विमुक्त जनजातियों के उत्थान के लिए काम कर रहीं दीपा
नई दिल्ली। महाराष्ट्र की रहने वालीं दीपा पवार विमुक्त जनजातियों के लिए काम कर रही हैं। वह इन समुदायों में हाशिए पर रहने वाली महिलाओं का जीवन संवार रही हैं। इसके लिए उन्होंने 'अनुभूति' संस्था का निर्माण किया है।
जिसके जरिए वह एनडी/डीएनटी समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रही हैं। इस संस्था के जरिये वह अब तक महाराष्ट्र के 15 जिलों में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ हजारों लोगों को लाभान्वित कर चुकी हैं।
दीपा की मानें तो मैं खानाबदोश गढ़िया लोहार समुदाय (एनटी/डीएनटी) से ताल्लुक रखती हूं और महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बदलापुर में रहती हूं। बचपन से ही मेरा जीवन काफी मुश्किलों भरा रहा है। पहले मेरा परिवार एक बस्ती में तंबू में रहता था, जहां पिता जी लोहे के औजार बनाते थे और मैं पढ़ाई के साथ-साथ उनके कामों में हाथ भी बंटाती थी। पांच बहनों में मैं पढ़ने में सबसे अच्छी थी, इसीलिए आगे तक पढ़ना चाहती थी, लेकिन जब मैं 15 साल की थी, तभी पिता जी का निधन हो गया। इसके बाद मेरा जीवन और भी संघर्षपूर्ण हो गया। शिक्षा के लिए संसाधन जुटाना और अपने समुदाय के लोगों के खिलाफ जाकर शिक्षा हासिल करना मेरे लिए एक बड़ी चुनौती था। फिर मैं एक स्वयंसेवी संस्था से जुड़ गई और पढ़ाई भी करती रही। 12वीं में मैंने अपने पूरे कॉलेज में दूसरा स्थान हासिल किया, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण आगे नहीं पढ़ सकी। फिर कम उम्र में ही मेरी शादी हो गई। शादी के कुछ वर्षों बाद मैंने उच्च शिक्षा हासिल करने में सफलता पाई।
ऐसे हुई शुरुआत
देश की करीब 15 फीसदी आबादी एनटी/डीएनटी समुदाय के अंतर्गत आती है, जो अपने जीविकोपार्जन के लिए खानाबदोश जीवन जीती है। मैं शुरू से ही अपने समुदाय के उत्थान के लिए काम करना चाहती थी, इसीलिए पढ़ाई के बाद मैं एक गैर सरकारी संस्था से जुड़कर काम करने लगी। 16 वर्षों से अधिक समय तक मैंने कई सामाजिक संगठनों के साथ काम किया।
संस्था की स्थापना
अपने समुदाय के उत्थान के लिए मैंने 2015 में 'अनुभूति' संस्था की स्थापना की। इसके जरिये अब तक हमने राज्य के 15 जिलों में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ हजारों लोगों को लाभ पहुंचाया है। खानाबदोश जनजाति की किसी महिला द्वारा संचालित यह पहली संस्था है, जो लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सशक्तीकरण एवं रोजगार जैसे मुद्दों पर काम करती है।
महिला सशक्तीकरण के लिए कर रहीं काम
इस संस्था के जरिये मैं अपने समुदाय की महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य समेत विभिन्न पहलुओं पर काम कर रही हूं। हमारा एक समूह है, जो क्षेत्रों में जाकर जागरूकता कार्यक्रम चलाता है। इस काम के लिए मुझे कई सम्मान भी मिल चुके हैं। 2018 में बर्कले यूनिवर्सिटी के ‘टेल हर स्टोरी’ प्रतियोगिता में मुझे सम्मानित किया गया था। हाल ही में मुझे पांचवें ‘मार्था फेरेल अवार्ड' से सम्मानित किया गया है।