संयुक्त अरब अमीरात में जाने माने सफल उद्योगपति अमित त्यागी (मुख्तलिफ) का बचपन पिलखुआ के पास एक छोटे से कंदौली गांव में बीता। स्वभाव के शरारती अमित पढ़ाई में औसत थे लेकिन स्कूल में होने वाली सभी प्रतियोगिता में भागीदारी करते और अव्वल आते थे। ग्रेजुएशन मेरठ विश्वविद्यालय से करके पिता के मार्गदर्शन में व्यवसाय करने यूएई चले गए थे। अति व्यस्तता के बाद भी इनका लेखन निरंतर चलता रहा, बहुत ही खूबसूरत रचनाएं लिखते हैं। इनकी बहुत सारी रचनाओं में से एक रचना आप सभी के लिए आज प्रकाशित की गई है। आशा है आप  सभी को पसंद आएगी। 

"गजल" 

शहर वीरान सा लगता है......

हर गली, हर चेहरा अनजान सा लगता है ..
बिन तेरे, तेरा ये शहर वीरान सा लगता है ..

यूँ तो जिस्म में जान अभी भी बाक़ी है ..
पर धड़कता, ये दिल बेज़ान सा लगता है ..

सुना था जहाँ कभी शोखियों के मेले थे ..
अब वो आँगन, सूना मैदान सा लगता है ..

रईसियत थी जो हमारी, कभी तेरी बदौलत ..
वही दौलत अब, मुफ़लिसी का समान सा लगता है ..

रिश्तों की परख की क़ाबिलियत रखते थे हम भी..
उस ही हुनर पे मेरे, अब मुझे ग़ुमान सा लगता है..

क़िस्से थे शहर में जिसकी मेज़बानी के ..
वो दिलदार अब कहीं, मेहमान सा लगता है ..

हर गली, हर चेहरा अनजान सा लगता है ..
बिन तेरे, तेरा ये शहर वीरान सा लगता है ..

“मुख़्तलिफ़ अमित”

@mukhtalif_amit