रंजीता सिंह
गाजियाबाद । कुछ सालों पहले जब फेसबुक पर सक्रियता बढ़ी तो कई फ्रेंड रिक्वेस्ट ऐसे नामों से आईं, जिन्हें मैं जानती नहीं थी जैसे-रचना शर्मा, स्वाति गौतम, पुष्पा भुल्लर। एकाध बार कैंसिल कीं फिर आईं, जब प्रोफाइल फोटो चेक कीं तो देखा, तब लगा ओह यह रचना व​​​शिष्ठ, स्वाति शर्मा, पुष्पा सिंधु। शादी के  बाद इनके नाम बदल गए होंगे, इसलिए कन्फयूजन हुआ। नाम बदलने से आपका चेहरा तो नहीं बदलता लेकिन आपका नाम यानी पहचान जरूर गुम हो जाती है। ऐसा एक नहीं देश की लाखों, करोड़ों महिलाओं के साथ होता है। जिनकी शादी के बाद पहचान बदल जाती है। कुछ महिलाएं प्यार में या शौकिया अपना नाम बदल लेती हैं, तो कुछ का जबरन भी बदलवा दिया जाता है। हाल ​ही में जब जया बच्चन को संसद के सत्र में उनके पति के नाम के साथ संबो​धित किया गया तो वह झल्ला गईं। जया अमिताभ बच्चन, कहते हैं कि उनका वहां यही नाम लिखा हुआ है लेकिन अचानक उन्हें अपने बदले हुए नाम से शायद पीड़ा हुई होगी। फिल्मों की प्रतिभावान अ​भिनेत्री जया भादुड़ी शादी के बाद जया अ​भिताभ बच्चन बन गईं और उनका नया नाम जया बच्चन हो गया। यह भी बेहद अचं​भित करने वाली बात है कि आज तक उन्होंने कभी इस बात को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और ना ही कभी बुरा माना, अचानक उस दिन उन्हें गुस्सा क्यों आया, जबकि इस नाम को बदलने में उनकी खुद की सहमति रही होगी। 
कुछ सालों पहले जब करीना कपूर ने सैफ अली खान से शादी तो सबसे पहले उनसे यही सवाल पूछा गया कि क्या आप अपना सरनेम बदलेंगी, उन्होंने तपाक ने जवाब दिया, ऐसा मेरा कोई इरादा नहीं है। यह बेहद साहसिक जवाब था। अभी कुछ सालों पहले जब एक फॉर्म भरा तो उसमें पति की जगह केवल माता-पिता का ही ऑप्शन था। एक अ​धिकारी से पूछा तो बोले मैडम आजकल तलाक के केस इतने बढ़ गए हैं कि कई जगह केवल माता-पिता के ही नाम भरे जा रहे हैं। इसमें भी ज्वाइस है, आप चाहें तो एक या दोनों का नाम भर सकते हैं। एक बा​र पति का नाम भर दिया फिर अलग हो गए तो कागजात में दिक्कत आती है। बार-बार बदलवाना पड़ता है। सुनकर अच्छा लगा कि चलो कुछ तो बदलाव हुआ। 
शादी के बाद  ससुराल में देखा तो जेठानी एलाइड आईएएस अफसर  थीं। वह अपना ही सरनेम लगाती थीं तो मुझे राहत मिली। मैंने भी अपना ही सरनेम लगाया क्योंकि मेरा मानना है कि जिस नाम से आपकी पहचान है, उसे दूसरों के लिए क्यों बदला जाए। नाम बदलने से कोई प्यार, मोहब्बत कम या ज्यादा कोई ना हो जाती है।  यह तो आपके व्य​क्तित्व से जुड़ा मामला है और इसे चुनने का अ​धिकार केवल आपको है। सबसे अच्छी बात यह भी थी कि मेरी ससुराल में यह कोई मुद्दा नहीं था, सब पढ़े-लिखे, सबको अपने हिसाब से जीने और सरनेम लगाने का पूरा हक आपका ​था। एक अ​धिकारी ने बताया कि महिलाओं को लगता है कि शादी के बाद उनका नाम स्वत: बदल जाता है लेकिन शायद उन्हें पता नहीं कि इसकी एक कानूनी प्रक्रिया होती है, जिसके बाद ही नाम बदला जाता है, ऐसा नहीं है कि आपकी शादी हुई और रातोंरात आपने नाम बदल दिया। एफिडेविट देना पड़ता है। कागज बदलवाने पड़ते हैं, तब कहीं जाकर नाम बदलता है। 

पति का नाम लगाने का ट्रेंड बढ़ा

आजकल एक नया ट्रेंड देख रही हूं, लड़कियां अपने नाम के पीछे अपने पति का नाम जोड़ रही हैं। जैसे रजनी धीरज कुमार, साक्षी प्रवीन सिंह मुझे आजतक यह कांसेप्ट समझ नहीं आया।   
​रुढि़वादिता और भेदभाव से जुड़ा
कुछ परिवारों में तो यह आपका अपना विषय हो सकता है लेकिन अ​धिकतर परिवारों में आपको नाम बदलने के लिए दबाव डाला जाता है। साथ ही इसे ऊंची और नीची जाति से जोड़कर भी देखा जाता है, साथ ही जहां महिलाएं आत्मनिर्भर नहीं हैं, वहां भी उन्हें नाम बदलने के लिए मजबूर किया जाता है या कई बार उन्हें खुद अपनी नाम की अहमियत का अंदाजा नहीं होता और बड़े प्यार से उनका नाम बदल दिया जाता है। कई जगह माना जाता है कि पति-पत्नी का सरनेम एक ही होना चाहिए। 
कई जगह आप देख सकते हैं कि जहां पर अंतरजातीय विवाह हुए हैं कि अगर लड़का ऊंची जाति का है या उसका परिवार दबंग है तो लड़की का सरनेम बदल दिया जाता है। वह ढाका से सिंह बन जाती है, मिश्रा से तोमर बन जाती है, गर्ग से चौहान बन जाती है, पाल से दुबे बन जाती है और डागर से भारद्वाज बन जाती है, तिवारी से झा बन जाती है। समाज में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं। आपके आसपास भी ऐसे ढेरों उदाहरण होंगे। इंदिरा गांधी ने तो अपने पति को अपना सरनेम दिया था। समाज में जिस परिवार की अ​धिक मान्यता होती है, वहीं से अच्छे या बुरे बदलाव शुरू होते हैं। खैर मुझे हमेशा नाम बदलने पर एतराज रहा है। हर महिला को खुद यह अ​धिकार होना चाहिए कि वह अपनी मर्जी से अपने व्य​क्तित्व के बारे में निर्णय करे और अपने बारे में सोचे।   एक फिल्मी गाना है कि नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, यह महिलाओं पर बिल्कुल सटीक बैठता है, जिस नाम से आप बचपन से जाने जाते हो, जिससे आपकी एक पहचान होती है   और अचानक उसे एक दिन बदल दिया जाता है, चेहरा तो आपका वहीं रहता है लेकिन कई बार नाम गुम जाता है, फिर आपको एक नई पहचान बनानी पड़ती है। अगर आप मुझसे कहें कि अपनी बचपन की फ्रेंड को रचना व​​शिष्ठ को रचना शर्मा कहें तो या स्वाति शर्मा को स्वाति गौतम कहें तो मेरे लिए ऐसे बुलाना बेहद मु​श्किल होगा। 
इस बारे में शर्मिला बताती हैं कि उनके पति बहुत शराब पीते थे तो उन्होंने गुस्से में अपने बच्चों के पिता का सरनेम लगाने की बजाय आजाद लगा दिया था, क्योंकि उस समय देश आजाद हुआ था तो उन्हें य​ही शब्द समझ में आया। बड़ा बेटा तो आजतक यही सरनेम लगा रहा है लेकिन छोटे ने दसवीं में बदलकर पिता का सरनेम लगा लिया। वह कहती हैं कि इसमें कोई जोर जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। अब तो अंतरजातीय और अंतर धर्म विवाह भी खूब हो रहे हैं और साथ ही तलाक के केस भी बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में कितनी बार कोई नाम बदलेगा। इसमें स्वेच्छा होनी चाहिए, महिलाएं अपनी मर्जी से सरनेम चुनें तो बेहतर रहेगा। विवाह के दौरान ही जब लड़के-लड़की का सरनेम सेम होता है तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन जब अलग-अलग होते हैं, तब दिक्कत आती है। कई बार तो एक ही जाति में भी अलग-अलग सरनेम होते हैं और वह बेवजह बदले जाते हैं जैसे कोई राजपूत में तोमर लगा रहा है कोई चौहान तो कोई पालीवाल। ऐसे में भी दिक्कत आती है तो समझ नहीं आता कि आ​खिर नाम बदलने में इतनी दिलचस्पी क्यों है। आजकल हर कोई जागरूक है और हर कोई समझदार। वक्त बदल चुका है तो यह पुरानी परंपराएं भी बदलनी चाहिए। 

न्यूज़ सोर्स : स्वयं