नई दिल्‍ली । राजधानी की साकेत कोर्ट ने दिल्‍ली के एलजी को कायर बोल सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को मानहानि मामले में दोषी ठहराया है। उनके खिलाफ तत्कालीन खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष वीके सक्सेना अब दिल्ली के उपराज्‍यपाल की ओर से याचिका दायर की गई थी। 
साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि का दोषी पाया था। कानून के मुताबिक उन्हें सजा के तौर पर अधिकतम 2 साल की जेल या जुर्माना या फिर दोनों सजायें मिल सकती हैं। मेधा पाटकर और दिल्ली एलजी दोनों साल 2000 से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। तब मेधा पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ मुकदमा किया था। वीके सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे। एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने के लिए सक्सेना ने उनके खिलाफ 2 मामले भी दर्ज किए थे। वहीं एलजी वी के सक्सेना ने 2001 में मेधा पाटेकर के खिलाफ ये केस दायर किया था। उनका आरोप था कि मेधा पाटेकर ने एक प्रेस नोट जारी करके बयान दिया था कि सक्सेना देशभक्त न होकर एक कायर हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मेधा पाटकर का बयान एलजी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला था। सक्सेना को कायर बताते हुए उन पर हवाला लेन देन में शामिल होने का आरोप लगाना न केवल उनकी मानहानि करने वाला बल्कि लोगों के बीच उनको लेकर निगेटिव राय बनाने की कोशिश भी है। मेधा पाटकर का ये कहना कि वो देशभक्त न होकर कायर है उनके चरित्र और देश के प्रति उनकी निष्ठा पर एक सीधा हमला है।