रंजीता सिंह / नई दिल्ली- दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल...साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल....1954 में जागृति फिल्म में कवि प्रदीप के लिखे इस गाने के मायने हैं। दरअसल, गांधी सत्य-अहिंसा में विश्वास रखते थे। वह मानते थे कि कोई भी जंग जीतने के लिए हथियार की जरूरत नहीं है, बल्कि व्यक्ति की शालीनता और अडिग विश्वास ही इसके लिए काफी हैं। उन्होंने बगैर किसी हिंसा के उस वक्त के सबसे शोषित किसानों को ब्रिटिश हुकूमत के आगे खड़ा होना सिखा दिया। उनके अहिंसक आंदोलनों ने ऐसी क्रांति जगाई कि अंग्रेज हुकुमत को देश छोड़कर जाने को विवश होना पड़ा। इस लड़ाई में उन्होंने हिंदू-मुस्लिमों को एकता के सूत्र में पिरोया। साबरमती के संत यह कमाल कर गए।
उनके विचार आज भी बेहद प्रासंगिक हैं। उन्होंने हर उस मुद्दे पर गंभीरता से लिखा है, जिसे हम देखते और महसूस करते हैं। अगर उनके विचारों को जीवन में आत्मसात कर लिया जाए तो शायद हर किसी का जीवन बेहद आसान हो जाए। आज गांधीजी की पुण्यतिथि है। 30 जनवरी को ही नाथूराम गोडसे ने उनकी गोली मारकर हत्या की थी। गांधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे और हमेशा यहीं कहते थे कि अपने आज पर पूरा ध्यान दो, ताकि आपका भविष्य अच्छा बन सके। इस साल आजादी के 75  साल पूरे होने वाले हैं, इसलिए देशभर में 'अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है। इन सबके बीच सबसे बड़े आंदोलनकारी राष्ट्रपति महात्मा गांधी को काफी याद किया जा रहा है। हाल ही में राजपथ पर हुई बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी में वीरे शहीदों संग गांधी जी को अनोखे अंदाज में श्रद्धांजलि दी गई। देश में जब भी चुनाव आते हैं और तब गांधी जी और अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। गांधी जी की सच्ची आवाज आज भी जनमानस में गूंजती है। वह करुणा और दया के सागर थे। 

गांधीजी से जुड़ा प्रेरक प्रसंग 
एक बार गांधी जी इलाहाबाद में आनंद भवन में रुके हुए थे। सुबह का वक्त था, गांधी जी नीम की दातुन से दांत साफ कर रहे थे। उन्होंने एक लोटे में पानी भर कर रखा हुआ था। तभी वहां से एक व्यक्ति गुजरा और गलती से उसका पैर से गांधी का लोटा लुढ़क गया। उसमें से काफी पानी बह चुका था। गांधी ने उतने ही पानी से अपना बाकी का काम निपटाया। जब नेहरू को ये बात पता चली तो वो गांधी जी के पास पहुंचे और उन्होंने कहा-बापू आप प्रयाग के किनारे बैठे हो यहां पानी की कोई कमी नहीं है। गांधी ने कहा कि लेकिन मेरे हिस्से का पानी तो गिर गया है ना, इसलिए अब मैं और पानी नहीं ले सकता हूं। इसी तरह गांधी जी दातुनों को दो भागों में काट कर दोनों तरफ से इस्तेमाल करते थे। जब वो सूख जाती थीं तो एक जगह पर इकट्ठा कर लिया करते थे ताकि सर्दी में वो आग सेंकने या दूसरे कामों में इस्तेमाल हो सकें। उन्होंने अपने सभी साथियों में भी ये आदत डलवाई थी। देखा जाए तो ये एक छोटी सी बात है पर इसके पीछे पर्यावरण के लिए जो गंभीरता है, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है। गांधी जी का मानना था कि प्रकृति को बचाने के लिए हमें उसे आचरण में लाना जरूरी है। 

ऐसे बीता था गांधी जी का आखिरी दिन 
शुक्रवार 30 जनवरी 1948 हमेशा की तरह गांधीजी  तड़के साढ़े तीन बजे उठे। प्रार्थना की, दो घंटे अपनी डेस्क पर कांग्रेस की नई जिम्मेदारियों के मसौदे पर काम किया और फिर छह बजे सोने चले गए। इस दौरान उन्होंने नींबू-शहद का गरम पेय पीया। दोबारा सोकर आठ बजे उठे। दिन के अखबारों पर नजर दौड़ाई। फिर ब्रजकृष्ण ने तेल से उनकी मालिश की। नहाने के बाद उन्होंने बकरी का दूध, उबली सब्जियां, टमाटर और मूली खाई और संतरे का रस भी पीया। डरबन के उनके पुराने साथी रुस्तम सोराबजी सपरिवार गांधी से मिलने आए थे। इसके बाद रोज की तरह वह दिल्ली के मुस्लिम नेताओं से मिले। गांधी जी के नजदीकी सुधीर घोष और उनके सचिव प्यारेलाल ने नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों पर लंदन टाइम्स में छपी एक टिप्पणी पर उनकी राय मांगी। इस पर गांधी ने कहा कि वह यह मामला पटेल के सामने उठाएंगे जो चार बजे उनसे मिलने आ रहे हैं और फिर वह नेहरू से भी बात करेंगे जिनसे शाम सात बजे उनकी मुलाकात तय थी। चार बजे पटेल पुत्री मनीबेन के साथ गांधी से मिलने पहुंचे। दोनों में गंभीर वार्ता हो रही थी कि गांधी के बिरला हाउस में प्रार्थना सभा में जाने का वक्त हो गया। शाम पांच बज कर 10 मिनट पर गांधी मनु और आभा का सहारा लेते हुए सभा की ओर बढ़ गए। गांधी ने वहां लोगों को हाथ जोड़कर अभिवादन किया। बाईं तरफ से नाथूराम गोडसे ने पहले गांधी के पांव छुए, फिर पिस्टल निकाल एक के बाद एक तीन गोलियां गांधीजी के सीने और पेट में उतार दीं। बापू के मुंह से निकला, "राम.....रा.....म"। आभा ने गिरते हुए गांधी के सिर को हाथों का सहारा दिया पर गांधी निष्प्राण हो चुके थे। 

दोनों हाथों से लिखने की महारत हासिल थी गांधीजी को
बहुत कम लोगों को पता है कि गांधी दोनों हाथों से उतनी ही सफाई के साथ लिख सकते थे। 1909 में इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए उन्होंने नौ दिन में अपनी 271 पेज की पहली किताब ‘हिंद स्वराज’ खत्म की थी। जब उनका दाहिना हाथ थक गया तो उन्होंने करीब साठ पन्ने अपने बाएं हाथ से लिखे।

मां के ज्यादा करीब थे मोहनदास
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनके बारे में कहा जाता है कि वह बचपन में मां पुतली बाई के ज्यादा करीब थे। पिता से उन्हें डर लगता था। रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी को महात्मा की उपाधि दी थी। चंपारण के एक किसान ने गांधी को बापू का नाम दिया था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने बापू को रेडियो रंगून से 6 जुलाई 1944 में पहली बार राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।

सूट-बूट छोड़ पहनने लगे थे धोती 
15 अप्रैल 1917 को दोपहर तीन बजे गांधीजी चंपारण के मोतिहारी स्टेशन पर उतरे। वह कठियावाड़ी पोशाक पहने हुए थे। इसमें ऊपर एक शर्ट, नीचे एक धोती,चमचमाता सफेद चोगा था, साथ ही वे चमड़े का जूता और टोपी पहने थे। उनके सब कपड़े या तो भारतीय मिलों में बने हुए थे या फिर हाथ से बुने हुए थे। हजारों भूखे, बीमार और कमजोर हो चुके किसान गांधी को अपना दुख-दर्द सुनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। इनमें से आधी औरतें थीं, जो घूंघट में थीं। औरतों ने अपने ऊपर हो रहे जुल्म की कहानी उन्हें सुनाई। बताया कि कैसे उन्हें पानी लेने से रोका जाता है, जूते-चप्पल नहीं पहनने दिए जाते हैं, शौच के लिए एक खास समय ही दिया जाता है, बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता है, उन्हें अंग्रेज मालिकों के नौकरों और आया के तौर पर काम करना होता है। इसके बदले में उन्हें बस एक जोड़ी कपड़ा दिया जाता है। यह सुनते ही गांधी जी द्रवित हो गए और उन्होंने तुरंत अपने जूते उतार कर एक तरफ रख दिए। गांधी का साथ देने के लिए उनकी पत्नी कस्तूरबा भी पहुंच गईं। गांधी ने कस्तूरबा से कहा कि वो खेती करने वाली औरतों को हर रोज नहाने और साफ-सुथरा रहने को समझाएं। कस्तूरबा जब औरतों के बीच गईं तो उन औरतों में से एक ने कहा- बा, मेरे पास केवल एक ही साड़ी है जो मैंने पहन रखी है। मैं कैसे इसे साफ करूं? आप महात्मा जी से कहो कि मुझे दूसरी साड़ी दिलवा दंे ताकि मैं हर रोज इसे धो सकूं। यह सुनकर गांधी ने अपना चोगा बा को दिया उस औरत को देने के लिए और इसके बाद से ही उन्होंने चोगा ओढ़ना बंद कर दिया था। सत्य को लेकर गांधी के प्रयोग और उनके कपड़ों के जरिए इसकी अभिव्यक्ति अगले चार सालों तक ऐसे ही चली जब तक उन्होंने लंगोट या घुटनों तक धोती पहनना नहीं शुरू कर दिया। 

पगड़ी पहनना भी छोड़ दिया
1918 में जब गांधीजी अहमदाबाद में करखाना मजदूरों की लड़ाई में शरीक हुए तो उन्होंने देखा कि उनकी पगड़ी में जितना कपड़ा लगता है, उसमें चार लोगों का तन ढका जा सकता है। बस उन्होंने उसी वक्त पगड़ी पहनना भी छोड़ दिया।

उनके मुख्य आंदोलन
1-नमक आंदोलन
2-खेड़ा आंदोलन
3-अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन
4-असहयोग आंदोलन
5-भारत छोड़ो आंदोलन