सरकार की अनदेखी की भेंट चढ़ रहे गांधी आश्रम
अंतिमा सिंह
सीरीज- दो
दिल्ली। सरकार की अनदेखी के कारण देशभर के गांधी आश्रम आज दम तोड़ रहे हैं। सरकार की गलत नीतियों के कारण यह लगातार डूब रहे हैं और इनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है। फंड की कमी के कारण यह कई प्रकार की आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं साथ ही सरकार के कई प्रकार के टैक्स और मनमानी नीतियों के कारण इनका उत्पादन लगातार गिरता जा रहा है। आज हालात यह हैं कि इन संस्थाओं के पास कर्मचारियों का वेतन देने तक का पैसा नहीं है। संपत्तियों को लीज पर देकर या अन्य तरीकों से फंड जुटाने का प्रयास जरूर किया जा रहा है लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहा है। इसके साथ हर संस्थान में धरना-प्रदर्शन और मुकेदमबाजी के कारण भी यह संस्थाएं आज दम तोड़ रही हैं। गांधीजी का खादी का सपना आज चूर-चूर होता नजर आ रहा है। मोदी सरकार जब पहली बार बहुमत में आई थी तो उसने जोर-शोर से खादी को बढ़ावा देने की बात कही थी लेकिन अफसोस इन गांधी आश्रमों पर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। पदाधिकारियों की मानें तो इन मुद्दों पर कई बार हाई लेवल की मीटिंग दिल्ली में हो चुकी हैं, लेकिन हर बात मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
इस बारे में लखनऊ गांधी आश्रम के महामंत्री अरविंद श्रीवास्वत की मानें तो सरकार की गलत नीतियों के कारण गांधी आश्रमों की हालत बदतर होती जा रही है। वह कहते हैं कि 2010 से केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से मिलने वाली छूट बंद कर दी गई। पहले केंद्र 20 प्रतिशत और राज्य सरकार 10 प्रतिशत की छूट देती थी, लेकिन उसे बंद कर दिया गया। अब यह छूट संस्था अपनी ओर से देती है। साथ ही सरकार ने हाउस टैक्स, जीएसटी लगा दिए, सब्सिडी बंद कर दी, साथ ही न्यूनतम मजदूरी दर लागू होने से श्रमिकों और कर्मचारियों का वेतन भी बढ़ाना पड़ा लेकिन उत्पादन बढ़ाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। फंड की लगातार कमी के कारण समस्याएं बढ़ती गईं। कर्मचारियों के प्रॉविडेंट फंड का पैसा देने के लिए भी हमारे पास पैसा नहीं बचा। लगातार आ रहे नोटिस के कारण हमें प्रॉपर्टी लीज पर देनी पड़ीं लेकिन ताकि कर्मचारियों का पैसा दिया जा सके। वह कहते हैं कि पहले गांधी आश्रमों का माल रेलवे, सरकारी कार्यालयों और अन्य कई जगहों पर सप्लाई होता था लेकिन अब सरकार ने यह माल कहीं और से लेना शुरू कर दिया और जब मांग नहीं होगी तो उत्पादन कहां से होगा। फंड की कमी को लेकर कई बार दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में बैठकें हुईं लेकिन हर बार मामला उठता है और फिर ठंडे बस्ते में चला जाता है, क्योंकि यह नीति पूरे देश के गांधी आश्रमों के लिए बनेगी।
वह कहते हैं कि अभी हाल ही का मामला लीजिए आजमगढ़ गांधी आश्रम में लोगों के फंड का पैसा नहीं देने के लिए भी संस्था के पास पैसा नहीं था तो शासन ने उनकी आठ से नौ करोड़ की प्रॉपर्टी महज तीन करोड़ में नीलाम कर दी। अभी कम से कम 80, 90 करोड़ की प्रॉपर्टी बची है, जिसे भी सरकार नीलाम करने की फिराक में है लेकिन सभी आश्रमों की संपत्ति पर अभी गांधी आश्रम लखनऊ का अधिकार है जो संस्था कोर्ट की अनुमति के बिना बेच तो नहीं सकती लेकिन उसे लीज पर देने का अधिकार उसका है। दूसरा कोई उसे बेच भी नहीं सकता है। वह कहते हैं कि अभी हमने सरकार को नोटिस भेजकर इस पर रोक लगवाई है। सब सरकार की गलत नीतियों का नतीजा है। उधर खादी ग्रामोद्योग के निदेशक संजीव पोसवाल की मानें तो केवीआईसी हर साल रिबेट देता है, सब्सिडी देता है, इस बात पर अरविंद कहते हैं कि सब झूठ और गलत है। रिबेट और सब्सिडी तो कबकी बंद हो चुकी और सामान भी हम उन्हीं संस्थाओं से खरीद सकते हैं जो सरकार से मान्यता प्राप्त हैं। हम अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते, हर काम कमेटी करती है और हर काम केवीआईसी के नोटिस में ही होता है। वह कहते हैं कि केवीआईसी जिस रिेबेट की बात कर रहा है, दरअसल वो प्रोत्साहन राशि है। जो कताई और बुनाई करने वालों को दी जाती है। इसके अलावा कुल उत्पादन पर 35 प्रतिशत सब्सिडी प्रचार-प्रसार के लिए दी जाती है। इसमें सब उनका स्वार्थ है। वह कहते हैं कि अब तो बुनाई, कताई वाले भी नहीं मिलते तो उत्पादन भी कैसे बढ़े। सरकार को नई नीति बनानी चाहिए।
इस बारे में क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम मेरठ के मंत्री पृथ्वी सिंह रावत की मानें तो उत्पादन ठप है क्योंकि अब नए बुनकर नहीं मिलते। पुराने बुजुर्ग ही केवल चरखा कात रहे हैं, नए बंदों में से किसी को यह काम नहीं आता। ऊपर से आजकल मजदूरी बहुत बढ़ गई है और इस काम को पूरे दिन करके भी आपको बेहद कम मेहनाता मिलता है। सरकार को अब नियमों में बदलाव करना चाहिए और नई नीति बनानी चाहिए। अब कताई, बुनाई का काम मशीनों से होना चाहिए। इस मुद्दे पर कई बार खादी ग्रामोद्योग के अधिकारियों संग बैठक हुई। हर बार कहते हैं कि सरकार नई नीति बना रही है लेकिन अभी तक कई साल हो गए, कोई नीति नहीं बनी। अब सरकार को केवल हथकरघा के भरोसे नहीं मशीनों के भरोसे भी उत्पादन बढ़ाने का काम करना होगा। पहले कहा गया था कि कुछ नई तकनीक के चरखे दिए जाएंगे लेकिन हम उस दायरे में नहीं आए और हमें वो चरखे नहीं मिले। हमें फिर उसी पुराने ढर्रे से काम करना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि हम प्रशासन से और पूर्व विधायक लक्ष्मीकांत वाजपेयी से भी फंड के कारण कई बार मिल चुके हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।
उत्पादन घटने की वजह
श्रीवास्वत की मानें तो अब कच्चा माल आसानी से नहीं मिलता। खादी ग्रामोद्योग कहता है कि माल हमसे खरीदो लेकिन वह माल उधार नहीं देता। खुले बाजार से सामान उधार मिल जाता है लेकिन हम बिना खादी ग्रामोद्योग की अनुमति के किसी और से माल खरीद नहीं सकते। साथ ही कहते हैं कि हमारा काम तीन से चार महीने का ही होता है, लेकिन कारीगरों को पूरे साल काम चाहिए और मेहताना भी अधिक चाहिए। यह काम केवल पुराने लोग ही कर रहे हैं, नए बच्चों को तो चरखा कातना भी नहीं आता। ऊपर से अब मांग नहीं है। बहुत सारी संस्थाओं से सरकार यह काम करा रही है तो उत्पादन कैसे हो। उत्पादन तो मांग और आपूर्ति के अनुसार ही होता है।
यहां भी हो रही ट्रेडिंग
ट्रेडिंग का का मतलब है कि माल कहीं और से खरीदा और फिर उसे दाम बढ़ाकर कहीं और बेचा। गांधी आश्रम पहले अपना उत्पादन करते थे लेकिन अब यहां भी ट्रेडिंग हो रही है। इस बारे में रावत कहते हैं कि ट्रेडिंग करना मजबूरी है जब कारीगर नहीं मिलेंगे और मजदूरी भी अधिक देनी पड़ेगी और पैसा भी नहीं है और संस्था को चलाना भी है तो ट्रेडिंग तो करनी पड़ेगी और हम भी कर रहे हैं। श्रीवास्तव भी कहते हैं कि बिना ट्रेडिंग के अब संस्था को नहीं चलाया जा सकता है लेकिन हां माल केवीआईसी की नामित संस्थाओं से ही आता है, अब वह माल बुनकर बनाते हैं या मशीन से बनकर आता है यह बात नहीं पता लेकिन बाहर से माल मंगवाना मजबूरी है। सरकार पहले सहयोग राशि देती थी लेकिन अब सब बंद है।
राष्ट्रीय ध्वज का भी उत्पादन हुआ कम
कर्मचारियों का आरोप है कि अब राष्ट्रीय ध्वज यहां नहीं छपता, उसकी डाई पिलखुवा किसी और को सौंप दी गई है, जबकि ऐसा करना अपराध है। इस बारे में मंत्री रावत कहते हैं कि यह आरोप सरासर गलत हैं, राष्ट्रीय ध्वज अभी भी यहां की रंगाई विभाग में छपता है। अब सरकार ने हर किसी को इसे छापने की अनुमति दे दी है तो यहां उत्पादन काफी कम हो गया है। वैसे भी इसके लिए बकायदा टेंडर निकाले जाते हैं, उसके बाद ही अनुमति मिलती है, पहले यह केवल गांधी आश्रमों में ही छपते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है अब मुश्किल से आठ से 10 हजार छपते हैं जो बिक जाते हैं। जिलाधिकारी दीपक मीणा कहते हैं कि इस बात की जांच कराई जाएगी।
सरकार की नीतियां गांधी आश्रमों को डूबा रहीं
वाराणसी से कांग्रेस प्रत्याशी रहे अजय राय कहते हैं कि सरकार की उदासीनता से यह ही यह डूब रहे हैं। मोदी सरकार ने तो खादी को बढ़ावा देने की बड़ी-बड़ी बातें की थीं लेकिन आज गांधी जी का सपना ही सरकार की गलत नीतियों से टूट रहा है। यह मुद्दा जरूर इस बार लोकसभा में उठाया जाएगा। इसे यूपी के विधानसभा में भी उठाया जाएगा। प्रदेश और केंद्र सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।
देशभर में हैं 41 आश्रम
लखनऊ गांधी आश्रम के महामंत्री अरविंद श्रीवास्तव बताते हैं कि देशभर में 41 गांधी आश्रम हैं, जिनमें से केवल आठ से 10 ही चल रहे हैं बाकी सब बंद होने के कगार पर क्या, बंद ही समझिए। फंड की कमी के कारण हर जगह उत्पादन ठप और धरने-प्रदर्शनों व मुकदमेबाजी से स्थिति और खराब है।
जमीन आती है लखनऊ के अंडर में
पहले आपने कहा था कि गांधी आश्रम मेरठ से हमारा कोई लेना-देना नहीं तो इस पर श्रीवास्वत कहते हैं कि वहां की आंतरिक व्यवस्था से हमारा कोई लेना-देना नहीं लेकिन सभी संपत्तियां हमारे अनुमोदन के बिना लीज पर नहीं दी जा सकतीं। पहले वहां की कमेटी उसे पास करती है फिर हमारी कमेटी में पास होने के बाद ही कोई संपत्ति लीज पर दी जा सकती है। अभी हाल ही में उन्होंने मेरठ रंगाई विभाग का कुछ हिस्सा 29 साल के लीज पर दिया है। वह कहते हैं कि लोगों का वेतन देना है तो पैसे कहां से आएंगे, जब उत्पादन ठप है, लीज पर देना मजबूरी है, बाकी संस्था की कोई प्रॉपर्टी बिना कोर्ट के आदेश के बिक नहीं सकती है।
मंत्री और मैनेजमेंट कमेटी बेईमान व भ्रष्ट है : डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी
मेरठ से पूर्व विधायक और वर्तमान में राज्यसभा सांसद डॉ. लक्ष्मीकांत वाजेपयी कहते हैं कि इस मुद्दे पर मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा। गांधी आश्रम मेरठ का मंत्री और मैनेजमेंट कमेटी सब भ्रष्ट हैं। गांधी आश्रम के मुद्दे को लेकर मंत्री कभी मुझसे मिलने नहीं आया। एक बार मैंने संज्ञान लिया था तो मंत्री ने मुझे ही चुप करा दिया था। सब भ्रष्ट हैं और कर्मचारियों का शोषण कर रहे हैं।
सीरीज जारी रहेगी .........