नई दिल्ली। पिछले चार दिनों से चल रही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंका पर शनिवार को विराम लग गया। पहले से ही यह माना जा रहा था कि पाकिस्तान अपने यहां तबाही होने पर अमेरिका की मदद लेगा और हुआ भी ऐसा, उसने अमेरिका के जरिए इस युद्ध पर विराम लगवाया। ऐसे में भारत ने अपनी शर्तों पर हमले रोक दिए और साथ ही अमेरिका को यह भी बता दिया कि अगर पा​किस्तान ने दोबारा हिमाकत की तो घुस-घुसकर उसे दुनिया के नक्शे से उड़ा देंगे। यह आधुनिक भारत किसी की सुनेगा नहीं, ब​ल्कि मुंहतोड़ जवाब देगा। इससे पहले भी 1971 में भारत-पाक युद्ध 13 दिन चला था और तब कई श​क्तिशाली देश पाकिस्तान के साथ थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब बदले भारत में खुलकर कोई देश आतंकवाद पर पा​किस्तान का साथ नहीं दे सकता। अमेरिका खुद अपने यहां वर्ल्ड टॉवर सेंटर पर हुए हमले के बाद अफगानिस्तान में घुस-घुस कर आतंकवादियों का सफाया कर चुका है तो अब वह भारत को कैसे रोक सकता है, लेकिन एक सच यह भी है कि हर देश शांति चाहता है, युद्ध कोई नहीं चाहता। 1971 के युद्ध में जहां कई श​क्तिशाली देश पाकिस्तान के साथ थे, वहीं इस बार वह इस जंग में अकेला खड़ा है। 

13 दिन चला था युद्ध
1971 का युद्ध भारत ने पाकिस्तान के साथ 13 दिन तक लड़ा था। इसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ था। उस समय पाकिस्तान की 90 हजार फौजों ने पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खा नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसर्पण कर दिया था। इसे दुनिया का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण माना जाता है। यह भारत की बहुत बड़ी जीत था। भारत ने यह जीत तब हासिल की थी, जब पाकिस्तान के साथ पश्चिमी गठबंधन और अरब जगत पूरी मजबूती से खड़ा था। अब करीब 55 साल बाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर जंग जैसे हालात बने, तो आइए जानते हैं कि इतने सालों बाद अब पाकिस्तान के साथ कौन-कौन खड़ा है।

जब अमेरिका के पीछे पड़ गया था सोवियत संघ
1971 की जंग में अमेरिका पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा था। रिचर्ड निक्सन उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति और हेनरी किसिंजर उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे। यह दोनों उस समय की भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जरा भी पसंद नहीं करते थे। हालात यह थे कि 1971 के युद्ध से ठीक एक महीने पहले जब इंदिरा गांधी अमेरिका की यात्रा पर गईं तो रिचर्ड निक्सन ने अपने ऑफिस के बाहर उन्हें इंतजार कराया था। ऐसे में युद्ध के समय भारत का साथ देने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी।


अमेरिका ने आर्थिक और सामरिक मदद की थी
1971 की लड़ाई में अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देते हुए आर्थिक और सामरिक मदद की थी। अमेरिका ने पाकिस्तान को हथियार और पैसा दोनों से मदद की। युद्ध के दूसरे ही दिन भारत के हमले से हिले पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति भवन को एक आपात संदेश भेजकर मदद मांगी थी। इसके बाद अमेरिका ने अपने सातवें बेड़े को बंगाल की खाड़ी में भेजने का फैसला किया। यूएसएस एंटरप्राइज नाम का यह बेड़ा परमाणु शक्ति से चलता था। इसमें सात विध्वंसक, एक हेलिकॉप्टर वाहक यूएसएस ट्रिपोली और एक तेलवाहक पोत शामिल था। इसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक बार ईंधन भरे जाने के बाद यह बिना ईंधन भरे पूरी दुनिया का चक्कर लगा सकता था। अमेरिका के सातवें बेड़े का मुकाबला करने के लिए तत्कालीन सोवियत संघ ने अपना एक बेड़ा भेजा था। यह बेड़ा अमेरिकी बेड़े के आगे-पीछे ही चल रहा था, यह अमेरिकी बेड़े की किसी भी कार्रवाई का जवाब देने के लिए तत्पर था, लेकिन इसकी नौबत नहीं आई। पाकिस्तान सेना के आत्मसमर्पण के बाद अमेरिका का सातवां बेड़ा लौट गया।

चीन ने भी की थी पाकिस्तान की मदद
इस लड़ाई में पाकिस्तान का साथ देने वाला अकेले अमेरिका ही नहीं था। उसे चीन का भी साथ मिला था। चीन, भारत को 1962 के युद्ध में हरा चुका था। उसने भारत पर दक्षिण एशिया में साम्राज्यवादी नीतियां चलाने का आरोप लगाया। उसने बहुत दिनों तक बांग्लादेश के विभाजन को मान्यता नहीं। बांग्लादेश ने जब 1972 में संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए आवेदन किया तो चीन ने वीटो लगा दिया था। चीन ने बांग्लादेश को 1975 में मान्यता दी। बांग्लादेश के बंटवारे से श्रीलंका डर गया था। उसे डर था कि भारत उसका भी बंटवारा न करा दे, इसलिए श्रीलंका ने भी पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों को अपने अपने भंडारनायके हवाई अड्डे पर उतरने और उसमें ईंधन भरने की इजाजत दी थी।


उस सयम दुनिया में शीत युद्ध चल रहा था। सोवियत संघ और अमेरिका दुनिया के शक्ति के दो ध्रुव थे। दुनिया के अधिकांश देश इन्हीं दो देशों के बीच बंटे हुए थे।उस समय सोवियत संघ अफगानिस्तान में कम्युनिस्ट सरकार बनवाने की कोशिश कर रहा था, अमेरिका दुनिया में कहीं भी कम्युनिस्ट शासन नहीं चाहता था, इसलिए वह सोवियत संघ को हराना चाहता था। इसमें पाकिस्तान उसका बेहतर साथ दे रहा था, इसलिए वह भारत के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान का खुलकर साथ दे रहा था। पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका जॉर्डन और सऊदी अरब को भी साथ लाने की कोशिश कर रहा था। उसने दोनों देशों के राजाओं को पत्र लिखकर मदद करने के लिए कहा था। इनके साथ-साथ लीबिया ने भी पाकिस्तान की मदद में अपने लड़ाकू जहाज तैनात किए थे, उस समय के शाह रजा पहलवी ने भी पाकिस्तान की मदद की थी। ईरान ने पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई की थी।

अब बदला ग​णित
आज करीब 55 सालों बाद सब कुछ पूरी तरह से बदल चुका है। यह उस समय नजर आया, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत-पाकिस्तान के बढ़ते तनाव पर शुक्रवार को कह दिया कि 'दिस इज नन ऑफ ऑर बिजनेस'। उनका साफ कहना था कि अमेरिका इस झगड़े में हस्तक्षेप नहीं करेगा। वहीं 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की मदद करने वाले अधिकांश देशों के साथ इस समय भारत के साथ कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे हैं। वहीं वर्तमान में इन देशों के साथ पाकिस्तान के संबंध बिगड़ चुके हैं। अमेरिका की अब अफगानिस्तान में कोई रुचि नहीं है, इसलिए अब उसके लिए पाकिस्तान की कोई अहमियत नहीं है। आज के समय केवल चीन ही मजबूती से पाकिस्तान संग खड़ा हो सकता था, क्योंकि चीन ने पाकिस्तान में बहुत निवेश किया हुआ है, लेकिन भारत से उसका व्यापारिक रिश्ता पाकिस्तान से भी बड़ा है। उसका सबसे बड़ा बाजार भारत ही है। ऐसे में अकेले पड़े पाकिस्तान ने अमेरिका से युद्धविराम की घोषणा करवाई।