निर्वाचन आयोग को ब्रह्मास्त्र थमायें, तभी मतदान को अनिवार्य बनायें..
सबका साथ,सबका विकास का उद्घोष तो तभी साकार हो सकता है।लोकतंत्र के पावन अवसर, चुनावों के समय प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिए मतदान अनिवार्य करने की आवश्यकता है,ऐसी आबाज एक लम्बे समय से समय,समय पर कोई न कोई भारतीय साथी उठाते रहे हैं,यह बहुत ही सुंदर विचार है।वर्तमान समय में चुनावों के समय लगभग औसत मतदान 60 से 65 प्रतिशत तक ही हो पाता है और मतदान का लगभग 35 से 40 प्रतिशत तक जिस किसी दल विशेष को मत मिल जाते हैं,वह दल विशेष अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाता है अर्थात कुल जन-संख्या का 60 से 65 प्रतिशत तक की आबादी का सरकार में भागीदारी नहीं होती पाती है,जो वास्तव में चिंताजनक है।
यह प्रक्रिया हमारी स्वतंत्रता के प्रथम निर्वाचन वर्ष1952 से ही निरन्तर चली आ रही है।मेरी अल्प जानकारी अनुसार सर्व प्रथम यह विचार हमारे श्रधेय एवं वरिष्ठ राजनयिक माननीय श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी पूर्व गृह मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री जी ने ही किन्हीं ,वरिष्ठ पत्रकार महोदय के समक्ष कुछ विमर्श के समय प्रस्तुत किया था जो बड़े बड़े समाचार पत्रों की सुर्खियां भी बना।
उस समय भी कई पश्चिमी देशों में मतदान अनिवार्य है, का उद्धरण दिया गया था कि सभी नागरिकों को चुनावों के समय मतदान करना अनिवार्य है और हमारे यहां भी यह होना चाहिए।वैसे भी हम अपने से अधिक पश्चिम की ओर देखने के अधिक उत्सुक रहते हैं,अच्छी बातें कहीं की भी हों हमें अपनानी चाहिये इसमें किसी को भी कई परेशानी नहीं होनी चाहिए।
संयोग से उस समय भी मैंने अपने विचार इसी विषय विशेष पर लिख कर कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में भेजे थे और एक दो में प्रकाशित भी हुए थे।मैंने उस समय जो विचार उपरोक्त के संदर्भ में थे उन पर मैं आज भी कायम हूँ।हम पश्चिमी देशों की भांति हमारे यहां भी मतदान अनिवार्य हो,से सहमत हैं परन्तु हम सर्व प्रथम उनके जैसी परिस्थितियां तो अपने यहां बनायें।
कुछ तुलनात्मक तथ्य जो तथाकथित कुछ पश्चिमी देशों में हमारे यहां से भिन्न हैं,जैसे:-
1:- अमेरिका में वहां के महामहिम राष्ट्रपति महोदय सीधे ही जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं जो कार्यदायी व्यवस्था के प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी होते हैं।साथ ही किसी भ्रष्टाचार/व्यभिचार आदि में नाम आने पर ज्यादा समय तक अपनी बदनामी नहीं कराते वे स्वयं ही त्यागपत्र देकर अलग हो जाते हैं।जैसे पूर्व महामहिम श्री विल्किल्टन का नाम उनकी कार्यालय सहायक मैडम लिवंशिकी के साथ जुड़ने का प्रकरण सामने आया।सदन उनके खिलाफ महा-अभियोग लाने पर विचार कर ही था कि उन्होने अपने ऊपर लगने बाले किन्हीं भी आरोपों के बचाव में कोई सफाई देना उचित नहीं समझा और राष्ट्रपति पद से त्याग पत्र दे दिया।
2:- महामहिम पूर्व राष्ट्रपति महोदय श्री ट्रम्प महोदय पर भी व्हाइट हाउस पर भीड़ एकत्रित करने एवं दंगा भड़काने के आरोप में अभियोग चल रहा है और वे एक समान्य नागरिक की तरह उसका सामना कर रहे हैं।
3:- वर्तमान महामहिम श्री जो वाईडीन के व्यक्तिगत आवास की तलासी अभी पिछले दिनों ही वहां की किसी विशेष जांच एजेंसी ने की है।ऐसा सब वहीं सम्भव है हमारे यहां नहीं।जापान एवं इजरायल में भी कमोवेश ऐसा ही है किसी भी माननीय प्रधानमंत्री का नाम किसी भ्रष्टाचार/व्यभिचार में सामने आता है।
वहां बिना किसी इधर उधर की सफाई के त्यागपत्र देकर अलग हो जाते हैं।ब्रिटेन एवं एक दो देशों में तो किसी पालिसी विशेष की विफलता को लेकर ही बिना कार्यकाल पूरा हुए ही बीच में माननीय प्रधानमंत्री को त्याग पत्र देना पड़ता है और दूसरे प्रधानमंत्री का चुनाव होता है। ऐसा अभी अभी ब्रिटेन में ही हुआ है।
इसके विपरीत
1:- हमारे यहां तो माननीय उच्च न्यायालय ने एक माननीय प्रधानमंत्री का केवल सांसद चुना जाना ही अयोग्य घोषित किया था कि देश को लगभग 19 महीने का आपातकाल झेलना पड़ा।
2:- सामान्य से प्रधानों,पार्षदों से लेकर माननीय विधयकों,सांसदों तक पर अनेक संगीन धाराओं में अभियोग पंजीकृत रहते हैं। यह चुनावों के समय वे स्वयं अपने नामांकन पत्र में उल्लेख करते हैं और चुनाव जीत कर आते हैं।दल विशेष का बहुमत होने पर माननीय मंत्री जी भी बनते हैं,जबकि उन पर सम्बन्धित अभियोगों में मुकद्दमे भी चल रहे होते हैं और माननीय जी बड़े ही श्रद्धा-भाव से 10-15 वर्षों तक आराम से सत्तासुख /माननीय मंत्री स्वरूप आसीन होते रहेंगे।उनका कहना है कि जब तक सक्षम न्यायालय सजा न सुना दे,तब तक मैं अपराधी कैसे?अभियोग पंजीकृत है,मुकद्दमा लिखबाने बाला ही मुकर गया,गबाह मुकर गए फिर माननीय जी को दोष-मुक्त होने से कौन रोकेगा?
3:- हमारे यहां तो बहुत से बाहुबली ऐसे भी हैं कि वे जेलों में बंद रहते हुये भी रिकार्ड मतों से विजयी होते देखे गए हैं।
कैदियों को अपना मतदान करने का अधिकार भले न हो परन्तु यदि वो चुनाव प्रतियासी हैं तो वह चुनाव जीत कर माननीय अवश्य ही बन जायेगा।
4:- यहां अमेरिका जैसा सम्भव नहीं है कि कोई अभागी पीड़िता किसी माननीय जी के खिलाफ दुआचार की शिकायत करके अपना जीवन सुरक्षित मान सके,वह देर सबेर कहीं न कहीं पार्थिव गति को प्राप्त हो चुकी होगी।
यह सब हमारे यहां ही सम्भव है।
संदर्भित विषयान्तर्गत मेरा निवेदन है कि उपरोक्त गम्भीर विषयों /परिस्थितियों के निराकरण करने के उपरांत ही सभी के लिए चुनाव में मतदान करने की अनिवार्यता पर विचार करना चाहिए।
1:- मेरी अल्प सोच अनुसार भारत सरकार को चाहिए कि वह चुनाव आयोग को ऐसे अधिकार/शक्तियां प्रदन करे कि वो ऐसे प्रतियासियों को,जिन्होंने अपने नामांकन के समय यह लिखित में दिया होता है कि मेरे पर हत्या,मर्डर,गैंगस्टर,बलात्कार,भ्रस्टाचार,लूटपाट,डकैती ,भड़काऊ भाषण एवं घूंसखोरी झूठा शपथ- पत्र आदि से सम्बंधित संगीन धाराओं में केस पंजीकृत हैं।
भारत सरकार चुनाव आयोग को ऐसे अधिकारों से मजबूती प्रदन करे कि वह ऐसे अपराधिक पृष्ठभूमि के प्रतियासियों को निदेशित कर सके कि आप पहले न्यायालयों का सामना करें और वहां से अपनी साफ छवि लेकर आओ फिर हम आपको माननीय बनने का अवसर देने में आपकी सहायता कर सकेंगे,इससे पहले नहीं।
सामान्यतः जन;प्रतिनिधियों पर विरोध प्रदर्शन,धरना,अनशन,शांति-भंग,शांतिपूर्ण रैलियां,जुलूस आदि से सम्बंधित केस पंजीकृत हों तो आयोग उन्हें रियायत दे सकता है। यह उनका राजनेतिक/व्यक्तिगत अधिकार है।
2:- यह सर्व विदित है कि चुनावों में धन-बल,बाहु-बल आदि का खुलेआम दुरुपयोग होता है और चुनाव आयोग सब कुछ देखते हुए,जानते हुए भी कुछ नहीं कर सकता,क्योंकि आयोग को ऐसे कोई विधिक अधिकार नहीं है कि वह ऐसे प्रतियासियों को चुनाव प्रक्रिया से अबिलम्ब बाहर कर सके। मात्र उन पर एक एफ आई आर पंजीकृत कराने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकता,कभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।
3:- सार्वजनिक बड़े बड़े जुलूसों,बड़ी बड़ी महारेलियों आदि पर आयोग प्रतिबंध लगा सके ऐसे अधिकार उसे मिलने ही चाहिए ताकि सभी दलों के चुनावी खर्चों पर इससे अंकुश लग सकेगा।इससे अनावशयक धन खर्च होने पर रोक लग सकेगी।इसके विपरीत पश्चिमी देशों की भांति पक्ष,विपक्ष सभी दल समय समय पर एक ही मंच से अपनी नीतियों को जनता के सामने प्रसारित करें।
4:- सभी दल जन-हित की नीतियां,देश के विकास की नीतियां,शिक्षा-रोजगार उद्योगों आदि से सम्बंधित अपनी अपनी नीतियां सार्वजनिक रूप से समाचार पत्रों,दूरदर्शन आदि पर भी प्रसारित कर सकते हैं,इससे भी अनावशयक खर्चों पर रोक लग सकती है।
5:- मेरा अपना अभिमत है कि भारत सरकार इस विषय पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर ऐसे कुछ कठोर नियम-कानून बना कर भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को बढ़ाने का प्रयास करे।ऐसा कुछ होता दिखे कि साफ-स्वच्छ छवि के प्रतियासी ही चुनावों में भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।यदि ऐसे प्रतियासियों को चुनाव प्रक्रिया से प्रतिबंधित करना सम्भव नहीं है तो फिर संभ्रांत समाज को ऐसे लोगों को मतदान करने को क्यों बाध्य किया जाये?
जब तक यह सब नहीं हो जाता तब तक मतदान अनिवार्य करने का विचार उचित नहीं कहा जा सकता।
होतीलाल
सामाजिक कार्यकर्ता, मेरठ उप्र