भगवान श्रीकृष्ण के साथ मवेशियों की पूजा का पर्व!
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।। ' यह मंत्र है श्री गोवर्धन पूजा का।
दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन भगवान श्री कृष्ण के लिए 56 प्रकार के भोग तैयार किए जाते हैं, क्योंकि 7 दिन तक भगवान श्रीकृष्ण ने पर्वत अपनी उंगली पर उठाये रखा था और वह कुछ भी खा नहीं पाए थे।इसी लिए उनके भोजन के रूप में अन्नकूट की परंपरा शुरू हुई। माना जाता है , मां यशोदा श्री कृष्ण को एक दिन में आठ पहर भोजन कराती थीं।इसी कारण जब सातवें दिन के अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने पर्वत धरा पर रखा तो गांव वालों ने उन्हें हर दिन के आठ पहर के हिसाब से 56 व्यंजन बना कर खिलाये थे। उसी दिन से अन्नकूट की परम्परा शुरु हुई और इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बना कर श्री कृष्ण और गोवर्धन पूजा की जाने लगी।एक लोककथा के मुताबिक पुलस्त्य ऋषि द्वारा गोवर्धन पर्वत को एक श्राप मिला हुआ है, जिसके कारण गोवर्धन पर्वत का आकार प्रतिदिन कम होता जा रहा हैं।प्राचीन समय में तीर्थयात्रा करते हुए पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे, तो पर्वत की सुंदरता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गए, उन्होंने द्रोणाचल पर्वत से निवेदन किया कि आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए, मैं उसे काशी में स्थापित कर वहीं रहकर पूजन करुंगा। द्रोणाचल यह सुनकर दुखी हो गए लेकिन गोवर्धन पर्वत ने ऋषि से कहा कि मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं लेकिन मेरी एक शर्त है। आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा।
पुलस्त्य ने गोवर्धन की यह बात मान ली। फिर गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं। आप मुझे काशी कैसे ले जाएंगे? तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि मैं अपने तपोबल से तुम्हें अपनी हथेली पर उठाकर ले जाऊंगा। तब गोवर्धन पर्वत ऋषि के साथ चलने के लिए सहमत हो गए।
रास्ते में ब्रज आया, उसे देखकर गोवर्धन सोचने लगे कि भगवान श्रीकृष्ण-राधा जी के साथ यहां आकर बाल्यकाल और किशोर काल की बहुत सी लीलाएं करेंगे। तब उनके मन में यह विचार आया कि वह यहीं रूक जाएं। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत पुलस्त्य ऋषि के हाथों में और अधिक भारी हो गया। जिससे ऋषि को विश्राम करने की आवश्यकता महसूस हुई।ऋषि गोवर्धन पर्वत को ब्रज में रखकर विश्राम करने लगे। ऋषि ये बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं रखना नहीं था, कुछ देर बाद ऋषि पर्वत को फिर से उठाने लगे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि ऋषिवर अब मैं यहां से कहीं नहीं जा सकता।मैंने आपसे पहले ही कहा था कि आप मुझे जहां रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। तब पुलस्त्य उसे ले जाने की हठ करने लगे, लेकिन गोवर्धन वहां से नहीं हिले।तब ऋषि ने क्रोधित होकर उसे श्राप दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया. इसलिए आज से प्रतिदिन तिल-तिल कर तुम्हारा क्षरण होता जाएगा। फिर एक दिन तुम धरती में समाहित हो जाओगे। तभी से गोवर्धन पर्वत तिल-तिल करके धरती में समा रहा है। कहा जाता है कि कलियुग के अंत तक यह पर्वत धरती में समा जाएगा।इस बार सूर्य ग्रहण लगने के कारण पूरे देश में 26 अक्टूबर के दिन गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है।सुबह स्नान करने के बाद गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसे फूलों से सजाना चाहिए। गोवर्धन पर्वत के पास ग्वाल- बाल की आकृति बनाकर उसके पास ही भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखनी चाहिए। गोवर्धन पूजा के समय भगवान श्रीकृष्ण को धूप ,दीप से आरती करें और उन्हें अन्नकूट का भोग लगाएं। गोवर्धन पूजा को लेकर वृंदावन, मथुरा, बरसाना, गोकुल के लोगों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है।गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 26 अक्टूबर सुबह 6:29 से लेकर 8:43 तक रहेगा।इस पर्व का प्रकृति के साथ सीधा सम्बन्ध है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों मे गंगा है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है ।गोवर्धन पूजा पर, भगवान कृष्ण को गेहूं, चावल, बेसन से बनी सब्जी और पत्तेदार सब्जियों का भोग लगाया जाता है। दही, दूध, शहद, चीनी, मेवा और तुलसी से बना पंचामृत भगवान कृष्ण को चढ़ाया जाता है कई प्रकार की सब्जियों से तैयार अन्नकूट सब्जी भी भगवान कृष्ण के लिए बनाई जाती है।अन्नकूट और गोवर्धन पूजा का आयोजन बंद कमरे में नही करना चाहिए। इस दिन चंद्रमा को भी नहीं देखना चाहिए।