रंजीता सिंह

​गाजियाबाद। हम सभी जानते हैं कि अंगदान करने में महिलाएं, पुरुषों से आगे हैं। आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं। महिलाएं संवेदनशील होती हैं, ममता, त्याग और करूणा की देवी होती हैं इसलिए हर रिश्ते की भलाई के लिए तैयार रहती हैं लेकिन कई बार उनकी यह खूबियां जिंदगी में मु​​श्किलें भी पैदा कर देती हैं। ऐसा ही हापुड़ जिले के एक गांव की रहने वाली मीना (बदला हुआ नाम) के साथ हुआ। उनके भाई की एक किडनी खराब थी, तो उन्होंने अपनी एक किडनी उन्हें दान कर दी। इस संबंध में उन्होंने पति और ससुरालवालों को अपने पक्ष में लिए बिना अपनी मर्जी से यह डोनेशन किया। यह बेहद हिम्मतभरा और चुनौतीपूर्ण फैसला था, जिसे लेना हर किसी के बस की बात नहीं। सबके मना करने के बावजूद वह अपने इस फैसले पर अकेले मजबूती से अडिग रहीं। खैर किडनी डोनेशन के बाद उनके और पति के रिश्ते में खटास आने लगी। कई बार उनकी तबियत खराब होती या कमजोरी महसूस होती तो  इस डोनेशन को लेकर दोनों के बीच अक्सर बहस होती। आ​खिरकार एक समय ऐसा भी आया, जब दोनों अलग-अलग रहने लगे। यह शायद कोई एक मामला नहीं होगा, देश में ऐसे अनेकों मामले होंगे। उसकी एक वजह सामाजिक रूढ़िवादिता  है, जहां महिलाओं को खुद फैसले करने का अ​धिकार नहीं है, दूसरा अगर महिलाएं अंगदान कर भी देती हैं तो बाद में एक पुरुष की अपेक्षा उनकी देखभाल कम की जाती है। मीना की मानें कि अगर अंगदान मायके पक्ष में किसी को किया जाता है तो कई बार ससुरालवाले ऑब्जेक्शन करते हैं या उनकी देखभाल के लिए ताने दिए जाते हैं। हमारे यहां महिलाओं को अपने फैसले लेने का अ​धिकार नहीं है, ऐसा इसलिए किया जाता है। वह जब भी बीमार पड़ती हैं तो उसे हर बार किडनी डोनेशन से जोड़ दिया जाता है। चाहे वह साधारण बीमारी ही क्यों न हो। इस बारे में डॉ. उत्कर्ष अग्रवाल की मानें तो डोनर को भी दिक्कत हो सकती है। जब भी किडनी में इन्फेक्शन होगा तो ​परेशानी होगी क्योंकि आपके पास एक ही किडनी है तो जिंदगी आम लोगों जैसी तो नहीं है। बाकी बुखार और कमजोरी लग सकती है। सावधानी तो ताउम्र बरतनी पड़ती है। एमएमजी अस्पताल गाजियाबाद के सीएमएस डॉ. राकेश कुमार के अनुसार डोनर को भी सावधानी तो बरतनी पड़ती है। साथ ही इंफेक्शन से बचाव बेहद जरूरी है। नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट के हार्ट सर्जन डॉ. ओपी यादव की मानें तो साधारणता डोनर को कोई दिक्कत नहीं होती है, बाकी बीमार तो कोई भी हो सकता है। यशोदा अस्पताल काैशांबी में नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. प्राजित मजूमदार के अनुसार डोनर को हमेशा इंफेक्शन से बचकर रहना पड़ता है साथ ही बीपी आदि का ध्यान उम्र  भर रखना पड़ता है, वह कहते हैं कि वैसे सारे टेस्ट के बाद ही डोनर की किडनी ट्रांसप्लांट की जाती है, लेकिन फिर भी उसे अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान तो ताउम्र रखना ही पड़ता है। समाजशास्त्री लौकेश की मानें तो महिलाएं घर की रीढ़ होती हैं, ऐसे में जरूरी है कि ऐसे बड़े फैसले सबकी सहमति से होने चाहिए, ताकि दोनों पक्ष हमेशा एक दूसरे के प्रति कृतज्ञ और संवेदनशील बने रहें। 

जीते जी अंगदान करने में महिलाएं आगे, मरने के बाद अ​धिक अंगदान करते हैं पुरुष
नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (नोटो) की सालाना रिपोर्ट के अनुसार मृत्यु के बाद अंगदान के मामले में तो पुरुष आगे हैं, जबकि जीते जी अंगदान कर किसी करीबी की जिंदगी बचाने में महिलाएं आगे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में 1,099 कैडेवर (ब्रेनडेड) डोनेशन हुए। इनमें से 77 फीसदी यानी 844 पुरुष थे। वहीं 15,436 लोगों ने जीते जी अपने परिवार को अंगदान किए। इनमें 63 फीसदी महिलाएं थीं। कुल अंगदान के 63 फीसदी मामलों में 8,486 पुरुष मरीजों को नया जीवन मिला। जिसमें किडनी ट्रांसप्लांटेशन से 63% पुरुषों को नया जीवन मिला। वहीं सिर्फ 4,993 महिलाएं (37 फीसदी) इसका लाभ ले सकीं। हालांकि पिछले कुछ सालों में अंगदान करने वालों की संख्या बढ़ी है। 

महिलाओं को जरूरत पड़ने पर बेहद कम पुरूष आते हैं सामने
 राज्य अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एसओटीटीओ, लखनऊ) की रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष मरीजों को लिवर एवं किडनी दान करने वाली 87 फीसदी महिलाएं होती हैं। इसमें करीब 50 फीसदी मामलों में पत्नी अंगदान करती है। पत्नी के न होने पर 38 फीसदी केस में मां दान देती हैं। वहीं, जब महिलाओं को अंगदान की जरूरत होती है तो सिर्फ 13 फीसदी परिवार के पुरुष ही आगे आते हैं। एसओटीटीओ के निदेशक प्रो. आर हर्षवर्धन की मानें तो महिलाओं को दान में अंग दिलाना आज भी बड़ी चुनौती है। इसके पीछे मूल कारण सामाजिक सोच है। महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच आज भी नहीं बदली है। केजीएमयू में अब तक आठ किडनी प्रत्यारोपण हुए हैं, इसमें मिर्फ एक महिला का प्रत्यारोपण हुआ है। केजीएमयू में 34 मरीजों का लिवर प्रत्यारोपण किया गया। इसमें 32 पुरुष और दो महिलाएं हैं, एक महिला को बेटे ने दान दिया, जबकि दूसरे को कैडेवर (ब्रेनडेड के बाद अंगदान)  से मिला।

महिलाओं के लिए अंगदान में होती हैं मुश्किलें
पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. नारायण प्रसाद की मानें तो संस्थान में हर साल करीब 140 किडनी प्रत्यारोपण हो रहे हैं। इसमें महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ 10 फीसदी है। महिला को प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है तो परिवार के लोगों की काउंसिलिंग में ज्यादा वक्त लगता है। समझाने के बाद कोई सदस्य तैयार होता है तो उसमें भी कोशिश रहती है कि किसी न किसी महिला सदस्य का ही अंगदान करा दिया जाए। परिवार के सदस्यों का इस बात पर जोर अ​धिक रहता है कि कैडवर मिल जाए तो बेहतर रहेगा।

उत्तर प्रदेश में यह है ​स्थिति
उत्तर प्रदेश में 65 सरकारी और निजी अस्पतालों के पास अंगदान का लाइसेंस है। अभी लखनऊ में केजीएमयू, पीजीआई, लोहिया संस्थान में अंग प्रत्यारोपण हो रहा है। इसमें सर्वाधिक 140 से 150 किडनी प्रत्यारोपण पीजीआई कर रहा है। लखनऊ स्थित कुछ निजी संस्थानों में भी किडनी और लिवर प्रत्यारोपण की शुरुआत हुई है। पूरे प्रदेश में वर्षभर में करीब 250 प्रत्यारोपण हो रहे हैं। इसमें महिलाएं केवल 25 से 30 तक ही शामिल हैं। हृदय प्रत्यारोपण का लाइसेंस सिर्फ पीजीआई के पास है, लेकिन अभी यहां शुरुआत नहीं हुई है।

अंगदान में द​क्षिण भारत आगे, उत्तर भारत पीछे 
अगर आंकड़ो पर गौर करें तो 2023 में ब्रेन डेड यानी कैडवर डोनेशन सबसे अ​धिक तेलंगाना में 252, तमिलनाडु और कर्नाटक में 178-178, महाराष्ट्र में 148,  गुजरात में 146, ​दिल्ली एनसीआर में 66, मध्यप्रदेश में आठ, राजस्थान में छह और छत्तीसगढ़ में चार डोनेशन हुए। अगर अंगदान का कुल प्रतिशत देखा जाए तो तेलंगाना में 25.5 प्रतिशत, तमिलनाडु और कर्नाटक में 18-18 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 15 प्रतिशत, गुजरात में 14.8 और दिल्ली-एनसीआर में महज 6.7 प्रतिशत अंगदान हुआ। 
रिपोर्ट में बताया गया कि देश में चार प्रकार के अंग प्रत्यारोपण में बहुत काम करने की जरूरत है। इनमें हार्ट, लंग, पेंक्रियाज व स्मॉल बाउल शामिल हैं। इन चारों ट्रांसप्लांटेशन में दक्षिण के राज्य आगे हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत उत्तर भारत पीछे हैं। कुल 233 हार्ट ट्रांसप्लांट में सबसे ज्यादा 70 तमिलनाडु में हुए। करीब 150 लंग ट्रांसप्लांट में से 75 तेलंगाना में हुए। राजस्थान में सिर्फ एक हार्ट और एक लंग ट्रांसप्लांट हुआ। एमपी, छत्तीसगढ़ का खाता तक नहीं खुला।