नई दिल्ली । दिल्ली के बारे में कहा जाता है कि दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से जिस पार्टी ने ज्यादा सीटें जीती, केन्द्र में उसी पार्टी की सरकार बनती है। 1998 में भाजपा ने 6 सीटें जीती, केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी। 1999 में भाजपा ने सभी सात सीटें जीती, केन्द्र में फिर भाजपा की सरकार बनी। 2004 में कांग्रेस ने दिल्ली में 6 सीटें जीती, केन्द्र में यूपीए की सरकार बनी। 2009 में कांग्रेस ने सभी 7 सीटें जीती और फिर से केन्द्र में सरकार बनाई। 2014 और 2019 में भाजपा ने सभी सीटें जीती और केन्द्र में मोदी सरकार बनी। 25 मई को देश की 57 सीटों पर होने वाले मतदान में दिल्ली की 7 सीटों पर भी मुकाबला होना है। दिल्ली का यह लोकसभा चुनाव पिछले दो चुनाव 2014 और 2019 से हटकर होने जा रहा है क्योंकि इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन कर भाजपा के सामने चुनौती पेश करने की कोशिश की है। गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी चार सीटों पर और कांग्रेस तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आप पार्टी के खाते में नई दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली की सीटें है वही कांग्रेस के हिस्से में चांदनी चौक, उत्तर पूर्वी दिल्ली और उत्तर पश्चिमी दिल्ली की सीटें है। दिल्ली का यह लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए करो या मरो का चुनाव बन चुका है। शराब घोटाले में तिहाड़ से अंतरिम जमानत पर लौटे अरविंद केजरीवाल की पूरी कोशिश है कि उनके जेल जाने को भावनात्मक मुद्दा बनाकर दिल्ली में उसका लाभ लिया जाए। लेकिन स्वाति मालीवाल प्रकरण से केजरीवाल की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। हालांकि दिल्ली की जनता का एक बड़ा वर्ग मुफ्त बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले को लेकर केजरीवाल के साथ होने के बाद भी लोकसभा चुनाव में मोदी को वोट देता रहा है।