मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की टूट रही कमर, ध्यान नहीं दे रही सरकार
रंजीता सिंह
गाजियाबाद। जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो उस समय यह वादा किया गया था कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूती दी जाएगी। कोशिश की जाएगी कि आयात पर निर्भरता कम की जाए और अधिक से अधिक उत्पादन व माल अपने देश में ही तैयार किया जाए। हाल ही में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भाषण के दौरान भी प्रधानमंत्री ने इस बात की तस्दीक की। उन्होंने कहा कि जल्दी ही हम मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निर्यात करना भी शुरू कर देंगे और मोबाइल में लगने वाले सेमी कंडक्टर भी यही बनने लगेंगे। पर अगर आंकड़ों पर गौर करें तो कुछ अलग ही तस्वीर पेश होती है। पिछले सात सालों में 18 लाख उद्योग बंद हुए हैं और 54 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई हैं।
असंगठित उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण एएसयूएसई और नेशनल सर्वे ऑफ ऑफिस एनएसएसओ के आंकड़ों के विश्लेषण से इस बात का खुलासा हुआ है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पिछले सात सालों में 9.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। एनएसएसओ के अनुसार जुलाई 2015 से जून 2016 के बीच इस सेक्टर में 1.97 करोड़ असंगठित उद्योग थे। वहीं, एएसयूएसई के अनुसार अक्तूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच इनकी संख्या 1.78 करोड़ रह गई। इनमें 2015-16 में जहां 3.60 करोड़ लोग काम कर रहे थे, वहीं 2022-2023 में यह आंकड़ा 15 प्रतिशत घटकर 3.06 करोड़ रह गया।
कारोबारी रामवीर सिंह के अनुसार सरकार की यह बातें केवल छलावा हैं। लोन देने पर सरकार को बड़ी गांरटी चाहिए, जबकि वह कहती है कि उसे गांरटी नहीं चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। उसके साथ ही उत्पादक पर भी यहां काफी टैक्स है। यहां अधिकतम 18 से 26 प्रतिशत तक टैक्स है। इस कारण विदेश की कंपनियां भी अपने देश में प्लांट लगाने नहीं आ रही हैं। फ्रेंडली वातावरण, सुविधाओं की कमी और जरूरत से अधिक टैक्स उन्हें यहां आने से रोक रहा है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी घटी है
2022 में भारत में जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 13 फीसदी थी, पिछले साल की तुलना में इसमें कमी दर्ज की गई।
क्षेत्रवार जीडीपी योगदान
कृषि- 15 प्रतिशत
उद्योग - 31 प्रतिशत
देश के गांधी आश्रमों की टूट रही कमर
देश में इस समय करीब 41 गांधी आश्रम हैं, जो सरकार की अनेदखी के कारण डूब रहे हैं। अरबों, खरबों की प्रॉपर्टी के बाद भी इनकी हालत बदतर है। ये हथकरघा उद्योग भी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आते हैं, अगर इनके संविधान में थोड़ा संशोधन किया जाए तो देश के विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मगर वस्त्र मंत्रालय को इस पर ध्यान देना होगा, जब इनकी स्थापना हुई थी, उस समय यहां हाथ से बुनकर कपड़ा बनता था लेकिन अब बदलते वक्त के साथ हथकरघा के साथ मशीनों का उपयोग भी जरूरी हो गया है। ऐसे में इसमें सरकार को संशोधन करने की जरूरत है। मगर हर गांधी आश्रमों में धरना-प्रदर्शनों के बावजूद सरकार इस पर कोई संज्ञान नहीं ले रही है और प्रशासन भी आंखे मूंदे बैठा है।
कई संस्थान डूबे
सरकार की हीलाहवाई के कारण बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसे कई संस्थान डूब गए और आज यह अपनी प्रॉपर्टी किराए पर देकर अपना खर्चा निकाल रहे हैं। बहुत की फैक्ट्ररियां और उद्योग बंद हो चुके हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। अगर हम नए उद्योगों को लगाने की बात करते हैं तो हमें पुराने उजड़ते उद्योगों और संस्थानों को भी बचाना होगा, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके। जिनके पास खुद का आधारभूत ढांचा है, वहां चीजों को मैनेज करना ज्यादा आसान है लेकिन इस बारे में कोई नहीं सोचता।
टैक्स की अधिकता और गलत नीतियों से हो रही परेशानी
इस बारे में साहिबाबाद इंडस्टियल एसोसिएशन के वाइस प्रेसीडेंट अजीत तोमर का कहना है कि सरकार कह रही है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर उठ रहा है, पर आंकड़े बता ही रहे हैं कि वह नीचे जा रहा है। हमारे साहिबाबाद में इस समय कुल 1400 यूनिट हैं और बहुत सी बंद हो चुकी हैं। हीरो साइकिल, एटलस, ओएलएफ, कलिंगा केबल, दिल्ली प्रेस जैसी कितनी यूनिट बंद हो गईं। इसका कारण टैक्स की अधिकता, सुविधाओं की कमी और सही नीतियों का ना होना है। यूपीएसआईडीसी की कई नीतियां बहुत गलत हैं। इसके साथ ही कूड़ा निस्तारण की सही व्यवस्था न होने से भी उद्योग प्रभावित हो रहे हैं। जगह-जगह फैले कूड़े से उद्योग क्षेत्र में काफी दिक्कत होती है, जिस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। वह कहते हैं कि अगर हम किसी यूनिट को बंद करने की बजाय उसे बढ़ाते हैं या नवीनीकरण करते हैं तो ज्यादा आसान काम होता है लेकिन हम नई लगाने की बात करते हैं और पुरानी बंद होती हैं, जबकि उसमें सारा आधारभूत ढांचा होता है तो उसे बढ़ाना या मॉडीफाई करना आसान होता है। पिछले कुछ सालों में फिर भी एक भी नई यूनिट नहीं लगी है, केवल बंद हुई हैं। केवल हवाहवाई बातें हो रही हैं।