रंजीता ​सिंह 
गाजियाबाद। गांधी जी कहते ​थे कि खादी वस्त्र व उत्पाद नहीं एक विचार है। वह इसके माध्यम से लोगों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। खादी का कपड़ा पूरी तरह हाथ से बुनकर तैयार किया जाता था तो उनकी सोच थी कि इससे गांव-गांव में लोगों को रोजगार मिलेगा और वह इस कुटीर उद्योग के जरिए वह स्वावलंबी बन सकेंगे। जिससे उनके सामाजिक स्तर पर सुधार होगा और भारत विश्व पटल पर एक अलग पहचान बना सकेगा, इसलिए उन्होंने इसका खूब प्रचार-प्रसार किया और इस उद्योग को घर-घर तक पहुंचाया। आजीवन उन्होंने खादी के वस्त्र ही धारण किए। इसके लिए उन्होंने देश में गांधी आश्रम संस्थाएं स्थापित कीं, जो आज दुर्दशा की कगार पर हैं। पिछले कुछ सालों में कपास का उत्पादन घटा है और इसके साथ ही घट रहा है खादी का उत्पादन। कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा यह कुटीर व हथकरघा उद्योग आज बंदी के कगार पर है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखे एक लेख में भारत में तेजी से ठप हो रहे खादी उद्योग को लेकर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पर हमला बोला। उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार की खराब नीतियों और खादी के प्रति उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया। 
द हिंदू अखबार में लिखे एक लेख में सोनिया गांधी ने बताया कि कैसे एक तरफ सरकार 'हर घर तिरंगा' जैसे अभियान से देशभक्ति को बढ़ावा देने की बात कहती है, लेकिन इसी झंडे को बनाने के लिए खादी की जगह पॉलिएस्टर का विकल्प देकर स्वदेशी खादी को खत्म कर रही है। सोनिया गांधी ने लिखा है कि स्वतंत्रता दिवस से पहले के सप्ताह (9-15 अगस्त) में प्रधानमंत्री के आह्वान पर ‘हर घर तिरंगा’अभियान के तहत लोग अपने घरों पर झंडे जरूर लगाते हैं, झंडा यात्राएं निकालते हैं, लेकिन इस दौरान मशीन से निर्मित पॉलिएस्टर झंडों को बड़े पैमाने पर खरीदा जाता है, जिसमें अक्सर चीन और अन्य जगहों से कच्चा माल आयात किया जाता है। अगर सरकार खादी के झंडों को बढ़ावा दे, तो बुनकरों को रोजगार और अच्छी मजदूरी मिलेगी। साथ ही इन खादी उद्योगों की दशा और दिशा सुधरेगी। 

पॉलिएस्टर झंडों को जीएसटी से छूट दी गई, खादी के झंडे को टैक्स के दायरे में रखा गया
आर्टिकल के अनुसार, भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते और हाथ से बुने ऊनी/कपास/रेशमी खादी से बना होना चाहिए, पर 2022 में हमारी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर, सरकार ने कोड में संशोधन (30.12.2021 के अपने आदेश के अनुसार) किया। इसके तहत मशीन से बने पॉलिएस्टर बंटिंग को भी शामिल किया गया और साथ ही पॉलिएस्टर झंडों को माल और सेवा कर (जीएसटी) से छूट दी गई, खादी के झंडे को टैक्स के दायरे में रखा गया है। उनके अनुसार, अब देश में मुख्य रूप से चीन से आए पॉलिएस्टर और उसी कपड़ों से राष्ट्रीय ध्वज बन रहा है। खादी को पारंपरिक हाथ से काती गई खादी के समान ही धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। यह हमारे खादी कातने वालों के लिए नुकसानदेह है, जिनकी मजदूरी उनके कठोर शारीरिक श्रम के बावजूद प्रतिदिन 200-250 रुपये से अधिक नहीं है।  खादी या अन्य को विकसित करने में सरकार की उदासीनता, नोटबंदी, जीएसटी और कोविड-19 लॉकडाउन ने हमारे हजारों हथकरघा श्रमिकों को अपने इस काम को छोड़ने को मजबूर कर दिया। हमारी हथकरघा परंपराएं लगभग खत्म होती जा रहीं हैं। जीएसटी हमारे हथकरघा श्रमिकों पर बोझ बना हुआ है, जिसमें अंतिम उत्पाद के साथ-साथ कच्चे माल (धागे, रंग और रसायन) पर भी कर लगाया गया है। इन सभी कारणों से खादी का उत्पादन घटता जा रहा है। खादी की सरकारी खरीद में भी गिरावट आई है।

घटा है कपास का उत्पादन : एमएसएमई मंत्री
इस बारे में उत्तर प्रदेश सरकार में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम और खादी व ग्रामोद्योग, रेशम, हथकरघा और वस्त्र उद्योग विभाग के मंत्री राकेश सचान कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में कपास का उत्पादन घटा है, इसलिए खादी के उत्पादन पर भी फर्क पड़ा है। सरकार उसे बढ़ाने को लगातार प्रयासरत है। साथ ही उनका कहना है कि खादी को भी वक्त के साथ बदलना पड़ेगा। हाल ही में ग्रेटर नोएडा में यूपी इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में आए सचान ने क​हा कि यहां खादी का फैशन शो किया गया। उसमें खादी को वक्त के साथ बदलते दिखाया गया। यह आज की मांग है। सिंथेटिक झंडों पर उन्होंने कहा कि खादी के झंडे लगाने का एक प्रोटोकॉल होता है, वह उसी के तहत लगाए जा सकते हैं। साथ ही हर घर तिरंगा के तहत हर घर खादी का झंडा इसलिए नहीं  दिया जा सकता क्योंकि देश में कपास का उत्पादन घटने से खादी का उत्पादन भी घटा है। 

नए ट्रेंड लाने होंगे : प्रमुख सचिव
यूपी के प्रमुख सचिव एमएसएमई आलोक कुमार कहते हैं कि गांधी आश्रमों को रिबेट देने के बाद भी वह अपने  उत्पादन को नहीं बढ़ा पा रहे हैं। सरकार क्या करे। यह स्वयंसेवी संस्थाएं हैं, पहले इनकी मैनेजमेंट कमेटी में ईमानदार और एक उद्देश लेकर चलने वाले लोग थे, लेकिन अब भ्रष्ट लोग भी इसमें आ गए। यह संस्थाएं अपने मूल से भटक गई हैं। साथ ही वह कहते हैं कि गांधी आश्रमों में केवल अगोछा और बनियान बनाने से काम नहीं चलेगा। उन्हें वक्त के साथ बदलना पड़ेगा। नए ट्रेंड लाने होंगे। नए प्र​शि​क्षित लोगों को इसमें आना होगा। आधुनिक चरखों का प्रयोग करना होगा। चीजें बदलेंगी, तभी उत्पादन बढ़ेगा। 

गांधी आश्रमों का मामला सरकार के नोटिस में है
मेरठ के गांधी आश्रम में भ्रष्टाचार को लेकर पिछले करीब एक साल से अनशन जारी है। नौ अक्तूबर को एक साल पूरे हो जाएंगे लेकिन अभी तक कोई ठोस उपाय इस मसले का नहीं निकला है और प्रशासन व सरकार ने अभी तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। इस बारे में कैबिनेट मंत्री राकेश सचान कहते हैं कि मेरठ गांधी आश्रम सहित अन्य आश्रमों का मामला भी सरकार की नोटिस में है। सब जगह यहां की जमीनों पर भूमाफियाओं की नजर है और भ्रष्टाचार व्याप्त है। इस संबंध में मेरठ के जिला​धिकारी से​ रिेपोर्ट मांगी गई है। प्रमुख सचिव आलोक कुमार की मानें तो जमीनी ​विवाद को लेकर कुछ मामले आए हैं, जिन्हें देखा जा रहा है। जल्द कार्रवाई की जाएगी। 

घट रहा कपास का रकबा
देश में 9 अगस्त 2024 तक कपास की बुआई  का क्षेत्र 1.10 करोड़ हेक्टेयर था, जो 2023 से नौ प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है। 2023 में इस समय तक 1.21 करोड़  हेक्टेयर बुआई की गई थी। इस वर्ष का लक्ष्य 1.29 करोड़ हेक्टेयर था, जबकि बोया गया क्षेत्र इसी अवधि में सामान्य क्षेत्र (2018-19 - 2022-23 का औसत) 1.20 करोड़  हेक्टेयर से भी कम है। पंजाब, राजस्थान और हरियाणा सहित उत्तरी कपास बेल्ट में कपास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई।

जमीन होती है खराब
मेरठ निवासी अभय की मानें तो पहले मेरठ, हापुड़ के आसपास कई गांवों में कपास बोई जाती ​थी लेकिन अब लोगों ने इसे बोना छोड़ दिया है। ऐसी भी मान्यता है कि इसे बोने से जमीन की उर्वरक श​क्ति में गिरावट आती है। साथ ही किसानों को अब इसके सही दाम भी नहीं मिलते और कीटों के हमले का डर ज्यादा रहता है। अब उन्होंने दूसरी फसलें लगाना शुरू कर दिया है।


उत्पादन घटने के कारण
कपास की खेती से मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
कीटों के हमलों से कपास की फसल को नुकसान पहुंच रहा है।
पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कपास की कीमतें कम रहने की वजह से किसानों को सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं।
अपर्याप्त मानसून की वजह से कपास उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

कपास उत्पादन में गिरावट 
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के मुताबिक, 2022-23 सीजन में कपास का उत्पादन 318.90 लाख गांठ था।
9 अगस्त, 2024 तक कपास की बुआई का क्षेत्रफल 1.10 करोड़ हेक्टेयर था, जो 2023 से 9% कम है। 
गुलाबी बॉलवर्म की वजह से कई राज्यों में कपास की फसल को नुकसान पहुंचा है।
2021 में कपास किसानों को 14,000 रुपये प्रति ​​क्विंवटल तक का रेट मिला था, लेकिन इसके बाद दाम कम होने लगे।

कई प्रयोग
कपास एक बहुउद्देश्यीय फसल है, जिसका उपयोग भोजन, चारा और फाइबर प्रदान करने के अतिरिक्त वस्त्र बनाने, खाद्य तेल आदि के लिये किया जा सकता है। यह भारत के लाखों किसानों के लिये आय और रोजगार का एक प्रमुख स्रोत भी है। भारत में लगभग 67% कपास वर्षा आधारित क्षेत्रों में और 33% सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसे सफेद सोना भी कहा जाता है।

खेती की जाने वाली कपास की प्रजातियां
भारत में कपास की सभी चार प्रजातियां गॉसिपियम अर्बोरियम, हर्बेशियम (एशियाई कपास), जी.बारबाडेंस (मिस्र कपास) और जी. हिर्सुटम (अमेरिकी अपलैंड कपास) उगाई जाती हैं।

10 राज्यों में बोई जाती है
कपास का अधिकांश उत्पादन दस प्रमुख राज्यों में किया जाता है, जिन्हें तीन श्रे​णियों में बांटा गया है।
उत्तरी क्षेत्र : पंजाब, हरियाणा और राजस्थान
मध्य क्षेत्र : गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश
दक्षिणी क्षेत्र : तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु

कपास से कई तरह की चीजें बनती हैं
कपड़े : कपास से हल्के वजन के वॉयल और लेस से लेकर भारी सेलक्लोथ और मोटे-ढेर वाले मखमली कपड़े बनाए जाते हैं। कपास से बने कपड़ों को सूती वस्त्र कहते हैं।
नॉनवॉवन कॉटन डिस्पोजेबल उत्पाद : चाय की थैलियां, मेजपोश, पट्टियां, डिस्पोजेबल यूनिफॉर्म और चादरें।
चिकित्सा और स्वच्छता उत्पाद : रूई, कंप्रेस, गॉज पट्टियां, सैनिटरी टैम्पोन।
कॉफी फिल्टर, टेंट, पुस्तक बाइंडिंग और अभिलेखीय कागज। 
ऑटोमोबाइल टायर, टेलीविजन स्क्रीन, प्लास्टिक सामग्री, विस्फोटक और डोरियां। 
कंप्यूटर चिपबोर्ड : कार्डबोर्ड और प्रेस्ड पेपर।

खादी उत्पादन घटने की वजहें 
खादी महंगी होने की वजह से कम बजट वाले लोग इसे खरीद नहीं पाते। 
सरकार की ओर से खादी को बढ़ावा देने में उदासीनता।
नोटबंदी, जीएसटी, और कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से हजारों हथकरघा श्रमिकों को अपना काम छोड़ना पड़ा।
खादी श्रमिकों को उचित मजदूरी नहीं मिल पाती।
खादी उत्पादों के लिए विपणन रणनीति में बदलाव की जरूरत है।
केवीआईसी दुकानों और इकाइयों में खुदरा बिक्री की नीति को बदलने की जरूरत है।