एक किन्नर, जिनकी जिद के आगे झुका सिस्टम
नई दिल्ली। एक ट्रांसजेंडर के लिए साधारण तरीके से जीवन जीना आसान नहीं है। उन्हें कई प्रकार की परेशानियों से जूझना पड़ता है। कुछ ऐसा ही हुआ केरल की रहने वाली अनीरा कबीर के साथ। उन्होंने कई बार साक्षात्कार दिए लेकिन हर बार उनका ट्रांसजेंडर होना आड़े आ गया। उन्होंने दो दर्जन से अधिक बार इंटरव्यू दिए लेकिन हर बार वह नाकाम रहीं। फिर वह अपना चेहरा छुपाकर एक बार इंटरव्यू देने पहुंची, तब जाकर वह कामयाब हुईं। उनकी यह नौकरी एक स्कूल में अस्थायी तौर पर थी लेकिन वहां भी उनके वर्ग के बारे में पता चलने पर उन्हें हटा दिया गया। उसके बाद उन्होंने ऐसा कदम उठाया कि सिस्टम झुकने पर मजबूर हो गया।
वह ईमानदारी से गुजर-बसर करना चाहती हैं
दरअसल पिछले साल नवंबर में अनीरा कबीर नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गई थीं। यह पिछले दो महीने में उनका 14वां इंटरव्यू था। इसमें उन्होंने एक टोपी और मास्क पहना था, जिनसे उनके चेहरे का ज्यादातर हिस्सा छुप गया था।
35 साल की अनीरा ट्रांसजेंडर महिला हैं। उन्होंने कहा कि इंटरव्यू में ऐसा उन्होंने ट्रांसजेंडर महिलाओं के साथ होने वाली दिक्कतों से बचने के लिए किया था। इससे पहले के इंटरव्यू में अनीरा कई परेशानियां झेल चुकी थीं।
अनीरा को दक्षिण भारतीय राज्य केरल के एक सरकारी स्कूल में अस्थायी नौकरी मिली, लेकिन उनका आरोप है कि उन्हें दो महीने से भी कम समय में गलत तरीके से हटा दिया गया। स्कूल के प्रिंसिपल ने इस मामले में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। जिला अधिकारी पी कृष्णन का कहना है कि प्रिंसिपल ने उन्हें सूचित किया है कि अनीरा कबीर को हटाया नहीं गया है बल्कि वह चीज़ों को गलत समझ बैठीं।
अलग तरीके से उठाई आवाज
ऐसा होने के बाद अनीरा ने जनवरी में सरकार से कानूनी मदद के लिए संपर्क किया। वह एक वकील चाहती थीं ताकि इच्छामृत्यु के लिए याचिका दायर कर सकें। वह कहती हैं, मैं काम करके अपना गुजर-बसर करना चाहती हूं, लेकिन ये भी नामुमकिन हो गया है, इसलिए मैंने यह रास्ता चुना। वह कहती हैं कि मैंने उन देशों के बारे में पढ़ा है, जहां इच्छामृत्यु की अनुमति है, लेकिन भारत में केवल पैसिव यूथेनेसिया (इच्छामृत्यु) की अनुमति है। पैसिव यूथेनेसिया का मतलब है कि एक मरीज ऐसी बीमारी से पीड़ित है कि उसे बचाया नहीं जा सकता और उसे कृत्रिम सपोर्ट जैसे वेंटिलेटर या फीडिंग ट्यूब के सहारे रखा गया है। इस हालत में लाइफ सपोर्ट हटाने पर और उसे जारी रखने पर बहस होती है। ऐसे में मरीज के पास अधिकार होता है कि वह मशीन हटाने के लिए सहमति दे। इसे ही पैसिव यूथेनेसिया कहते हैं।
केवल समाज को संदेश देना चाहतीं थीं
अनीरा कहती हैं, मुझे पता है कि इच्छामृत्यु के लिए कानून से अनुमति नहीं मिलेगी, लेकिन मैं इस मामले में केवल एक संदेश देना चाहती थी। मैं चाहती थी कि इस मामले में सरकार का ध्यान जाए और उन्हें यह करने में सफलता मिली। सरकार ने तत्काल प्रतिक्रिया दी और अनीरा को दूसरी नौकरी मिल गई। उन्होंने जो किया वह न केवल दूसरों के लिए मिसाल है। है
देश में करीब 20 लाख किन्नर
भारत में एक अनुमान के अनुसार, करीब 20 लाख ट्रांसजेंडर लोग हैं, हालांकि एक्टिविस्टों का कहना है कि यह तादाद और ज्यादा है। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकार भी बाकियों की तरह ही हैं। हालांकि भारत में ट्रांसजेंडर अब भी शिक्षा और स्वास्थ्य तक अपनी पहुंच के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर को भिखारी और यौनकर्मी बनने पर मजबूर किया जाता है। अनीरा की मानें तो ट्रांसजेंडर समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व और नौकरियों में आरक्षण की जरूरत है। वह कहती हैं, मैं कभी इच्छामृत्यु जैसा कदम नहीं उठाना चाहती लेकिन हमारे पास विकल्प क्या है?
लिंग पता चलने पर जूझतीं रहीं
सेंट्रल केरल के पलक्कड जिले में पली-बढ़ी अनीरा कबीर कहती हैं कि जन्म के आधार पर जो लैंगिक पहचान उन्हें दी गई, उसे लेकर वह सालों तक जूझती रहीं। अनीरा ने जब और ट्रांसजेंडर लोगों को खोजना शुरू किया तब वह टीनेजर ही थीं। इसी कोशिश में उनकी गिरफ्तारी हुई और तब से उन्होंने यह करना बंद कर दिया। यहां तक कि एक अखबार में ट्रांसजेंडर लोगों की तस्वीर देख वह बंगलुरु भाग गई थीं। तभी उनका संपर्क ट्रांसजेंडर समुदाय से हुआ, लेकिन जिंदगी की मुश्किलें तब भी कम नहीं हुईं। ट्रांसजेंडर समुदाय में से ज्यादातार लोग सालों तक 'जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी' के लिए भीख मांग पैसे जुटाते रहते हैं। जब कबीर वापस घर आईं तो काफी निराश थीं।
शुरू से था टीचिंग का शौक
वह कहती हैं, मेरा परिवार जैसा चाहता था, उस तरह से मैंने जीने की बहुत कोशिश की। उन्होंने बहुत मुश्किल से पढ़ाई की। उन्हें बच्चों को पढ़ाने में अच्छा लगता था और जब वह स्टूडेंट थीं, तब से ही यह काम करती थीं। वह पड़ोस के बच्चों को पढ़ाती थीं। घर छोड़ने के बाद भी वह मनचाहा जीवन जीने के लिए संघर्ष करती रहीं। उनके पास तीन मास्टर डिग्रियां हैं। एक टीचिंग ट्रेनिंग की ड्रिग्री भी है.।उन्होंने सीनियर स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए एक राज्य की परीक्षा भी निकाली, लेकिन इंटरव्यू के दौरान उनसे असहज करने वाले सवाल पूछे जाते थे। इंटरव्यू के दौरान एक व्यक्ति ने उनसे पूछा था कि वह छात्रों को कामुक नजरिए से नहीं देखेंगी, इसका क्या भरोसा है? अनीरा कहती हैं, ''मैं नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षा में पास हो गई थी और उसके लिए योग्य थी। उनकी नियुक्ति सामाजिक विज्ञान की एक जूनियर शिक्षक के तौर पर हुई। यह अस्थायी पद था। जब अनीरा ने बताया कि उन्होंने अपने ट्रांसजेंडर होने की बात स्कूल के एक अधिकारी को बताई थी। मैंने उनसे कहा कि मैं एक ट्रांस वुमन हूं और इंटरव्यू में इस तरह से आने के लिए माफी मांगी। मैंने उनसे कहा कि बिना नौकरी के मैं घर का रेंट भी नहीं दे सकती हूं।
नौकरी तो मिल गई, पर वहां मिलने लगी उपेक्षा
जब अनीरा ने नवंबर 2021 में पढ़ाना शुरू किया तो उन्हें सहकर्मियों से उपेक्षा मिलनी शुरू हो गई, लेकिन वहां के स्टूडेंट अच्छे थे। एक दिन मुझे अचानक से कहा गया कि मैं छह जनवरी से स्कूल ना आऊं। मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। यह नियम के खिलाफ था। नौकरी जाने की वजह से अनीरा कबीर एकदम से घबरा गईं। वह स्कूल के पास दुकानों में गईं और उन्होंने सेल्सपर्सन का काम मांगा, लेकिन किसी ने काम नहीं दिया। इसी दौरान उन्होंने कानूनी मदद के लिए संपर्क किया। यह खबर वायरल हो गई और केरल के शिक्षा मंत्री ने इस पर तत्काल प्रतिक्रिया दी। उन्होंने पलक्कड के एक सरकारी दफ्तर में दूसरी अस्थायी नौकरी शुरू करा दी। अब भी वह कई तरह की मदद के इंतजार में हैं।