भोपाल। रितु करिधाल की कहानी युवाओं, विशेषकर लड़कियों के लिए एक प्रेरणाप्रद है। उन्होंने साबित किया है कि अगर किसी के पास सपने हैं और उन्हें पूरा करने का संकल्प है तो वह किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं। उनकी यात्रा लखनऊ के एक छोटे से मोहल्ले से लेकर इसरो के बड़े अभियानों तक, इस बात का उदाहरण है कि दृढ़ता और मेहनत के साथ आप किसी भी ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं। आज, रितु करिधाल न केवल एक वैज्ञानिक के रूप में बल्कि एक प्रेरक वक्ता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं, जो विज्ञान और तकनीक में करियर बनाने के लिए युवाओं को प्रेरित करती हैं।

विज्ञान के प्रति बचपन से था जुनून
रितु का जन्म लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ। विज्ञान और ब्रह्मांड के प्रति उनका जुनून बचपन से ही था। वह बचपन में रात के समय तारे देखतीं और सोचतीं कि वे वहां क्या कर रहे हैं? इसरो और नासा से संबंधित समाचार पत्रों के लेख, जानकारी और तस्वीरें इकट्ठा करना उनका शौक था। इसी जुनून ने उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। 

पहला प्रोजेक्ट था काफी चुनौतीपूर्ण 
रितु ने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरू से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की। अपने शिक्षा के दौरान ही, उन्होंने विज्ञान और अंतरिक्ष के प्रति अपने लगाव को और मजबूत किया। रितु करिधाल ने 1997 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में शामिल होकर अपने करियर की शुरुआत की। इसरो में उनका पहला प्रोजेक्ट बहुत ही चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया। इसरो द्वारा संचालित भारत के अंतरिक्ष अभियानों में  उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा है। 

मंगलयान में डिप्टी ऑपरेशंस डायरेक्टर के रूप में किया काम 
रितु करिधाल ने मार्स ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान) के लिए डिप्टी ऑपरेशंस डायरेक्टर के रूप में काम किया। इस मिशन की सफलता ने न केवल भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नई पहचान दी, बल्कि इसे दुनिया के सबसे सफल अंतरिक्ष अभियानों में से एक के रूप में भी मान्यता दी गई। मार्स ऑर्बिटर मिशन के तहत, भारत मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना, जिसने अपने पहले ही प्रयास में यह उपलब्धि हासिल की। 

चंद्रयान-2 मिशन की रह चुकी हैं संचालन निदेशक
रितु करिधाल चंद्रयान-2 मिशन की संचालन निदेशक थीं। चंद्रयान-2 का उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह का अध्ययन करना और वहां पानी और अन्य खनिजों की उपस्थिति की खोज करना था। इस मिशन में लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर शामिल थे। रितु करिधाल ने इस जटिल मिशन के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो भारत की अंतरिक्ष यात्रा का एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

वूमेन ऑफ द इयर समेत कई बड़ी उपाधि हैं इनके नाम 
रितु को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। जैसे इसरो युवा वैज्ञानिक पुरस्कार उन्हें 2007 में मिला। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्मों पर उन्हें वूमेन ऑफ द इयर उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया।

समाज के लिए भी करती हैं काम
रितु करिधाल अपने पेशेवर कार्यों के अलावा, समाज के लिए भी समर्पित हैं। वह विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने और युवाओं में विज्ञान और तकनीकी के प्रति रुचि विकसित करने के लिए विभिन्न पहलुओं में सक्रिय रूप से शामिल हैं। वह विभिन्न स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जाकर छात्रों से मिलती हैं और उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। रितु की यात्रा और उनकी उपलब्धियां बताती हैं कि भारत की महिलाएं किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं। उनकी कहानी एक प्रेरणा है, जो दिखाती है कि कठिन परिश्रम, समर्पण और विश्वास के साथ, आप अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।