पांचवीं और अंतिम सीरीज
अंतिमा सिंह
दिल्ली।
अपना बचपन मेरठ के गांधी आश्रम में ही बीता है। आज उसकी हालत देखकर मन द्रवित हो उठता है। पिछले काफी समय से अनशन पर बैठे कर्मचारियों और भाईबंधुओं से मिलने जा रही हूं, उनकी समस्याएं सुनकर मन करता है कि एक जादू की छड़ी हाथ में आ जाए और उनकी सारी समस्याओं का समाधान झट हो जाए, मगर ऐसा कहां संभव है। फिलहाल गांधी आश्रम का मामला कोर्ट में है और बहुत कुछ निर्भर है डिप्टी रजिस्ट्रार और जिलाधिकारी के आदेशों पर। उससे भी ज्यादा इस बात पर कि सरकार इस ओर ध्यान दे। वैसे आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले कुछ सालों में देश में खादी की बिक्री में दुगुनी बढ़ोतरी हुई है लेकिन वह खादी गांधी आश्रम की नहीं है, अन्य संस्थाओं की है।
पहले खादी के नाम पर लोगों को केवल गांधी आश्रम का सामान और माल याद आता था लेकिन अब इसकी जगह दूसरी संस्थाओं ने ले ली है। अब सरकार इनसे माल नहीं खरीदती, इस कारण उत्पादन कम होने से यह पतन की ओर बढ़ रहे हैं। कई नेता और अधिकारी इस बात से भलीभांति परिचित हैं लेकिन इस संस्था को बचाने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा है, ऐसे में आस जगी है केवल यह कि यह मुद्दा विधानसभा और लोकसभा में उठे और सरकार इस ओर गंभीरता से सोचे। आजकल यहां घोटाले और भ्रष्टाचार भी चरम सीमा पर हैं। जिसके कारण मुकदमेबाजी और आए दिन धरना-प्रदर्शन से भी यह संस्थाएं खत्म हो रही हैं। जमीन पर भूमाफियाओं की नजर है और उद्देश्यों की पूर्ति न होने पर कई जगह जमीन के वारिस भी सामने आ रहे हैं। और अफसोस की बात तो  यह है कि सब कुछ जानकार भी राज्य और केंद्र सरकार मूकदर्शक बनी हैं। इन सबके बीच सबसे अधिक जिम्मेदारी है जिलाधिकारी है, जो जिले के हर संगठन के मुखिया होते हैं लेकिन उनकी चुप्पी के कारण ही आठ महीने से कर्मचारी धरने पर हैं और आज तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।

कुछ सालों में बढ़ी है खादी की मांग

खादी ग्रामोद्योग आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 2014 तक हम देश में 31,154 करोड़ खादी की बिक्री करते थे, जो 2023 में बढ़कर 1,34,630 करोड़ हो गई। इस बार यानी 2024 में इसके 1,50,000 करोड़ के पार होने की उम्मीद है। देश के नॉर्थ ईस्ट, पश्चिम और दक्षिण के राज्यों का इसमें बड़ा योगदान है। खादी का उत्पादन सबसे कम पंजाब में और सबसे अधिक तमिलनाडु में होता है, उत्तरप्रदेश 22 वें नंबर पर आता है। देश के अधिकतर गांधी आश्रम उत्तर भारत में ही हैं। मेरठ का गांधी आश्रम क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा है। यह 86 हजार वर्ग मीटर में फैला हुआ है। यहां की लाल कोठी को मेरठ का लाल किला कहा जाता है, जो राज्य सरकार के गजट के अनुसार ऐतिहासिह इमारत है। यह कोठी 1920 में बनी थी। रघुवर नारायण त्यागी ने अपनी यह इमारत 1934 में संस्था को दे दी थी, जिसका पैमाना 1965-66 में श्रेत्रीय श्री गांधी आश्रम मेरठ के नाम हुआ। कुछ लोग इसे दान में मिली संपत्ति बताते हैं लेकिन गांधी आश्रम के पूर्व पदाधिकारी यह बात खारिज करते हुए कहते हैं कि इसका बकायदा 1965-66 में पैमाना हुआ है, जो उस समय के तत्कालीन मंत्री विचित्र नारायण सिंह ने करवाया था।

मेरठ की हर जमीन है विवादित, तुड़वाया रंगाई विभाग का एक हिस्सा

मेरठ के रंगाई विभाग में पहले राष्ट्रीय ध्वज छपता था। उसके साथ ही बेडशीट आदि के डिजाइन बनते और छापे जाते थे, लेकिन अब सब काम ठप हैं। अब इसका एक हिस्सा भी गिरा दिया गया है। इस बारे में लखनऊ के महामंत्री अरविंद श्रीवास्तव कहते हैं कि यह संपत्ति 29 साल की लीज पर दी गई है। लीज पर लेने वाला इसका नए सिरे से नवीनीकरण कर सकता है। उसने ही इसे तोड़ा है, हालांकि विरोध के बाद अब यहां काम ठप पड़ा है। पूछने पर कि यह ऐतिहासिक इमारत है तो इस पर मंत्री पृथ्वी सिंह रावत कहते हैं कि केवल लाल कोठी ऐतिहासिक है, बाकी हिस्सा कोई ना ऐतिहासिक है। इसके अलावा लीज पर दी गईं अन्य दुकानों पर भी विवाद चल रहा है।

चुंगी की जमीन पर भी चल रहा विवाद

चुंगी की जमीन कुल 15730 वर्ग मीटर है। यह जमीन आजकल विवादित है। नियमानुसार यह जमीन स्कूल, अस्पताल, धोबी घाट बनाने सहित संस्थान के कर्मियों के लिए मकान बनाने के लिए प्रयोग की जानी है। कर्मचारियों का आरोप है कि इस जमीन को ट्रस्टी सहित मैनेजमेंट के सदस्यों ने 2014 में डीकेएस शिक्षा प्रसार समिति बनाकर 7500 वर्ग मीटर जमीन को इस समिति को ट्रांसफर कर दिया है, जबकि नियमानुसार ऐसा किया नहीं जा सकता है। इस तरह समिति गठित करना भी संस्था के उद्देश्यों के खिलाफ है। इस बारे में डिप्टी रजिस्ट्र्रार अशोक कुमार कहते हैं कि यह मामला 2014 का है और मैं बाद में आया हूं, इसलिए इस बारे में फाइल देखकर ही बता पाऊंगा। इस बारे में लखनऊ के महामंत्री अरविंद श्रीवास्तव का कहना है कि इस जमीन पर विवाद चल रहा है। यह जमीन सरकार ने योगेंद्र प्रसाद जैन से अधिग्रहण करके संस्था को कार्य के लिए दी थी, लेकिन इस पर काम नहीं हो सका। हमने इस पर स्कूल बनाने के लिए एक समिति बनाई और संस्था की ओर से अनुमोदन पर एमडीए से नक्शा पास कराया। लेकिन सरकार ने इसके निर्माण पर रोक लगा दी। कारण अब जैन परिवार के वारिस इस जमीन को वापस चाहते हैं, इसलिए इसमें पेंच फंसा पड़ा है, अब या तो सरकार इस जमीन को गांधी आश्रम को देगी, या फिर वारिस को देगी या पूरी तरह अपने अंडर में रखेगी। इस पर विवाद है, पूरा मामला क्लीयर होने पर ही अब कुछ हो पाएगा। इस बारे में पृथ्वी सिंह कहते हैं कि नक्शा पास कराने में 43 लाख रुपये खर्च हुए हैं और जमीन ट्रांसफर की बात सरासर गलत है। जमीन ऐसे ट्रांसफर हो ही नहीं सकती है।

समिति में अधिकतम 15 सदस्य हो सकते हैं

गांधी आश्रम प्रबंधन समिति में कुल 15 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से पांच ट्रस्टी यानी आजीवन सदस्य होते हैं, अन्य सदस्यों को जनरल बॉडी चुनती है। जनरल बॉडी के सदस्य इन्हीं सदस्यों में से मंत्री का चुनाव करते हैं। इस समय लखनऊ अरविंद श्रीवास्तव, रामनरेश सिंह, विनोद चौहान, मुखराम संस्था के आजीवन सदस्य हैं।

लोकसभा में उठेगा मुद्दा, तभी बनेगी बात

देश के सभी गांधी आश्रमों का मुद्दा अब लोकसभा और विधानसभा में उठे, तभी कुछ बात बन पाएगी। सारे गांधी आश्रमों में भ्रष्टचार चरम पर है और सरकार की गलत नीतियों के कारण यह और डूब रहे हैं। जिलाधिकारी का जिले की हर समिति और संस्था में विशेष रोल होता है लेकिन मेरठ गांधी आश्रम के मामले में वह चुप्पी साधे हैं। उन्होंने बताया कि वह जल्द फाइल देखकर पूरा ब्योरा देंगे लेकिन आठ महीने से उनकी नाक के नीचे चल रहे अनशन की क्या सच उन्हें कोई जानकारी नहीं है, अगर नहीं है तो भी यह गंभीर मामला है और अगर जानते हुए भी वह कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं तो भी यह गंभीर विषय है।