोर प्रमोशन आफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआइआइटी- केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) के तहत गठित नेटवर्क प्लानिंग ग्रुप द्वारा शहरी कनेक्टिविटी को बढ़ावा एवं विनिर्माण को समर्थन देने के लिए इस कॉरिडोर को पहले ही चिन्हित कर चुका है। इसे पीएम गतिशक्ति मास्टर प्लान के दायरे में तैयार किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, पहले चरण में अब इसे सराय काले खां से धारूहेड़ा तक ही ले जाने की बात हो रही है। इसमें भी पहले इसे एयरोसिटी के बाद वाया कापसहेड़ा सरहौल से राष्ट्रीय राजमार्ग लाने की योजना बनी थी, लेकिन अब एयरोसिटी के बाद भी राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही एलिवेटिड ट्रैक बनाया जाएगा।