गाजियाबाद। ऊपर वाले ने यदि आपको सक्षम बनाया है तो, निश्चित तौर पर दूसरों के काम आने के लिए, यह कहना है बिहार कैडर की आईएएस ऑफिसर इनायत खान का।  पुलवामा हमले के बाद वह सबके लिए प्रेरणादायक बनीं। उन्होंने हमले में शहीद हुए बिहार के सीआरपीएफ जवानों रतन कुमार ठाकुर व संजय सिन्हा की एक-एक बेटी को गोद लिया। उनकी पढ़ाई और आजीवन परवरिश का जिम्मा उठा रही हैं। 

इंजीनियर से आईएएस बनीं
इनायत खान की पहचान एक अनुशासित अफसर के रूप में है। उन्होंने 2011 में सिविल सेवा परीक्षा में 176वां स्थान हासिल किया और उन्हें बिहार कैडर मिला। वे मूल रूप उत्तर प्रदेश के आगरा की निवासी हैं। सिविल सेवा में आने से पहले 2007 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक साल सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनी के लिए काम किया। मगर, इरादा कुछ और था, इसलिए नौकरी छोड़ी और आईएएस बनीं। सरकारी सिस्टम के ढीले रवैये को सुधारा। बाबुओं की मनमानी पर रोक लगाई। खास बात है कि बिहार की सामाजिक पृष्ठभूमि में रहकर भी अपनी अलग पहचान बनाई। वह बिहार में शेखपुरा और फिर अररिया की जिला​धिकारी रहीं। वर्तमान में वह निबंधक, सहयोग समिति (पटना) हैं।

पीएम मोदी कर चुके हैं तारीफ
अररिया से पहले इनायत बिहार के शेखपुरा जिले की डीएम थीं। इस जिले की गिनती बिहार के पिछड़े जिलों में होती है। केंद्र सरकार देश के जिन 113 जिलों में आकांक्षा योजना चला रही है, उसमें बिहार का शेखपुरा भी शामिल है और इस योजना के तहत यहां बेहतर काम हुआ। लिहाजा, पीएम मोदी ने एक वीसी में इनायत खान की जमकर तारीफ की। पीएम ने कहा कि इनायत के बेहतर काम करने से ही बिहार के शेखपुरा जिले में बड़ा बदलाव हुआ है। उन्होंने जिले के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उनके प्रयासों की खूब सराहना की।