दिल्ली। उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव भी है जो रामनवमी के दिन पूरी तरह खाली हो जाता है। यहां बच्चे, बुजुर्ग क्या जानवर तक दिखाई नहीं देते। यहां इस दिन चारों ओर सन्नाटा पसरा रहता है। यह कुशीनगर का चंदन बरवा गांव है। यहां हिंदू-मु​स्लिम दोनों समुदाय के लोग रहते हैं। यह मिलकर इस परंपरा को सालों से निभाते आ रहे हैं। यहां चैत्र नवरात्रि के रामनवमी से एक दिन पहले लोग अपना घर बार छोड़कर बैरागी हो जाते हैं। यहां न कोई गांव का पानी पीता है और न कोई गांव का भोजन करता है। यह गांव नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र में पड़ता है। इस गांव में हिंदू-मुस्लिम समुदाय के करीब 150 परिवार रहते हैं।

मान्यता है
यहां ग्रामीण बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले गांव में महामारी का प्रकोप फैला था, जिससे कई लोगों की जानें चली गयी थीं। गांव के लोग बहुत परेशान थे और इलाज का कोई असर नहीं हो रहा था। इसी बीच गांव में एक महात्मा भिक्षा मांगने के लिए आए। ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने इसे दैवीय श्राप बताया। उन्होंने उपाय सुझाया कि गांव के लोगों को चैत्र नवरात्रि में एक दिन गांव से बाहर रहना पड़ेगा। ग्रामीण इस पर राजी हो गए। तबसे नवरात्र के छठवीं तिथि को ग्रामीण भिक्षाटन करते हैं और सातवीं तिथि को गांव से बाहर दूसरे गांव में एक दिन बगीचे व खेतों में टेंट लगाकर भोर में ही गांव छोड़कर वनवासी जीवन गुजारते हैं। घर में चाहे कोई बीमार हो या एक दिन की आई नवविवाहिता हो, सभी को घर से बाहर दिन गुजरना होता है। सभी साथ में पशुओं को भी लेकर जाते हैं। 

ऐसी अनोखी परंपरा कहीं नहीं दिखेगी 
 सभी लोग दिन में सतुआ-भुजा खाते हैं और रात में भोजन बनाते हैं। भिक्षाटन में मिले अनाज और पैसे से अगरबत्ती कपूर जलाकर प्रार्थना करते हैं। गांव में हिन्दू व मुस्लिम दोनों समुदाय का परिवार रहता है और दोनों समुदाय के लोग इस परम्परा को आस्था मानकर निभाते हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल देने वाले इस गांव की यह अनोखी कहानी शायद ही कहीं देखने को मिले।