लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण की सभी 13 सीटों पर बढ़त बनाने के लिए पक्ष और विपक्ष ने पूरी ताकत झोंक दी है। पूरब में जातीय समीकरणों के जोर को देखते हुए विपक्ष के साथ ही भाजपा ने भी अपनी प्रचार रणनीति में बदलाव किया है। हर जाति हर वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग पर खास फोकस  किया है।
दरअसल, पूर्वी यूपी में मुद्दों के बजाय जातीय समीकरण के आधार पर ही चुनावी माहौल बनता-बिगड़ता रहा है। लिहाजा राजनीतिक दल भी उसके मिजाज के आधार पर ही अपनी रणनीति तैयार करती हैं।
मोदी-योगी जहां इलाके को मथ रहे हंै, वहीं, विपक्ष की ओर से उछाले गए आरक्षण जैसे मुद्दे पर पिछड़ों और दलितों को समझाने का भी प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को भी प्रचार में उतारा गया है। इसी तरह हर बूथ पर भी जातीय समीकरण को देखते हुए स्थानीय नेताओं को लगाया गया है।
यानी दलित बहुल बूथ पर दलित नेता और पिछड़ा बहुल बूथ पर पिछड़े समाज के नेता को जिम्मेदारी सौंपी गई है। खास बात है कि पहली बार भाजपा की ओर से गरीब मुस्लिम आबादी वाले बूथों पर भी पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों को उतारा गया है।


यादव पट्टी में मोहन यादव को उतारा


यूपी में सपा के कॉडर वोट बैंक माने जाने वाले यादव जाति को साधने के लिए भाजपा द्वारा तैयार की गई खास रणनीति के तहत मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी पूरब में प्रचार के लिए सियासी मैदान में उतर चुके हैं। एक-एक दिन में उनके सात से आठ कार्यक्रम कराए जा रहे हैं। वहीं, ब्राह्मण मतदाताओं के बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के चेहरे का इस्तेमाल हो रहा है। साथ में स्थानीय ब्राह्मण चेहरों को भी लगाया गया है।

 

दलितों व पिछड़ों को समझाने में जुटा संघ 


पूरब में मतदान बढ़ाने को लेकर भाजपा का खास फोकस दलित मतदाताओं को बूथ तक लाने की है। खास बात यह है कि इस काम में भाजपा के साथ ही संघ परिवार भी जुटा है। संघ परिवार को खास तौर पर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने के मुद्दे पर दलितों को समझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।